करोना कालखंड के पांचवे अध्याय का तीसरा दिन, देशभक्तों के टोले के नाम
यूँ तो पिछले तीन महीने से, हर दिन बड़ी ही सकारात्मक प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं और सभी लेखों में दिए गए सुझावों, उपायों पर ढेरों आशीर्वचन भी मिल रहे हैं, जो लगातार इस संकट काल में लिखने की प्रेरणा देते रहे हैं, लेकिन कल के लेख पर मिली कुछ बेहद उल्लेखनीय टिप्पणियों को आज अपने सभी मित्रों, पाठकों से शेयर करने को जी चाह रहा है, इसलिए आज सबसे पहले बात, उन्ही विशिष्ट टिप्पणियों की। आदरणीय बड़े भाई डॉ सुनील कुमार माथुर लिखते हैं, “सटीक लेख है परन्तु बेशर्म प्रशासकों एवं राजनेताओ पर कितना फ़र्क़ पड़ता है?”
प्रिय मित्र श्री सुधीर अग्रवाल ने लिखा “क्या बात लिखी है भुवनेश्वर जी, बहुत-बहुत आभार” श्रीमती अर्चना सोनी लिखती हैं, “बिलकुल सही, लोग अपनी मर्जी से बच्चे पैदा करें, और उनका पेट भरने के लिए सरकार के सामने झोली फैलाकर खड़े हो जाएँ, मनरेगा का पैसा रात में दारू में उड़ा दें, पर अपने इलाज के लिए एक दमड़ी न खर्च करें, और व्यवस्था इसी सोच को सपोर्ट करे, कब तक चलेगा?”
डॉ अशोक उपाध्याय लिखते हैं, “इंफ्रास्ट्रक्चर की बजाय वोट खेंचू योजनाओं में कितना ही देते जाइये, हमेशा “कम है” की शिकायत रहेगी। जब हमें पता नहीं, कितने ओर कौन गरीब हैं, तो हर आदमी मांगेगा। आयुष्मान योजना में 2 साल में 1 करोड़ लोग इलाज करवा लिए, इस तरह की योजना होंगी तो कुबेर का खजाना खाली हो जावेगा। जिस देश मे 135 में से 80 करोड़ गरीबी का दावा करें, और हर 3 में से 2 पिछड़े होने के लिए लड़ें, वो जितना कर ले बहुत है।”
आदरणीय बड़ी बहन श्रीमती मंजूलता शर्मा लिखती हैं, “डाक्टर सा., आसन्न संकट पर बहुत सामयिक लेख, वे लोग जो सही काम को होने ही नहीं देना चाहते, अच्छे सुधारो को लागू ही नहीं होने देना चाहते क्योंकि इन सुधारो से लांग टर्म व्यवस्थाये दूरुस्त होगी और कोई भी सरकार इन्हें पलट नहीं पायेगी, ये मार्गदर्शन करे कि हम इस स्थिति मे क्या करे, हमारा रोल क्या होना चाहिये?”
बेहद सकारात्मक सोच और देश, मानवता के जज्बे वाली टिप्पणियां हैं ये सब, और उनके मुंह पर झन्नाटेदार थप्पड़ की तरह पड़ी होंगी, जो देश और मानवता के खिलाफ काम कर रहे हैं, और इसीलिए मंजुलताजी के आदेश का पालन करते हुए, उनकी टिप्पणी का जबाब, मैं उन्ही के जीवनसूत्र से करता हूँ कि,
जी रही हूं इस तरह, कि ज़िंदगी ख़ामोश है!
लड़ रही हूं फ़िर भी, कि हौंसला बुलन्द है!!
और इसीलिए आज, जबकि देश ६०/४० के स्पष्ट जन विभाजन में बंटा हुआ दिख रहा है, तब सबसे पहली जरुरत तो हम सबकी यही होना चाहिए कि, हर गलत बात का, भ्रष्ट आचरण का, मासूमों, बेजुबानों, प्रकृति, पशु-पक्षियों के साथ हो रहे अत्याचारों और झूठ फरेब का, बिना डरे, खुल कर विरोध करें, ताकि लूटने वालों को, फिर से १९४७ दोहराने का होंसला और मौका ना मिल पाये। अपने देश, इसकी वैभवशाली परंपराओं, देश के वीर सैनिकों और राष्ट्रनायकों का पूरी ताकत से समर्थन करें। आज तो हम सबके पास सोशल मीडिया की इतनी बड़ी ताकत है, कि छद्मपंथियों और देश विरोधी ताकतों, बिकाऊ मीडिया की धज्जियां, देश के सतर्क और हिम्मती सामान्य जन, तुरंत उड़ा देते हैं और इसीलिए आज वो सब बिलबिलाये साँपों की तरह अपने अपने बिलों से मुंह निकालकर फुँफकारते नजर आ रहे हैं क्योंकि आज उनको अपने साम्राज्य उजड़ते नजर आ आ रहे हैं, और दूसरी सबसे जरुरी बात, हम सब स्वावलम्बी, मेहनती और ईमानदारी की कमाई पर जीने, खाने वाले लोग हैं, इसीलिए तो अपने यशस्वी प्रधानमंत्री श्री मोदी के एक आव्हान पर करोड़ों देशभक्तों ने सब्सिडियां छोड़ दी थी, नोटबंदी में भी और लॉक डाउन में भी देश ने गजब का अनुशासन दिखाया है। इसीलिए आज बस इतनी सी ही जरुरत है, कि सब लोग एकजुट रहें और अपने धर्म के साथ साथ अपने राष्ट्रधर्म और राष्ट्राग्या का भी इसी तरह पालन करते रहें और गद्दारों को एक्सपोज़ करते रहें। अगर हम सब इतना भी कर लेंगे तो, चालीस परसेंट में से सोने का ढोंग कर रहे, बहुत से लोगों को जगाया जा सकता है, सीमा पर बुलेट के जरिये और देश में बैलेट के जरिये राष्ट्रविरोधी ताकतों को हराया और नेस्तनाबूद किया जा सकता है।
और इसीलिए आत्मनिर्भरता के नाम मुंहदिखाई की बात करने वाले सभी लोगों को, आज हमें यह बारबार बताने की जरुरत है कि, बहुसंख्यक हिन्दुस्तानी, आत्मनिर्भर, मेहनती और स्वावलम्बी था, है और रहेगा और इसीलिए सैकड़ों साल लुटने के बाद भी यह देश बार बार उठ खड़ा होता है, और इसीलिए एक सुभाष खोने के बाद, अब दूसरे सुभाष को कतई खोना नहीं चाहता और इसलिए मौका पाते ही वो लगातार बहुमत वाली देशभक्त सरकार चुन रहा है और चुनता भी रहेगा और इसीलिए बेहद अभाव में भी, किसी विस्थापित को भरी गर्मी में सड़कों पर लूटपाट करते, पथ्थर फेंकते कभी किसी ने नहीं देखा होगा, लेकिन उनकी तकलीफ बेचते बहुतों को देख लिया है, इस देश ने! और इसीलिए चाहे तुम कितने ही मुफ्तखोर पाल लो, खान को, वाड्रा को गांधी बना लो, लेकिन देशभक्तों का टोला तुम्हारी पोलें खोलता रहेगा और तुम्हे तुम्हारे कुकर्म लगातार याद दिलाता रहेगा।
अफ़सोस तो सिर्फ इतना सा है कि साठ साल देश लूटने वालों के पास, सक्षम समर्पित विपक्ष बनने का स्वर्णिम अवसर था, अभी भी है, लेकिन यह देश की माटी का कर्ज चुकाने की जगह, जगह जगह अराजकता फैलाते दिख रहे हैं। संविधान की शपथ बेचनेवाले, मासूम बच्चों के निवाले हड़प जानेवाले, व्यापम में बच्चों का भविष्य चौपट कर अपने घर भरने वाले, अपनी कलम बेचकर रागदरबारी लिखने-छापने वाले नराधम हों या भीख, लूट, लालच, गबन की रोटियां खानेवाले लिजलिजे दोपाये, यह सभी उन बेबस जानवरों से भी बदतर हैं जो अपने पूर्वजन्मों का दंश भोगते, सड़कों पर खुजलाते लौटते दिखाई पड़ते हैं।
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा
‘इक़बाल’ कोई महरम अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा । इसी बात को और आगे बढ़ाएंगे कल, तब तक जयश्रीराम ।
डॉ भुवनेश्वर गर्ग
डॉक्टर सर्जन, स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, हेल्थ एडिटर, इन्नोवेटर, पर्यावरणविद, समाजसेवक
मंगलम हैल्थ फाउण्डेशन भारत
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