न्यूज़ रायबरेली:विश्व थैलेसीमिया दिवस (08 मई) पर विशेष

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जतिन कुमार चतुर्वेदी

माता-पिता से बच्चों को मिलती है यह खतरनाक बीमारी।
हंसने-खेलने और मस्ती करने की उम्र में जो बच्चा गुमसुम और उदास रहे, उसके चेहरे पर एक मुस्कान देखने के लिए उसके माता-पिता को ब्लड बैंक और अस्पतालों के चक्कर काटने पड़े, सोचिये उन परिजन का क्या हाल होगा। थैलेसीमिया एक ऐसी ही आनुवंशिक बीमारी है। विडंबना यह है कि इसके कारणों का पता लगाकर भी इससे बचा नहीं जा सकता। थैलेसीमिया एक ऐसा रोग है जो बच्चों को जन्म से ही मिलता है। तीन माह की उम्र के बाद ही इसकी पहचान हो पाती है। चिकित्सकों का कहना है कि इस बीमारी में बच्चे में खून का ठीक से निर्माण नहीं हो पाता है, जिससे खून की कमी हो जाती है। इस कारण रोगी को बार-बार खून चढ़ाना पड़ता है। खून की कमी से हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता है एवं बार-बार खून चढ़ाने के कारण मरीज के शरीर में अतिरिक्त लौह तत्व जमा होने लगता है, जो हृदय मे पहुंचकर प्राणघातक साबित होता है।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. वीरेंद्र सिंह बताते हैं कि थैलेसीमिया एक रक्त रोग है। यह दो प्रकार का होता है। यदि पैदा होने वाले बच्चे के माता-पिता दोनों के जींस में माइनर थैलेसीमिया होता है, तो बच्चे में मेजर थैलेसीमिया हो सकता है, जो काफी घातक हो सकता है। माता-पिता में से एक ही में माइनर थैलेसीमिया होने पर किसी बच्चे को खतरा नहीं होता। अतः जरूरी यह है कि विवाह से पहले महिला-पुरुष दोनों अपनी जांच करा लें। वह बताते हैं कि थैलेसीमिया पीडि़त के इलाज में काफी खून और दवाइयों की जरूरत होती है। इस कारण गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए इसका इलाज करा पाना मुश्किल हो जाता है। समय से और सही इलाज करने पर 25 वर्ष व इससे अधिक जीने की उम्मीद होती है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, खून की जरूरत भी बढ़ती जाती है। अत: सही समय पर ध्यान रखकर बीमारी की पहचान कर लेना उचित होता है। अस्थि मज्जा ट्रांसप्लांटेशन (एक किस्म का ऑपरेशन) इसमें काफी हद तक फायदेमंद होता है, लेकिन इसका खर्च काफी ज्यादा होता है। देश भर में थैलेसीमिया, सिकल सेल, सिकलथेल, हिमोफेलिया आदि से पीड़ित अधिकांश गरीब बच्चे 8-10 वर्ष से ज्यादा नहीं जी पाते।
जिला शिक्षा अधिकारी डी एस अस्थाना ने बताया कि बार-बार बीमार होना, सर्दी, जुकाम रहना, कमजोरी और उदासी रहना, आयु के अनुसार शारीरिक विकास न होना, शरीर में पीलापन बना रहना व दांत बाहर की ओर निकल आना, सांस लेने में तकलीफ होना यह थैसेसीमिया के लक्षण हैं।
थैलेसीमिया से बचाव के लिए विवाह से पहले महिला-पुरुष की रक्त की जांच कराएं, गर्भावस्था के दौरान इसकी जांच कराएं, मरीज का हीमोग्लोबिन 11 या 12 बनाए रखने की कोशिश करें, समय पर दवाइयां लें और इलाज पूरा लें।


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