जीत के दावे पर तकरार नतीजों का बेसब्र इंतजार
देवदत्त दुबे।
भोपाल, नवम्बर 9। अब जबकि 24 घंटे बाद प्रदेश में संपन्न हुए 28 विधानसभा के उपचुनाव के परिणाम आने लगेंगे तब भी अपनी-अपनी जीत के दावे पर राजनीतिक दलों की तकरार जारी है । वही अब नतीजों का बेसब्री से प्रदेश में इंतजार है क्योंकि यह चुनाव परिणाम भविष्य की सरकार ही नहीं बल्कि प्रदेश की राजनीति की दिशा तय करने वाले हैं ।
दरअसल जब लोकसभा या विधानसभा के आम चुनाव होते हैं और किसी पार्टी के पक्ष में लहर होती है तब नतीजों के प्रति उदासीनता बन जाती है । केवल उत्सुकता यही रहती है की भारी बहुमत से कौन जीत रहा है । लेकिन प्रदेश में संपन्न हुए 28 विधानसभा सीटों के उपचुनाव और उसके बाद एग्जिट पोल में जो रुझान देखे हैं तब से राजनीतिक दलों के बीच अपने अपने जीत के दावे जोर शोर से और तथ्यों और तर्कों के आधार पर किए जा रहे हैं । कोई भी दल अपनी सीटें कम करने को तैयार नहीं है और यदि दोनों दलों की जीतने वाली सीटों की संख्या जोड़ दी जाए तो 50 सीटों से ऊपर हो रही है जबकि चुनाव केवल 28 सीटों पर हुए हैं और नतीजे भी 28 सीटों पर आना है ।रविवार को भाजपा प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने ने जहां सभी 28 सीटें जीतने का दावा ठोका है वही कांग्रेस की ओर से अधिवक्ता विवेक तंखा ने 20 सीटों से ऊपर जीतने की दम भरी है। इसके पहले पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सभी सीटें जीतने की बात कह चुके हैं जबकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार सभी सीटों को जीतने का इरादा जाहिर करते आ रहे हैं । लेकिन दोनों ही दलों की ओर से जिस तरह से भविष्य की तैयारियां की जा रही है उससे लगता है कि कोई भी दल 15 सीटों से ज्यादा जीतने की स्थिति में नहीं है लगभग बराबरी की सीटें आने का अनुमान।
राजनीतिक विश्लेषक भी लगा रहे हैं
बहरहाल पिछले कुछ महीनों से प्रदेश में चल रही राजनैतिक उठापटक को प्रदेश की जनता किस नजरिए से देख रही है इसके लिए 28 सीटों के परिणाम देखने की उत्सुकता सभी को है हालांकि कोरोना महामारी के कारण चुनाव घटनाक्रम के तुरंत बाद नहीं हो पाए जिससे कि मतदाता का मूड बदलने के लिए भी पर्याप्त समय मिल गया इसलिए निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता कि जो घटनाक्रम गठित हुआ था उसको लेकर आमजन क्या सोचता है वह परिणाम में भी छलके गा क्योंकि कई बार प्रत्याशियों के कारण भी मतदाता का मन बदल जाता है लेकिन इतना तो तय है कि जिस तरह से राजनीतिक घमासान नेताओं के बिगड़े बोल और चुनाव बाद जो जोड़-तोड़ शुरू हुई है की कई नेताओं को अपने जहां राजनीतिक भविष्य की चिंता है वहीं राजनीतिक दलों को 2023 के लिए अभी से जमीन तैयार करने का दबाव है इसी कारण दोनों ही दल इन चुनावों में जहां करो या मरो का नारा था वहां जिन लोगों ने पार्टी के लिए काम किया है उन को पुरस्कृत करने और जिन नेताओं ने पार्टी के साथ गद्दारी की है उनको दंडित करने की भी जल्दबाजी है कभी प्रदेश में कांग्रेस मुक्त प्रदेश का नारा देने वाली भाजपा अब कांग्रेश को गंभीरता से ले रही है और जिस तरह की पिछले दिनों कार्रवाई शुरू की गई है वह भविष्य की दिशा दिखा रही है कि अब विरोधी दल को हल्के में नहीं लिया जाएगा
कुल मिलाकर प्रदेश का राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका है अब पहले की तरह भाजपा और कांग्रेस नेताओं के बीच जो मेल मिलाप और अंदरूनी गठबंधन चलता था वह अब शायद ही चले क्योंकि शह मात का खेल शुरू हो गया है अधिकारी वर्ग और मीडिया तक को दलों में बांटा जा रहा है जिससे अब किसी भी दल के कमजोर होने या किसी भी दल के एक तरफा साम्राज्य होने के संकेत दिखाई नहीं दे रहे है यही कारण है कि 28 सीटों के परिणामों का प्रदेशवासियों को बेसब्री से इंतजार है और ईवीएम में बंद हो चुके जनादेश प्रभावित नहीं किया जा सकता इसके बावजूद जीत के दावों के प्रति इतनी तकरार है जैसे मतगणना के पहले इन दावों से परिणाम बदल जाएंगे हालांकि इसे अधिकारी और कर्मचारियों को दबाव के रूप में देखा जाता है