हिमालयी क्षेत्र के निर्मम दोहन से गंभीर स्थिति- रेवती रमन सिंह

Share:

दरकतें जोशीमठ पर चिंता व्यक्त किया कुंवर रेवती रमण सिंह ने।

प्रयागराज 21 मार्च। पूर्व सांसद कुंवर रेवती रमण सिंह ने लोकसभा व राज्यसभा में गंगा व हिमालयी पर्यावरण पर कई बार चिंता व्यक्त कर चुके हैं तथा इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी से व्यक्तिगत मिल कर गंगाजी कि दुर्दशा व चारधाम परियोजना से होने वाले दुस्परिणाम के लिए चेताते हुए कहा था कि गंगा और उसका हिमालयी भू-भाग जोकि भारत की आत्मा, सनातन संस्कृति का उद्गम रहा है, यह सर्वोच्च तीर्थ है जहां सदियों से आध्यात्मिक विकास की यात्रा के लिए हम जाते रहे हैं। किन्तु आज विकास के नाम पर गंगा और हिमालय का निर्मम दोहन कर, इन पावन और दिव्य हिमालयी तीर्थों को पर्यटन, शोर-शराबे और बाजार के रूप में बदला जा रहा है। जिसके परिणामस्वरूप इसके पर्यावरण पर गंभीर दुष्परिणाम हो रहे हैं। ग्लेसिएर तेजी से पिघल रहे हैं, नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि 60% जल-श्रोत सूखने की कगार पर हैं। गंगा के क्षेत्र में औसत से 3 गुना अधिक मिट्टी का कटाव हो रहा है।climate change का खतरा हिमालय पर वैसे जी मंडरा रहा है।
सांसद ने कहा कि हमने 2013 केदारनाथ की आपदा देखी, फिर 2021 में ऋषि गंगा की प्रलय देखी। फिर भी सरकार गंगा और हिमालय को विनष्ट करने पर आमादा है।उन्होंने कहा कि गंगा और उसकी धाराओं पर 7 बांधों के निर्माण की संस्तुति हाल ही में केंद्र ने की, और भी 24 अन्य बांधों पर केंद्र ने चुप्पी साध रखी है।

उन्होंने कहा कि ‘चार-धामों’ को ‘चार-दामों’ में बदलने की होड़ जारी है, लाखों हिमालयी पेड़ (देवदार, बाँझ, बुरांश, चीड़, कैल, पदम् आदि) निर्मम रूप से चारधाम सड़क परियोजना के चौडीकरण में काट दिए गए। इसके चलते 200 से ऊपर भूस्खलन संवेदी ज़ोन पूरे चारधाम मार्ग पर सक्रिय हो गए हैं।
उन्होंने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को सड़क की चौड़ाई का मानक ठीक करने को कहा तो केंद्र ने रक्षा-मंत्रालय को ढाल बनाकर इस हानिकारक प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाया. जब हिमालय टूट कर गिरेगा तो कैसे सेना बॉर्डर तक पहुँच पाएगी. हम यह भूल गए कि स्थायी/स्थिर हिमालय हमारी पहली सुरक्षा-ढाल है। हम हिमालय को ही आज अपूरणीय क्षति पहुंचा रहे हैं।उन्होंने कहा कि इतने में ही चारधाम को हम नहीं बक्श रहे, सुनने में आ रहा है कि चारधाम को अब रेलवे नेटवर्क से जोड़ने की तैयारी है। यह सब हिमालयी घाटियों की धारण-क्षमता के विचार को दरकिनार कर अंधाधुन्द किया जा रहा है। सब वैज्ञानिक चेतावनियों को नजरअंदाज कर, यह आत्मघाती कदम हम तेजी से बढ़ा रहे हैं. यदि हिमालय न रहा, यदि गंगा न बची तो फिर हम कौन से देश की बात करेंगे, हमारी सभ्यता, संस्कृति और पहचान की कीमत पर हम कौन सा विकास कर लेंगे ?
सपा जिलाउपाध्यक्ष विनय कुशवाहा ने बताया कि सांसद कुंवर रेवती रमण सिंह दशकों से गंगा व हिमालयी पर्यावरण पर संसद से सड़क तक आवाज उठाते रहे हैं पर उनकी हर मांग को अनसुना किया गया जिसका नतीजा आज जोशीमठ में नजर आ रहा था इसी तरह पुरा हिमालय क्षेत्र खासकर उत्तराखंड पर्यावरण बम पर बैठा है।उन्होंने कहा कि गंगा और हिमालय न केवल अमूल्य पर्यावरणीय संसाधन अपितु हमारी सांस्कृतिक, आध्यात्मिक राष्ट्रीय धरोहर भी हैं। इसलिए हैवी मशीनों से हिमालय को रौंदना तत्काल बंद किया जाए।


Share: