राष्ट्रप्रेम के जज्बे ने दे दी सुहाग की साड़ी की आहुति

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मनीष कपूर।
प्रयागराज। निस्वार्थ भाव और पूर्ण श्रद्धा के साथ देश हित में किए गए कार्यों को ही सच्ची राष्ट्रभक्ति कहा जाता है।जहां न तो जान की परवाह हो न धन का लोभ और न शगुन अपशगुन की चिंता।सर पर देश से अंग्रेजों को भगाने का जुनून। इसी जुनून में कुंवर रतन सिंह अपनी पत्नी की सुहाग की साड़ी को भी विदेशी वस्तुओं के हवन में आहुति दे देता है। क्योंकि वह साड़ी विदेशी होती है।कुछ ऐसा ही दृश्य रविवार को कला भवन ,उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र में सांस्कृतिक संस्था एकता द्वारा मुंशी प्रेमचंद कृत नाट्य प्रस्तुति “सुहाग की साड़ी” में देखने को मिला।

नाटक “सुहाग की साड़ी” स्वतंत्रता आंदोलन के समय चलाए जा रहे विदेशी सामानों के बहिष्कार आंदोलन पर आधारित था।नाटक में यह दिखाने का प्रयास किया गया कि उसूलों और सिद्धांतों के आगे किसी भी प्रकार की मान्यताओं का कोई अर्थ नही होता।नाटक की कहानी गांव के जमींदार कुंवर रतन सिंह और उनकी पत्नी गौरा के इर्द गिर्द घूमती है। रतन सिंह विदेशी सामानों के बहिष्कार आंदोलन की अगुवाई कर रहा होता है। वह बहुत ही महत्वाकांक्षी और सिद्धांतवादी हैं।एक दिन विदेशी सामानों के बहिष्कार आंदोलन के लोगों ने रतन सिंह के घर के सामने विदेशी सामानों की आहुति देने का कार्यक्रम बनाया।वह सब रतन सिंह से विदेशी सामानों को जलाने को कहते हैं।रतन सिंह की पत्नी गौरा के विचार भिन्न होते हैं।उसका मानना होता है कि अपना घर फूंकने से स्वराज नही मिलने वाला।लेकिन रतन सिंह अपने उसूलों का पक्का है।उसका मानना है विलायत का एक सूत भी मेरे प्रण को भंग कर देगा।पति के बहुत कहने पर गौरा घर में रखा सारा सामान तो दे देती है लेकिन एक रेशमी साड़ी को देने से मना कर देती है। क्योंकि यह साड़ी उसकी सुहाग की है।रतन सिंह कहता है देश से बढ़ कर मैं किसी मान्यताओं को नही मानता।विदेश सामानों को मैं शुभ स्थान नही दे सकता।पवित्र संस्कार का यह अपवित्र स्मृति चिह्न घर पर नही रख सकता। सबसे पहले मैं इसी को होली की भेंट करूंगा।विदेश वस्त्र को घर में रख कर स्वदेशी व्रत का पालन कैसे करूंगा। पति की इस प्रकार की बातों से प्रभावित होकर आखिरकार गौरा यह कहते हुए अपनी साड़ी दे देती हैं कि अमंगल के भय से मैं तुम्हारी आत्मा को कष्ट नहीं नही दे सकती।वह अपने सुहाग की साड़ी पति को दहन के लिए दे देती है।इस दृश्य ने दर्शकों को भाव विभोर कर दिया।

संवाद एवं कथावस्तु की मजबूती ने नाटक को पूरे समय दर्शकों से बांधे रखा।निर्देशक के रूप में युवा रंगकर्मी अनूप श्रीवास्तव ने कलाकारों से जीवंत अभिनय कराकर अपनी योग्यता का परिचय दिया।अभिनय की दृष्टि से कुंवर रतन सिंह की भूमिका में सिद्धांत चंद्रा,गौरा की भूमिका में श्रेया सिंह,केसर महरी की भूमिका में नेहा यादव,रामटहल साईस की भूमिका में आथर्व सिंह ने अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों को बहुत प्रभावित किया।इसके अलावा रतीभान सिंह, राहुल यादव,आदित्य सिंह,अनुभव,शुभम,अमन,सर्वेश प्रजापति,इशिता,राहुल,अनुभव,पृथ्वीराज ने भी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया।प्रकाश व्यवस्था सुबोध सिंह,संगीत परिकल्पना मनोज गुप्ता,रूप सज्जा मो. हामिद अंसारी,सेट निर्माण आरिश जमील,वस्त्र विन्यास आशी अहमद,रतीभान,पोस्टर डिजाइन शाहबाज अहमद,मंच व्यवस्था उत्तम कुमार बैनर्जी की थी।प्रस्तुति नियंत्रक पंकज गौड़ थे।इस मौके पर विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. विभा मिश्रा (सहायक निदेशक लघु उद्योग एवं सूक्ष्म मंत्रालय भारत सरकार), श्री लोकेश कुमार शुक्ला (केन्द्र निदेशक आकाशवाणी प्रयागराज), वीरेंद्र कुमार सिंह (प्रबंधक गुरुकुल मांटेसरी स्कूल फाफामऊ), श्री अजामिल व्यास (वरिष्ठ रंगकर्मी/ चित्रकार), श्री बांके बिहारी पांडे (प्रधानाचार्य रानी रेवती देवी सरस्वती विद्या निकेतन इंटर कॉलेज, राजापुर), श्री विभु गुप्ता (वरिष्ठ प्रेस फोटोग्राफर)थे।संस्था के महासचिव जमील अहमद ने अतिथियों का स्वागत किया एवं संस्था की जानकारी दी जबकि धन्यवाद ज्ञापित संस्था के अध्यक्ष रतन दीक्षित ने किया।मंच संचालन सुश्री शांता सिंह ने किया।


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