उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की ओर से बिरहा सम्राट डॉ मन्नू यादव “कृष्ण” को पं रामनरेश त्रिपाठी पुरस्कार से किया गया सम्मानित

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डॉ अजय ओझा।

लखनऊ, 30 दिसंबर । उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में शासन की ओर से उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा “पंडित राम नरेश त्रिपाठी पुरस्कार” से सम्मानित किया गया। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ के निदेशक आर के सिंह वरिष्ठ आईएएस अधिकारी द्वारा हिंदी संस्थान ऑडिटोरियम में देश के कोने कोने से आए लगभग 40 साहित्यकारों को वर्ष 2021 में उनकी पुस्तकों के लिये पुरस्कार प्रदान किया गया। लोक गायक, शिक्षक के रूप में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जनपद का नाम रौशन करने वाले डॉ मन्नू यादव ग्राम काशीपुर तहसील चुनार जिला मिर्जापुर निवासी प्राथमिक कक्षाओं से लोक गायकी के प्रति बाल कलाकार के रूप में प्रसिद्ध प्राप्त की। समय बदलता गया और शिक्षा के साथ-साथ गायकी को आत्मसात करने वाले डॉक्टर यादव अब बतौर साहित्यकार के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की है।”बिरहा दर्शन इतिहास संस्कृति और परंपरा” नामक पुस्तक लिखने के बाद उनकी कृति “कजरी मीमांसा लोक संस्कृति और परंपरा” नामक पुस्तक को वर्ष 2021 के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया जायेगा। पेशे से शिक्षक डा यादव जमालपुर ब्लाक के प्रा वि सरसा पर प्रधानाध्यापक पद पर कार्यरत हैं। पिछले साल उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से दुबई में मीरजापुरी कजरी और बिरहा के लोक छंदों से पुरे विश्व के देशो में सोधी मिटटी की सुगंध बिखेरने वाले डॉक्टर यादव इसी वर्ष एस सीइआरटी द्वारा बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से लोक संगीत विषय पर परामर्शदाता प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं।

वरिष्ठ आई ए एस आर के सिंह निदेशक उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ के कर कमलों से लोक साहित्य विवेचन विषय पर “पं0 रामनरेश त्रिपाठी पुरस्कार वर्ष 2021” प्राप्त करते हुए अंतरराष्ट्रीय लोक गायक साहित्यकार डॉ मन्नू यादव “कृष्ण”

आकाशवाणी,दूरदर्शन,संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली से संम्बद्ध श्री यादव देश में तथा विदेशों में होने वाले आयोजनो में लोक संगीत बिरहा का प्रतिनिधित्व करते रहते हैं।राष्ट्रीय बिरहा अकादमी पूर्वी परिसर औद्योगिक नगर ग्राम कटारिया, तथा मुख्य परिसर ग्राम बरयीपुर सिकरा मीरजापुर में निःशुल्क प्रशिक्षण दे कर लोक संगीत के विलुप्त हो रहे लोकधुनों के संरक्षण का कार्य भी करते हैं। आने वाली भावी पीढ़ी को अपने संस्कार गीत,तथा प्रचलित लोक गीतों के संरक्षण का कार्य भी करते हैं जिससे भारत की लोक संस्कृति बची रहे।अब तक लगभग एक दर्जन नामचीन विश्वविद्यालयों में लोक संगीत पर व्याख्यान दे कर लोक परंपराओं को बल प्रदान करते रहे हैं। विदेशों में भी इनकी ख्याति लोकछंदों की प्रस्तुति के कारण रही है वही भारत के हिन्दी अखबारों में लेख प्रकाशित होते रहते हैं।


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