किसानों के कल्याणार्थ शुआट्स एवं एनबीपीजीआर के मध्य हुआ एमओयू

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नैनी, प्रयागराज। सैम हिग्गिनबॉटम कृषि, प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान विश्वविद्यालय (शुआट्स), प्रयागराज विगत 112 वर्षों से कृषि शिक्षा, शोध एवं प्रसार के क्षेत्र में अपना अभूतपूर्व योगदान दे रहा है। शुआट्स वैज्ञानिकों द्वारा विकसित कृषि की नई तकनीकों एवं नवाचार का लाभ प्रदेश एवं देश के किसानों को मिल रहा है। किसानों के कल्याण हेतु विभिन्न फसलों के जर्मप्लास्म के आदान-प्रदान, शुआट्स द्वारा विकसित किस्मों की डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एवं संयुक्त अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिये आईसीएआर के नेशनल ब्यूरो आफ प्लान्ट जेनेटिक रिर्सोसेज (एनबीपीजीआर) एवं शुआट्स ने एमओयू पर हस्ताक्षर किया।
शुआट्स वैज्ञानिकों ने कुलपति प्रो. राजेन्द्र बी. लाल के मार्गनिर्देशन में विगत दो दशकों में महत्वपूर्ण अनुसंधान एवं मुख्य फसलों के बीजों का संरक्षण कार्य किया है। शुआट्स द्वारा विकसित गेहू, धान, मक्का एवं अलसी की उन्नत किस्में प्रचलित हो रही हैं।

निदेशक शोध डा. शैलेष मारकर ने बताया कि पुरानी देसी बीजों में वातावरण रोगी एवं कीटों तथा उत्तम गुणवत्ता के जीन्स होते हैं जिनका संरक्षण अत्यन्त आवश्यक है जिससे भविष्य में आने वाली किसी भी आपदा से सामना किया जा सके। विन्ध्यांचल क्षेत्र में परम्परागत खेती, विगत कई वर्षों से की जा रही है जिसमें किसानों द्वारा देशी बीजों का उपयोग किया जाता रहा है। इस क्षेत्र में विभिन्न फसलों के देशी बीजों की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए निदेशक शोध डा. शैलेष मारकर एवं उनके सहयोगियों द्वारा विगत 5 वर्षों में 200 देशी किस्मों के बीजों का संग्रह, कैरकटराईजेशन, प्यूरीफिकेशन, मल्टीप्लीकेशन किया गया है एवं इनके जननद्रव्य को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के नेशनल ब्यूरो आफ प्लान्ट जेनेटिक रिर्सोसेज (एनबीपीजीआर), नई दिल्ली स्थित कार्यालय में संरक्षित किया गया है।

विभागाध्यक्ष जेनेटिक एवं प्लान्ट ब्रीडिंग डा. वैदुर्य प्रताप शाही की पहल पर नेशनल ब्यूरो आफ प्लान्ट जेनेटिक रिर्सोसेज, नई दिल्ली के निदेशक डा. ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह ने शुआट्स का भ्रमण किया और शुआट्स द्वारा किये गये अनुसंधान एवं परम्परागत बीजों के संरक्षण की जानकारी प्राप्त की। शुआट्स द्वारा किसानों के कल्याण के लिये किये गये इन प्रयासों से अभिभूत होकर डा. ज्ञानेन्द्र ने शुआट्स एवं एनबीपीजीआर के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर किये जिससे कि भविष्य में दोनों संस्थानों के बीच विभिन्न फसलों के जर्मप्लास्म का आदान-प्रदान, शुआट्स द्वारा विकसित किस्मों की डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एवं संयुक्त अनुसंधान को बढ़ावा दिया जा सके।


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