कोरोना कालः मनरेगा में ग्राम प्रधानों का गड़बड़झाला

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रमेश ठाकुर

कोरोना संकट की मार से वैसे तो सभी बेहाल हैं लेकिन एक वर्ग ऐसा है जो सबसे ज्यादा आहत हुआ है। वह वर्ग है दिहाड़ी मजदूर। उनके समक्ष रोजाना पेट पालने की मुश्किल चुनौती है। कोरोना की वजह से मौजूदा संकटकाल में कमोबेश ऐसी ही समस्या से मेहनतकश गुजर रहे हैं। लाॅकडाउन से उनके सामने बड़ा संकट है। बात रोजी-रोटी पर आ गई है। हालांकि केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा उनके खाने-पीने और रोजमर्रा की जरूरतों आदि की उचित व्यवस्था की हुई है। पर, विडंबना यह है कि इस भयावह दौर में भी इस व्यवस्था में भ्रष्टाचारियों ने सेंध लगा दी है। मनरेगा रोजगार देश के मजदूरों को बड़ी राहत देता है।हिंदुस्तान के ज्यादातर गांवों में दिहाड़ी मजदूरों की बड़ी आबादी है। बीते एक दशक से गांव के मजदूर केंद्र सरकार की बहुआयामी योजना मनरेगा से जुड़े हैं।

गांव छोड़कर जो मजदूर शहरों में चले गए थे, वह लाॅकडाउन के बाद अपने-अपने गांव पहुंच गए हैं। लाॅकडाउन से उनको किसी तरह की दिक्कतों का सामना न करना पड़े, इसके लिए केंद्र सरकार ने सभी मनरेगा मजदूरों को एडवांस और अतिरिक्त धनराशि आवंटित कर दी है। लेकिन, उस धनराशि पर ग्राम प्रधानों की गिद्ध नजर पड़ गई है। नजर ऐसी जिससे वह धन आसानी से मजदूरों तक नहीं पहुंचने पाए। प्रधानों का यह तिकड़मी रवैया निश्चित रूप से केंद्र सरकार के मानवीय संकट के वक्त मजदूरों को उबारने के प्रयासों पर धक्का है। ग्राम प्रधान, रोजगार सेवकों, सचिवों और विकास खंड अधिकारियों ने पलीता लगा दिया है।बहुत दुखद है कि संकट के समय भी कुछ लोग अमानवीय हरकतों से बाज नहीं आ रहे। ऐसे वक्त में भी उनके दिमाग में सिर्फ लूट-खसोट पनपती है। मनरेगा में काम करने वाले मजदूरों की कमाई पर भी डाका डालने का प्रयास कर रहे हैं।

उसी कड़ी में मनरेगा धन में सेंधमारी का एक और बड़ा मामला सामने आया है, जहां मनरेगा के मजदूरों की दिहाड़ी पर डाका डालने की कोशिश की गई। मामला उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले का है। मजदूरों के खून-पसीने की कमाई को हड़प करने के प्रयास हुए। प्रयास किसी और नहीं, बल्कि गांव के प्रधान द्वारा किया गया। उसकी होशियारी उस वक्त धरी रह गई, जब रकम डकारने से पहले ही प्रधानपति को जिलाधिकारी ने जेल की हवा खिलवा दी। मजदूरों के पैसों के गड़बड़झाले की शिकायत जब डीएम के पास पहुंची, उन्होंने जांच की तो लाखों की हेरफेर पकड़ में आयी। डीएम के आदेश पर तुरंत पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर उसे जेल भेजा।मनरेगा के पैसों में भ्रष्टाचार का बड़ा तंत्र मिलकर काम करता है। प्रधान से लेकर जिले के कई आलाधिकारी इसमें लिप्त होते हैं।

अगर सख्ती होती तो कोरोना संकट से उबारने के लिए केंद्र सरकार द्वारा दी गई धनराशि पर ये लुटेर सेंध नहीं मार पाते। लाॅकडाउन के दौरान केंद्र सरकार ने समूचे हिंदुस्तान के गरीबों, वृद्धों, मनरेगा मजदूरों, असंगठित क्षेत्रों के मजदूरों व समाज के अन्य जरूरतमंदों को आर्थिक सहयोग प्रदान करने की घोषणा की है। सरकार का मकसद मात्र इतना है कि शायद उनके द्वारा दी जाने वाली सहयता से गरीबों की मुश्किल कुछ कम हो। काम-धंधे ठप होने से दिहाड़ी-मजदूर ज्यादा परेशान न हों इसलिए समय पर उनको मनरेगा की दिहाड़ी मिल सके। पर, उसमें भी लुटेरों का रैकेट सक्रिय हो गया।भ्रष्टाचार का यह गठजोड़ प्रशासन की नाक के नीचे ग्राम पंचायतों के लिए विकास फंड और मनरेगा में आवंटित धनराशि में जमकर घपला करते हैं।

ग्राम प्रधान अपना, अपनी पत्नी व नाबालिग पुत्र-पुत्रियों का गलत तरीके से जॉबकार्ड बनाकर बिना काम करे हजारों रुपये उनके बैंक खातों में डालवाकर हड़पने जैसी अनगिनत शिकायतें जिला प्रशासन और सरकारों को रोजाना मिल रही हैं। प्रधानों की बैंकों से साठगांठ होती। जब भी मजदूरों का पैसा बैंक में आता है तो प्रधान सभी मनरेगा मजदूरों का बैंक पास लेकर बैंक पहुंच जाते हैं। बैंक मैंनेजर का भी चढ़ावा तय होता है इसलिए पैसे निकालने में परेशानी नहीं होती। यूपी के जौनपुर में पिछले सप्ताह एक प्रधान कुछ इसी तरह से धरा गया। प्रधानपति मनरेगा मजदूर को बिना बताये उसका पैसा निकालने बैंक पहुंचा, पैसे निकाल भी चुका था लेकिन समय पर धर लिया गया।

डीएम डीके सिंह ने प्रधान को मनरेगा का पैसा गलत तरीके से निकालने के आरोप में बैंक से ही सीधे जेल भिजवा दिया। मनरेगा के भ्रष्टाचार में कोई एक प्रदेश नहीं, सभी प्रदेशों में इस तरह की शिकायतें हैं।मनरेगा और ग्राम योजनाओं में भ्रष्टाचार किस कदर हावी है इसकी जानकारी प्रदेश सरकारों को भी होती है। समाधान के तौर पर हुई कागजी कार्यवाही इसे रोकने में अबतक नाकाफी साबित हुई है। ग्राम विकास योजनाओं में सरकार द्वारा भेजे जाने वाले पैसों में भ्रष्टाचार रोकने के लिए कई प्रयास हुए, अन्ततः उतनी सफलता नहीं मिली, जिसकी उम्मीद थी। हालांकि योजनाओं का पैसे सीधे पात्रों के बैंक खातों में जाता है लेकिन उसमें भी ग्राम प्रधान दीमक की तरह लग जाते हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)


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