इलाहाबादी चाय की दुकान
जब भी हँसने का मन होता है,
चाय की दुकान पर जाता हूँ,
एक प्याली चाय मंगाता हूँ ।
ये बड़ी ही दिलचस्प जगह होती है,
वर्जनाएं यंहा तार-तार होती हैं।
लोग अपने मन की हर बात कहने लगते हैं,
जब वो भावनाओं मे बहने लगते हैं ।
यहां आने वालों को कभी कम ना समझना
भूलकर भी इनसे ना उलझना ।
ये लेते हैं ठेके बिकवाते है जमीन करवाते हैं पेपर आउट,
पर निज भविष्य को लेकर ही होता है सबसे बड़ा डाऊट।
हर छोटे बड़े मुद्दे पर होती है यहाँ व्यापक चर्चा,
पर केंद्र बिंदु बनता है अब कौन देगा चाय का ख़र्चा ।
अखबार यहाँ बहुत प्रेम से शेयर होता है,
एडिटोरियल मिलना तो रेयर होता है ।
क्योंकि वो तो बिछ जाता है दुकान की मेज पर,
मंगवाना पड़ता है उसे ‘छोटू’ को भेज कर।
अचानक चाय वाला समेटने लगा चाय और खस्ता,
सामने से आने लगा नगर निगम का दस्ता।
बैठे लोगों को जरूरी काम याद आने लगा,
दुकान हुई बंद मैं भी अब जाने लगा।