राज्यपाल रमेश बैस ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर झारखंड हाईकोर्ट की कार्यवाही भाषा हिन्दी को लागू करने की मांग किया

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डॉ अजय ओझा।

रांची, 16 दिसंबर। राज्यपाल रमेश बैस ने राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर ध्यान आकृष्ट किया है कि हिन्दी झारखण्ड की राजभाषा है और राज्य के सर्वाधिक लोग हिन्दी बोलते और समझते हैं। नगण्य लोगों द्वारा ही राज्य में अंग्रेजी बोली जाती है या प्रयुक्त की जाती है, फिर भी अंग्रेजी राज्य के उच्च न्यायालय की कार्यवाही की भाषा है और संविधान में निहित प्रावधानों का उपयोग करते हुए हिंदी को झारखण्ड उच्च न्यायालय की भाषा अब तक नहीं बनाया जा सका है, जबकि देश के कई राज्य जहाँ राजभाषा हिंदी है, हिंदी भाषा को संबंधित उच्च न्यायालयों की कार्यवाही की भाषा के रूप में लागू किया गया। इनमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार के उच्च न्यायालय शामिल हैं।

झारखण्ड का आविर्भाव अविभाजित बिहार से 15 नवम्बर 2000 को हुआ। झारखण्ड के भू-भाग राज्य गठन के पूर्व पटना उच्च न्यायालय के न्यायिक क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आते थे। एकीकृत बिहार के उच्च न्यायालय, पटना में हिंदी न्यायालय की कार्यवाही की भाषा के रूप में लागू है। झारखण्ड गठन के पश्चात यहाँ हिंदी राजभाषा ज़रूर बनी पर झारखण्ड उच्च न्यायालय में हिंदी न्यायालय की कार्यवाही की भाषा के रूप में लागू नहीं हो सकी। उन्होंने कहा है कि न्याय सर्वसुलभ और स्पष्ट रूप से सबको समझ में आए, इसके लिए आवश्यक है कि न्याय की प्रक्रिया सरल हो और उसे आम आदमी को समझ आती हो। झारखण्ड जैसे राज्य के उच्च न्यायालय में कानूनी प्रक्रियाओं का माध्यम अंग्रेजी होना न्याय को आम आदमी की समझ और पहुँच से दूर बनाता है। उन्होंने कहा है कि अनुच्छेद 348 के खंड (2) में प्रावधान है कि किसी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उस उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में हिंदी भाषा का या उस राज्य की शासकीय भाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा। अब चूँकि हिंदी झारखण्ड की राजकीय भाषा भी है, अत: इसे उच्च न्यायालय की कार्यवाही की भाषा घोषित करना संविधान के प्रावधानों के अनुरूप होगा।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 351 में हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश प्राप्त है जो निम्नवत है:-

“संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिन्दुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहां आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे।”

अत: राज्यहित एवं न्यायहित में संविधान के अनुच्छेद 348(2) में प्रदत्त प्रावधानों का प्रयोग करते हुए हिन्दी को झारखण्ड उच्च न्यायालय की कार्यवाही की भाषा के रूप में प्राधिकृत किया जा सकता है।


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