चेक बाउन्स केस में निचली अदालत से दोषसिद्धि के बाद भी अपराध शमनीय है- हाईकोर्ट

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( दिनेश शर्मा “अधिकारी “)।
नई दिल्ली- हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि चेक बाउन्स मामले में निचली अदालतों द्वारा दोषसिद्धि के बाद भी अपराध शमनीय है।
न्यायमूर्ति संदीप शर्मा की पीठ निचली अदालत द्वारा पारित फैसले की पुष्टि करते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार कर रही थी, जहां याचिकाकर्ता-अभियुक्त को नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध का दोषी ठहराया गया है।
इस मामले में आरोपी ने सेब की बिक्री और खरीद के लिए शिकायतकर्ता से 3.00 लाख रुपये उधार लिए थे।
आरोपी ने एक लाख रुपये का चेक जारी किया। 3.00 लाख का आहरण भारतीय स्टेट बैंक ठियोग में किया गया, लेकिन तथ्य यह है कि उक्त चेक, प्रस्तुत करने पर, अभियुक्त के खाते में अपर्याप्त धनराशि के कारण अनादरित हो गया था।
चूंकि कानूनी नोटिस प्राप्त होने के बावजूद, आरोपी निर्धारित समय के भीतर भुगतान करने में विफल रहा, शिकायतकर्ता को सक्षम न्यायालय में अधिनियम की धारा 138 के तहत कार्यवाही करने के लिए मजबूर किया गया।ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को अधिनियम की धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध करने का दोषी ठहराया।
पीठ के समक्ष विचार का मुद्दा था:क्या अपीलकर्ता परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध के लिए उत्तरदायी है……???हाई कोर्ट ने कहा कि “इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई मुआवजे की पूरी राशि शिकायतकर्ता को भुगतान करने के लिए सहमत हो गई है, इस अदालत को याचिका में अधिनियम की धारा 147 के तहत अपराध की कंपाउंडिंग के लिए आरोपी की ओर से की गई प्रार्थना को स्वीकार करने में कोई बाधा नहीं दिखती है।
पीठ ने दामोदर एस. प्रभु वी. सैयद बाबालाल एच के मामले पर भी भरोसा किया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि अदालत अधिनियम की धारा 147 के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए, दोषसिद्धि के बाद भी अपराध को कम भी कर सकती है ।


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