अवध विश्वविद्यालय में फैली भ्रष्टाचार पर कब जाएगा सरकार का ध्यान
ओम प्रकाश सिंह, अयोध्या।
‘इस सड़क पर इस कदर कीचड़ बिछी है, हर किसी का पांव घुटनों तक सना है।’ यह पंक्तियां प्रदेश के प्रमुख विश्वविद्यालयों में से एक अवध विश्वविद्यालय की प्रशासनिक व्यवस्था का हाल बताने को सबसे उपयुक्त हैं। यह तो सामान्य बात हो चुकी है कि विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार की हर दिन नई परतें खुलती हैं, लेकिन उसे दबाने व बचाने को जिस तरह से प्रयास होते हैं वह हैरान करने वाले हैं और बड़े षड्यंत्र का संकेत करते हैं।
इसी क्रम में एकबार फिर विश्वविद्यालय गोपनीयता और जांच समिति गठित करने के नाम पर अपने कुकर्मों को ढकने की कवायद कर रहा है। पिछले कुछ माह पूर्व कुलपति रविशंकर सिंह पटेल के समय में हुई अवैध शिक्षक नियुक्तियों को लेकर कार्यपरिषद की बैठक में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से जांच कराने का निर्णय लिया गया है। बिना एजेंडे के बुलाई गई कार्य परिषद की यह बैठक, राजभवन में हुई शिकायतों के संदर्भ में आए पत्र पर हुई। राजभवन के पत्र में भी सीधी कारवाई की बात कही गई है लेकिन कार्यपरिषद ने जांच कराने का निर्णय लेकर अवैध नियुक्तियों के खेल में शामिल लोगों को राहत दे दिया है।
उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की मनमानी चरम पर है। कुलाधिपति से शिकायत होती है तो उनके आदेशों को भी जांच समिति बनाकर लटका दिया जाता है। मनमानी करने के लिए अवध विश्वविद्यालय में कोर्ट का चुनाव भी नहीं कराया जा रहा है। कोर्ट के रास्ते चार सदस्य कार्य परिषद में छात्र प्रतिनिधि के तौर पर चुने जाते हैं। इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर राज भवन भी कोई दिशा निर्देश नहीं दे रहा जबकि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री लोकतांत्रिक व्यवस्था की रक्षा करने की बात करते रहते हैं।
राम नगरी के डाक्टर राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में तो यह खेला जोरों पर है। प्रसिद्ध कवि दुष्यंत कुमार के शब्दों में कहें तो इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके जुर्म हैं। अवध विश्वविद्यालय को अवैध का तमगा भी हासिल है। पूर्व कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित के कार्यकाल में जो कुछ अच्छा भी हुआ तो पूर्व कुलपति रविशंकर सिंह पटेल के कार्यकाल में सब स्वाहा हो गया।
रविशंकर सिंह पटेल और उनके ओएसडी शैलेंद्र सिंह पटेल ने शिक्षकों की अवैध नियुक्तियों, दीपोत्सव के नाम पर वसूली के साथ सजातीय लोगों को एडजस्ट करने का ऐसा खेला खेला कि राज्यपाल आनंदी बेन पटेल को कार्यकाल पूरा होने से एक साल पहले ही कुलपति से इस्तीफा लेना पड़ गया। अवध विश्वविद्यालय प्रशासन राजभवन के आदेशों की किस तरह बखिया उधेड़ता है, इसको भौतिकी विज्ञान विभाग की एक शिक्षिका के संदर्भ में देखा जा सकता है।
इस विभाग में कार्यरत एक शिक्षिका के मामले में राज्यपाल का स्पष्ट आदेश है कि यह नियुक्ति अवैध, अविधिक है। राज्यपाल ने विश्वविद्यालय को इस संदर्भ में निर्णय लेने के लिए आदेश दिया था। लगभग एक वर्ष बीत चुके हैं, विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति रविशंकर सिंह पटेल ने लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बालकदास को जांच समिति का अध्यक्ष बनाकर मामले को लटका दिया। अवैध नियुक्तियों के इस खेल में कुलपति व अन्य जिम्मेदारों के साथ कुलसचिव भी शामिल हैं। अवध विश्वविद्यालय अनुदानित महाविद्यालय शिक्षक संघ ने भी कुलसचिव की शिकायत पर मोर्चा खोल रखा है। कुलसचिव के खिलाफ भी सीधी कारवाई ना करके शासन ने एक उच्च स्तरीय जांच समिति गठित कर दिया है। साकेत महाविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर जनमेजय तिवारी सहित कई संभ्रांत लोगों ने राज्यपाल, मुख्यमंत्री को मेल,पत्र भेजकर कुलपति को बर्खास्त कर नियुक्तियों को निरस्त करने की मांग किया था। शिकायतकर्ताओं को भी कई तरीकों से निशाना बनाया गया। जनमेजय तिवारी के खिलाफ राजभवन को फर्जी पत्र भेजकर उनकी पीएचडी की जांच ही कुलपति ने करा डाली थी। शिकायतकर्ता पूर्व कार्य परिषद सदस्य ओम प्रकाश सिंह कहते हैं कि ‘मैं बेपनाह अँधेरों को सुबह कैसे कहूँ, मैं इन नज़ारों का अंधा तमाशबीन नहीं। पूरी कार्यप्रणाली व शासन का रवैया देखकर ऐसा लगता है कि जैसे सबने विश्वविद्यालय को बर्बाद करने की कसम खा रखी हो। रामनगगरी में शिक्षा के मंदिर को जिस तरह से दूषित किया जा रहा है, वह बेहद दुःखद है।