क्या भारत को तालिबान से युद्ध करना चाहिए ?

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संतोष श्रीवास्तव ।

सोशल मीडिया पर देखा जा रहा है कि कुछ महानुभव, अफगानिस्तान की सहायता हेतु भारत कि मोदी सरकार से अपनी सेनाएं अफगानिस्तान भेजने की मांग कर रहे हैं। उनका तर्क है “यदि हम अफगानिस्तान की सहायता नहीं कर सकते तो फिर इतनी बड़ी आर्थिक शक्ति और विश्व की दूसरी सबसे बड़ी स्टैंडिंग आर्मी होने का क्या लाभ ?”

सच कहूं तो उन लोगों की ऐसी मांग और बातें देखकर मुझे उनपर हंसी नहीं बल्कि उनकी सतही और छिछली समझ पर दया आ रही है।

क्योंकि वास्तव में ऐसी मांग करने वालों को ना तो अफगानिस्तान की ज्योग्राफिकल लोकेशन का आईडिया है, ना वहां के टेरेन का, ना ही वहां के इतिहास का, न वहां की परिस्थितियों का, और न ही उन्हें सैन्य, रणनीतिक और कूटनीतिक मामलों की रत्ती भर भी समझ है ।

⭕ पहली बात यह कि अफगानिस्तान की समस्या और तालिबान की उत्पत्ति में भारत का कोई हाथ नहीं है, यह रायता अमेरिका और NATO का फैलाया हुआ है, और भारत ने उनके फैलाए रायते को समेटने और उनकी फैलाई गंदगी साफ करने का ठेका नहीं ले रखा, अरे भैया हमारे एक एक सैनिक के प्राण बहुमूल्य हैं, और लेहडू गांधी परिवार ने पाकिस्तान को प्लेट में सजाकर आधा कश्मीर, पूरा तिब्बत और फिर भारत का बड़ा भूभाग चीन को देकर भारतीय सेनाओं के लिए जिस नरक का निर्माण किया था उसे सलटाने में अब तक हजारों भारतीय सैनिक अपने प्राणों की आहुतियां दे चुके हैं।
इंदिरा द्वारा लगाई गई भिंडरावाले की आग को बुझाने में अनेकों भारतीय सैनिकों को अपने प्राणों का बलिदान देना पड़ा था और मतभ्रष्ट मंदबुद्धि राजीव भी श्रीलंका भेज सैंकड़ों भारतीय सैनीको की बलि चढ़ा गया था, तो भैया क्या अपनी मातृभूमि की रक्षा हेतु भारतीय सैनिकों द्वारा दिये गए इतने बलिदान पर्याप्त नहीं है कि अब अमेरिका के फैलाये रायते को सलटाने अफगानिस्तान में भारतीय सैनिकों को भेज उनकी बलि चढ़ाना चाहते हो ?

⭕ अब बात करते हैं अफगानिस्तान के लोकेशन की तो भैया अफगानिस्तान एक लैंडलॉक्ड कंट्री है, अफगानिस्तान की सीमा किसी समुद्री तट से नहीं मिलती कि आपने समुद्री मार्ग से सीधे अपने सैनिकों का लाव लश्कर भेज दिए। साथ में पीछे से अपना एयरक्राफ्ट कैरियर फाइटर जेट के साथ उनकी सहायता हेतु भेज दिया ( यही प्रमुख कारण है कि अफगानिस्तान में अमेरिकन और नाटो फोर्सेज सफल नहीं रही) अफगानिस्तान का एक्सेस आपको या तो ईरान या फिर पाकिस्तान के माध्यम से ही मिल सकता है। अर्थात कोई भी बड़ा सैन्य मिशन पाकिस्तान या फिर ईरान के थ्रू ही एक्जिक्यूट किया जा सकता है।

⭕ तथा अफगानिस्तान में भारतीय सेना उतारने का मतलब मात्र कुछ दिन के लिए मुट्ठी भर सैनिक भेजना नहीं है, क्योंकि वह तो कोई बड़ी बात नहीं, बल्कि अफगानिस्तान में इंडियन फोर्सेज भेजने का मतलब है भारतीय टैंक, आर्मर्ड वेहीकल, कॉम्बैट हेलीकॉप्टर और बड़े बड़े सैन्य उपकरण डिप्लॉय करना और उनकी सहायता हेतु एक सिक्योर एयर स्ट्रिप स्थापित करना जहां भारतीय लड़ाकू विमान डिप्लॉय हों, और इस मिशन में हाथ डालने का अर्थ है दशकों तक भारतीय फोर्सेस का अफगानिस्तान में एक बहुत बड़ा डेप्लॉयमेंट, जिसका खर्च बिलियंस एंड बिलियंस ऑफ डॉलर आएगा, चलो एक बार को यह खर्च साइड में रख भी दें, तो भारतीय सेनाओं का अफगानिस्तान में डिप्लॉयमेंट बनाये रखने का अर्थ है उनके लिए लॉजिस्टिक सप्लाई चेन मेंटेन करना, जिसके लिए आपको या तो ईरान या फिर पाकिस्तान की शरण में जाना पड़ेगा।
(जिस प्रकार अमेरिका ने पाकिस्तान को लाखों डॉलर देकर उनके माध्यम से अफगानिस्तान में डिप्लॉयड अपनी फोर्सेज के लिए लॉजिस्टिक सप्लाई चैन और एयर सपोर्ट के लिए एयर स्ट्रिप मेंटेन कर रखी थी, और अमेरिका के लाखों डॉलर डकारने के बावजूद भी कई बार पाकिस्तान अमेरिका को ही डबल क्रॉस कर हक्कानी नेटवर्क के माध्यम से अमेरिकी सैन्य लॉजिस्टिक सप्लाई चेन पर आक्रमण कर उनकी रसद, उपकरण, हथियार और गोलाबारूद लूट लिया करता था) अब ईरान की बात करें तो हमें नहीं भूलना चाहिए कि पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी जब ईरान में भारतीय डिप्लोमेट हुआ करते थे तो उनकी इनपुट्स पर ईरानी एजेंसियां भारतीय रॉ एजेंट्स को अगवा कर लिया करती थीं, मुझे सोच कर बताइए कि अफगानिस्तान में इतने बड़े सैन्य मिशन को अंजाम देने हेतु भारत पाकिस्तान और ईरान जैसे देशों के माध्यम से अपनी फोर्सेज के लिए लॉजिस्टिक सप्लाई चैन स्थापित करता है तो क्या वह सुरक्षित होंगी ?

अब यह समझने के बाद आपको क्या लगता है कि भारत को ईरान या पाकिस्तान की शरण में जाकर उनसे अफगानिस्तान में अपने सैन्य मिशन को अंजाम देने हेतु एक लॉजिस्टिक सप्लाई चेन स्थापित करने के लिए उनकी भूमि का इस्तेमाल करने हेतु उनसे अनुमति मांगनी भी चहिए ?

⭕ अच्छा चलो मान लो कि भारत ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाते हुए अफगानिस्तान में भारतीय सेनाओं का एक बड़ा दल भेज भी दिया और अपनी डिप्लोमेटिक क्षमताओं का पूरी पोटेंशियल तक इस्तेमाल कर ईरान के माध्यम से अपनी सैन्य फोर्सेज के लिए एक लॉजिस्टिक सप्लाई चेन भी स्थापित कर दी, किंतु वह सैन्य डेप्लॉयमेंट सदा के लिए तो नहीं हो सकता, आखिर उस सैनिक डेप्लॉयमेंट को सपोर्ट करने हेतु प्रतिदिन भारी-भरकम खर्चा भी तो आएगा जो भारतीय टैक्सपेयर की जेब से जाएगा, अतः कभी ना कभी तो वह मिशन बंद कर वह फोर्सेज वापस बुलानी होंगी ?

आखिर अमेरिका भी तो पिछले 20 वर्षों से अफगानिस्तान में अपनी सेनाओं को डिप्लाई कर पाकिस्तान के माध्यम से उनकी लॉजिस्टिक सप्लाई चेन मेंटेन करके बैठा हुआ था, उसने भी अपने सैकड़ों सैनिकों के प्राणों की आहुति दी, लाखों डॉलर पानी की तरह बहा दिए, अफगानिस्तान की रक्षा हेतु तीन लाख से अधिक अफगान सैनिकों की सेना बनाई, उन अफगान सैनिकों को अमेरिकी उपकरण, हथियार और ट्रेनिंग दी, और 20 वर्षों तक यह सब करने के बाद जब अमेरिकन सेनाएं वापस गई तो उसके 2 महीने के भीतर ही अफगान फोर्सेज ने हथियार डाल दिये और अब तालिबान मजार ए शरीफ, कंधार, हेरात जैसे शहरों के साथ अफगानिस्तान के दो तिहाई भाग पर कब्जा कर चुका है और काबुल के दरवाजे पर बैठा हुआ है,

⭕ अतः हे महानुभवों आज भले तुम भारतीय फोर्स को अफगानिस्तान भेजने की मांग कर रहे हो, परंतु क्या तुम गारंटी दे सकते हो कि यदि अगले 20 वर्षों तक भारतीय सेनायें अफगानिस्तान में डटी रहे अपने सैनिकों का बलिदान देती रहे, और भारतीय सरकार लाखों डॉलर बहाती रहे उसके बावजूद जब भारतीय सेना वापस आएंगी तो अफगानिस्तान मैं पुनः वर्तमान परिस्थितियों नहीं उत्पन्न होगी ?

⭕ रही बात भारत द्वारा अफगानिस्तान के सहयोग की तो भारत पहले ही अफगानिस्तान को हजारों करोड़ों की आर्थिक सहायता दे चुका है, अफगानिस्तान में डेवलपमेंट के सैकड़ों कार्य कर चुका है, हाइवे सड़कें बनाई है, लाइब्रेरी बनाई है, यूनिवर्सिटी बनाई है, स्कूल बनाए हैं, डैम बनाए हैं अफगानिस्तान की संसद भी भारत ने बनाकर उन्हें उपहार में दी है, अफगान फोर्स को कॉन्बैट हेलीकॉप्टर दिए हैं, अफगानिस्तान के छात्र छात्राओं को भारत आकर पढ़ने का अवसर दिया है, किंतु सहयोग की भी एक सीमा होती है आर्थिक और रिसोर्सेज से सहयोग करना अलग बात है परंतु जब उनके स्वयं के 3 लाख सैनिक, 90 हजार तालिबानियों से लड़ने के बदले पूरे के पूरे शहर उन्हें सौंप रहे हों, तब भारतीय सेना के सपूतों को वहां भेजने का क्या औचित्य ?

लेखक है प्रवक्ता जय हिंद नेशनल पार्टी के।


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