नीजि विश्वविद्यालयों को निरंतर स्वयं को साबित करना होगा : राज्यपाल

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डॉ अजय ओझा।

विश्वविद्यालय सिर्फ डिग्रियां नहीं बांटे बल्कि छात्रों का सर्वांगीण विकास करें।

अरका जैन विश्वविद्यालय सरायकेला-खरसावां के प्रथम दीक्षांत समारोह के अवसर पर माननीय राज्यपाल महोदय का सम्बोधन।

रांची, 10 अक्टूबर । अरका जैन विश्वविद्यालय सरायकेला-खरसावां के प्रथम दिक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए राज्यपाल रमेश बैस ने कहा कि सर्वप्रथम, आज के दीक्षांत समारोह में उपाधि ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों एवं पदक विजेताओं और शोधकर्ताओं को मैं हार्दिक बधाई देता हूँ और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ। आपकी इस उपलब्धि में योगदान देने वाले सभी शिक्षक, अभिभावक एवं आपके परिवार के सदस्यगण भी बधाई के पात्र हैं। आपके माता-पिता के लिए आज का दिन विशेष है क्योंकि उन्होंने आपकी शिक्षा-दीक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपनी व्यक्तिगत ख़ुशी का भी त्याग किया होगा।

उपाधि ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों के लिए आज का दिन विशेष तो है ही, अन्य विद्यार्थियों के लिए भी प्रेरणादायी है क्योंकि उनको यह दिन अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए और भी प्रेरित करेगा और उनमे नयी उर्जा भरेगा। दीक्षांत समारोह एक महत्वपूर्ण शैक्षणिक पड़ाव होता है। मैं सभी विद्यार्थियों से कहना चाहूँगा कि केवल उपाधि लेना ही आपके जीवन का मकसद नहीं होना चाहिये। आपको अपने जीवन में सही दृष्टिकोण के साथ सही राह का भी चयन करना है। आपको जीवन के कर्म-क्षेत्र में प्रवेश कर अपनी दक्षता एवं परिश्रम से अपनी पहचान और उत्कृष्टता स्थापित करनी है।आपके अंदर हमेशा सीखने की इच्छा व लालसा होनी चाहिए। आप अपने ज्ञान का उपयोग करते हुए सदा अपने कर्मों से स्वयं के साथ अपने समाज का भी नाम रौशन करें क्योंकि यह आपका एक सामाजिक दायित्व भी है। आपको सामाजिक मुद्दों को विवेकपूर्ण तरीके से देखने की जरूरत है। मै अरका जैन युनिवर्सिटी को झारखण्ड की शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने एवं समाज के विभिन्न वर्गों को शिक्षा की सुविधा मुहैय्या कराने के लिए बधाई देता हूँ। मुझे बताया गया है कि इस विश्वविद्यालय में नामांकित विद्यार्थियों में से लगभग 35 से 40 प्रतिशत लड़कियाँ हैं जो नारी शिक्षा के सन्दर्भ में शुभ संकेत है।
 आज के दीक्षान्त समारोह में कुल 31 स्वर्ण पदक प्रापकों में से 20 छात्राएँ हैं जो नारी सशक्तिकरण का एक सुखद और दिव्या उदाहरण है। यह बहुत ही प्रसन्नता की बात है कि आज हमारी बेटियाँ उच्च शिक्षा हासिल करने के प्रति बहुत जागरूक हो रही हैं और उत्कृष्ट प्रदर्शन भी कर रही हैं।

राज्यपाल ने कहा कि प्रिय विद्यार्थियों देश की सामाजिक-आर्थिक प्रगति अनेक महत्वपूर्ण कारकों पर निर्भर होती है, जिसमें शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण है। उच्च और उत्तम शिक्षा न केवल एक विद्यार्थी की जीविकोपार्जन अथवा आजीविका की संभावनाओं को तय करती है बल्कि उसके व्यक्तित्व को भी दिशा देती है। जब व्यक्ति कुशल, कर्मठ एवं दक्ष हो जाए तब जाकर वह संसाधन के रूप में माना जाता है और तब उसके कार्यों से परिवार, समाज और देश लाभान्वित होता है। देश में उच्च शिक्षा के दायरे का काफी विस्तार हुआ है और आज हमारे शिक्षण संस्थानों में पहले से कहीं अधिक विद्यार्थी पढ़ रहे हैं। लेकिन, हमें जिस बात पर अब भी ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, वह है शिक्षा की गुणवत्ता और यह आप जैसे शिक्षण संस्थानों को सुनिश्चित करना होगा की हम अपने युवाओं के लिए गुणात्मक शिक्षा उप्लब्ध करायें।

उन्होंने कहा कि मुझे आशा है कि आप अपने चुने हुए पेशे या करियर में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए लगातार अधिक ज्ञान प्राप्त करने के साथ ही अपने सॉफ्ट स्किल्स को विकसित करने और देश के अच्छे नागरिक होने के अलावा अपने क्षेत्र में नवीनतम तकनीक और विचारों के साथ खुद को लैस करने का प्रयास करते रहेंगे। हमें विश्वविद्यालयीय उपाधियों के साथ कौशल विकास के हर एक पहलू में युवा शक्ति अपनी सहभागिता निभा सके और भारत के विकसित होने की दिशा में नए आयाम जुड़ सके। ज्ञान को प्रायोगिक रूप में उपयोग करने में हमें सक्षम होना होगा ताकि यह शताब्दी हमारी हो और विश्वकल्याण में हम भारतीय भी अपनी महती भूमिका निभा कर गर्व महसूस करें।

राज्यपाल ने कहा कि झारखण्ड एक प्राकृतिक सम्पदा संपन्न राज्य है और अच्छे उद्यमियों के जरिये इस राज्य को देश के विकसित राज्यों की सूचि में लाने की दिशा में सोचना होगा। जिसके लिए आप जैसे युवाओं को आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन का उदहारण प्रस्तुत कर रोजगार लेने के बजाय रोजगार देने की सोच पैदा करनी पड़ेगी। शिक्षण संस्थान का दायित्व सिर्फ विद्यार्थियों को किताबों तक सीमित रखना, उन्हें डिग्रियाँ बाँटने तक ही सीमित नहीं होना चाहिये, बल्कि उनमें जीवन में बेहतर करने की ललक जगाना, उनकी प्रतिभा को निखारना और उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास पर ज़ोर देना होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूँ कि हमारे राज्य में स्थापित निजी विश्वविद्यालयों में ज्ञान का ऐसा वातावरण स्थापित हों कि कि वे अन्य राज्यों के विश्वविद्यालयों के लिए अनुकरणीय बनें। हमारे देश में देखा जाता है कि विद्यार्थी और अभिभावक अक्सर निजी विश्वविद्यालयों के प्रति सशंकित रहते हैं व संकोच करते हैं। वे अधिकतर नवनिर्मित निजी विश्वविद्यालयों के मुकाबले पुराने और स्थापित सरकारी विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करना अधिक पसंद करते हैं। लोगों में विश्वास पैदा करने के लिए, निजी विश्वविद्यालयों को निरंतर स्वयं को साबित करना होगा।

शिक्षण संस्थानों की यह कोशिश होनी चाहिए कि विद्यार्थी एक सामाजिक, सु-संस्कृत और कुशल नागरिक के रूप में विकसित हों। विद्यार्थी अपने जीवन में अनुशासन एवं विनम्रता को अपनाएं। विद्यार्थियों में मातृभूमि के प्रति प्रेम एवं जन-कल्याण की भावना होनी चाहिए, जब भी अवसर मिले, वे लोगों की भलाई करें। हमें अपने युवाओं में स्थित रचनात्मक शक्ति और रचनात्मक ऊर्जा पर पूर्ण उम्मीद है। भविष्य को दिशा देने का उत्तरदायित्व हमारे युवाओं पर ही है और युवाओं को सही दिशा देने का अहम कार्य हमारे शिक्षण संस्थानों का ही है। आप देश के विश्वास पर खरा उतरें, कठिन परिश्रम करें, अपना आत्मविश्वास बढ़ायें, सकारात्मक सोच रखें और प्रतिबद्धता के साथ अपने कर्म करते रहें ताकि आपकी एक विशिष्ट और अलग पहचान बने तभी आप देश और समाज के लिए अमूल्य संपदा सिद्ध होंगे। मेरा आशीर्वाद सदैव आप सभी के साथ है। मैं आशा करता हूँ आज के दीक्षांत में उपाधियों के प्रापक समावेशी व्यक्तित्व का विकास, चारित्रिक निर्माण, नागरिकता एवं सामाजिक कर्त्तव्य पालन की भावना का समावेश, सामजिक कुशलता की उन्नति एवं राष्ट्रीय संस्कृति का संरक्षण एवं प्रसार आदि प्राचीन भारत की शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य व आदर्श को जीवंत रखने का संकल्प लेंगे। मैं आशा करता हूँ कि दीक्षांत समारोहों की नियमितता और विद्यार्थियों में अपने कर्मों के प्रति इमानदारी बनी रहेगी एवं विश्वविद्यालय और यहाँ के विद्यार्थी राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभाते रहेंगे। मैं उनके समुज्ज्वल भविष्य हेतु हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ।


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