डॉ भुवनेश्वर गर्ग का विशेष लेख : का सत्रहँवा दिन, और क्या खोया क्या पाया मे उलझा इंसान

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डॉ भुवनेश्वर गर्ग

व्यस्तता के दिनों में आपने अपने हर काम को मशीनी अंदाज़ में जल्दी-जल्दी करने की आदत बना ली थी, ना खुद के लिए वक्त, ना परिवार के लिए और ना ही शरीर के लिए। खाना पीना सब भागते दौड़ते। कभी इस मायाजाल से निकलने का सोचा? नहीं ना। लेकिन अब फ़ुरसत के इस काल में, बजाय यह सोचने के, कि यह समय कैसे कटेगा, यह सोचिये कि इस समय का बेहतर से बेहतर उपयोग कैसे किया जा सकता है?

अपनी छूट गई ख्वाहिशों की फेरहिस्त बनाइये, लेकिन ठहरिये, इस लिस्ट के अलावा पहले जल्दी उठने, सूर्य नमस्कार करने और सुबह की धूप में प्राणायाम योग, मेडिटेशन, व्यायाम करने को सर्वोच्च स्थान दीजिये, घर के कामों में यथासंभव हाथ बटाने, घर के सभी लोगों को तनावमुक्त रखने, उनकी क्षमतानुसार उन्हें भी व्यस्त रखने के टास्क, इनडोर गेम्स, भजन पूजन, का भी ध्यान रखिये। अब अपनी सोच और रूटीन में कुछ परिवर्तन करके देखिए, अच्छा लगेगा, समझ आएगा कि अभी तक ऐसा क्यों नहीं किया ?

और हर उस काम को ज़्यादा से ज़्यादा व्यस्तता वाले तरीक़े से कीजिए, जैसे अगर आप इसके पहले कभी जल्दी नहीं उठते थे तो जल्दी उठें, सूर्य के साथ, जी भर के सुबह की हवा में, सूर्य की लालिमा वाली किरणों के संग सूर्य नमस्कार कीजिये, सूर्य को अर्ध्य दीजिए, अपने बच्चों को भी सिखाइये, अपनी, अपने देश की महान परम्पराओं से जुड़ना, उनका सम्मान करना और फिर बिना किसी शर्म, कम से कम कपड़ों में कम से कम एक घंटा इस बेहतरीन समय का सदुपयोग करते हुए व्यायाम कीजिए, कसरत के मायने शरीर, आयु, क्षमता अनुसार अलग अलग हो सकते हैं, जैसे कि अगर आपके पास छत है और उस जगह आपने गमले लगा रखे हैं या आपने घर के आँगन, खुली जगह में गार्डन बना रखा है तो बजाय एक जगह खड़े रहकर पाइप से पानी डालने की बजाय बार बार मग्गे से पानी भर कर लाइए और हर पौधे को प्यार से सींचिये। एक से डेढ़ घंटा अगर आप धूप में, नंगे बदन ऐसा करते हैं तो यकीन मानिये कि आपको विटामिन डी की गोली खाने की कभी जरुरत नहीं पड़ेगी और आपका शरीर, कमर, घुटने आपका हर वक्त साथ देते रहेंगे और बिना जिम जाए, आपकी सारी कसरत भी हो जायेगी और समय,पैसे बचेंगे सो अलग।


आप कह सकते हैं, कि मेरे पास जगह तो है लेकिन पेड़ पौधे नहीं है, तो लिखिए कि समय मिलते ही प्रकृति को अपने घर लाएंगे, आज मेरे घर में सब तरह के फूल, सब्जियां लगी हैं और तितलियाँ, गिलहरियां अठखेलियां करती है सो अलग।

अब बात संयम, समझ और संस्कार की।
एक जानवर भी अपने बच्चों को दुग्धपान की अवस्था पूर्ण हो जाने के बाद दुनिया को फेस करने के लिए अकेला छोड़ देता है और प्रकृति उसे संघर्ष में जीने, बढ़ने और समझने का एक जैसा अवसर देता है। इस शैशव काल में यह जीव जंतु अपना भोजन जुटाने, अपना बचाव सीखने और अपनी शारीरिक क्षमता को विकसित करने का हर वो गुण सीखते हैं जो उन्हें जीवन संघर्ष में ना सिर्फ़ तपाकर कुंदन बना देता है बल्कि भीड़ में सबसे आगे रहने का अवसर भी प्रदान करता है लेकिन जो कमज़ोर, आलसी, मक्कार या अवसरवादी होते है वो इस दौड़ में ना सिर्फ पिछड़ जाते हैं बल्कि किसी न किसी तरह की परेशानी में पड़ते ही हैं और उनकी आयु भी अधिक नहीं होती। इसी तरह मनुष्य जाति भी कभी वानर प्रजाति से लगातार उन्नति करती हुई, संघर्ष करते हुए श्रेष्ठ मानव में तब्दील हुई और आज सारे ब्रहम्मांड पर राज कर रही है। लेकिन समय के साथ ना सिर्फ उसमे अहंकार आ गया, बल्कि स्वार्थ, जलन, ईर्ष्या, लोभ लालच के चलते उसने ना सिर्फ प्राणिजगत का विध्वंस किया बल्कि प्रकृति को भी बेहद नुक्सान पहुँचाया और इसीलिए सृष्टि ने एक छोटे से ना दिखाई देने वाले कीटाणु के जरिये ना सिर्फ उसे नेस्तनाबूद कर डाला बल्कि जिस तरह उसने बेजुबानो को पिंजरों में बंद कर दिया था, आज खुद, अपने ही बनाये हुए दड़बों में डरा सिमटा बैठा है और प्रकृति खिलखिला रही है ।


कुछ इसी तरह आज हमारे घरों में बच्चे, बच्चियों के लिए भी अंधी दौड़ के चलते मनुष्यों ने ऐसा तानाबाना बुन लिया कि जिसमे उनका सर्वांगीण विकास और संघर्षों में खुद को तपाने की क्षमताएं विकसित ही नहीं हो पाईं। जिस सर्वश्रेष्ठ गुरुकुल परंपरा से रामायण, महाभारत जैसे महान शिल्प गढ़े गए, उन्हें एक षड्यंत्र के तहत आज़ादी के बाद चौपट कर दिया गया और हमारे शरीर, मन मस्तिष्क को विदेशी व्यवस्थाओं के लिए लालायित कर अपने देश की परम्पराओं को दोयम समझाने का बीड़ा देशविरोधी ताकतों ने उठा लिया और हम बिना सोचे विचारे उनके प्रभाव में आकर कान्वेण्टों की और दौड़ पड़े।

रही सही कसर लुटियन जमात ने पूरी कर दी, कुटुंब को एकल परिवारों में बाँट, उसमे भी घर के काम कौन करे, बच्चे कौन पाले या उनके सर्वांगीण विकास की और कौन सोचे की कुत्सित सोच घुसा कर? पहले कुटुंब में सबके साथ रहते, लड़ते झगड़ते, खाते पीते बच्चे कब बड़े हो जाते थे, माँ बाप को पता भी नहीं चलता था, बुजुर्गों का मान सम्मान अलग , हर दिन जश्न, सो अलग। लेकिन अब ? ना खुद के लिए समय, ना बच्चे के लिए और नोकरो, आया के सहारे अकेला बड़ा होता बच्चा अपनी हर जिद मनवाता हुआ कब दीन दुनिया से अलग हो एकाकी हो जाता है इसका ज्ञान अमेरिकियों से बेहतर आज किसे है ? हालांकि वृद्धाश्रम की भीड़ यहाँ भी फ़ैल रही है, लेकिन हो सकता है कि करोना काल हमारी आने वाली पीढ़ी को वापिस अपनी जड़ों, संस्कारों, परम्पराओं की और लौटा लाये ?

क्योंकि देश की आज की पीढ़ी ने इस काल में वो देख लिया जो उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था।
आज ७000 अमेरिकी भारत में फंसे हैं, अमेरिका प्लेन भेजकर बुलाने को तैयार है लेकिन अधिकाँश ने वापस जाने मना कर दिया! क्यों ? क्योंकि उन्हें आज अपने देश से ज्यादा, भारत पर, यहाँ के खानपान, चिकित्सा और कुटुम्बीय परम्पराओं पर ज्यादा भरोसा है।

क्या शानदार आगाज़ है आपदा में आस्था का ।
और वहीँ दूसरी और सर्वशक्तिशाली होते हुए भी आज चीन अपनी बेईमानी और कुत्सित चालों की वजह से ना सिर्फ सारे विश्व में बदनाम हो चुका है, अपितु जापान जैसे स्वाभिमानी देश ने भी अपने सभी व्यापारिक संस्थानों को ना सिर्फ चीन से हटने का आदेश दे दिया है बल्कि उन्हें क्षतिपूर्ति के तौर पर भीमकाय पैकेज भी घोषित कर दिया है और उनमे से अधिकतर ने भारत में, मोदीजी के नेतृत्व पर भरोसा जता, भारत में आने की मंशा जताई है।

क्या यह बिना मोदी संभव था? केदार आपदा में सबने देखा कि तत्कालीन सरकार ने क्या किया, और आज जमात प्रकरण के बावजूद करोना पर भारत के प्रयास सारे विश्व ने ना सिर्फ सराहे बल्कि भारत का अनुसरण करते हुए, उससे दवाइयों की भी मदद मांग कर रहे हैं, वहीँ दूसरी और दुनिया पीएम केयर फंड पर लुटेरों की लपलपाती जीभ भी देख रही है। यही तो है सोच, संस्कार और कर्मों का लेखा जोखा और महर्षि करपात्री जी के श्राप से आज क्षिन्नभिन्न होता, चापलूसों से घिरा लुटेरा वंश मरणासन्न है फिर भी पूर्ण नंगई पर उतरा हुआ है ।

सीधे शब्दों में यही तो वक्त है सच देखने और सच के साथ खड़े होने का और गलत को गलत कहने का और आपकी यही सही सोच, सुचिता और सटीक नीतियां, आपकी ईमानदारी और साफ सुथरी छवि आज ना कल आपको सम्मान दिलवाती ही हैं, कई बार, कुछ साजिशों के तहत इसमे देरी हो सकती है लेकिन परिश्रम का, त्याग का, सेवा का फल मिलता जरूर है ।

और हाँ, चलते चलते मोदीजी ने कहा है, टेंशन नइ लेने का, मास्क पर पैसे नइ खर्चने का और खुश रहने का, गमछे का उपयोग करने का और लॉकडाउन में घर से बाहर कदम नहीं रखने का, सोशियल डिस्टेंसिंग को मैंटेन करने का । ठीक है ?

अब जो नहीं मानेगा तो उसके लिए बाहर करोना है ही, उसने पकड़ा तो फिर घर वाले गाड़ने फूंकने तक नहीं आएंगे । लावारिस जलोगे, गडोगे सो अलग । तो घर में रहने का, सुरक्षित रह सबका भला करने का ।
जिस देश में दीवारों पर, लिखा होता था कि यहाँ थूकना, मूतना मना है,
आज वहां नए हर्फ़ उकेरें जा रहे हैं ।

यह बदलता हिन्दोस्तां है जनाब, अब यहाँ आज़ादी के असल मायने गढ़े जा रहे हैं। जयहिंद।।


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