मध्यप्रदेश:उपचुनाव निपटने ही निर्णय लेने की बारी

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देवदत्त दुबे।
प्रदेश के दोनों ही प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस में महत्वपूर्ण निर्णय उपचुनाव के चलते टाले जा रहे थे। जैसे ही उपचुनाव निपटे अब भाजपा में जहां सत्ता और संगठन में महत्वपूर्ण फैसले लिए जाने हैं वही-वही कांग्रेस में भी संगठन और नेता प्रतिपक्ष के बारे में फैसला होना है।
दरअसल हाल ही में संपन्न हुए 28 सीटों के विधानसभा के उपचुनाव दोनों दलों के लिए इतने महत्वपूर्ण थे की सभी ने पूरी ताकत केवल उपचुनाव को जीतने के लिए झोंक दी थी और जिस तरह की परिस्थितियां थी उसमें ऐसे ही परिणाम आने की उम्मीद थी हालांकि दोनों ही दलों को अपनी अपनी जीत की आशा थी लेकिन परिणामों के बाद कांग्रेस् को निराशा हाथ लगी।
लेकिन जिस तरह की परिस्थितियां थी एक तरफ भाजपा की ओर से लगभग एक दर्जन नेता आम सभाएं ले रहे थे, मतदान केंद्र तक कार्यकर्ताओं की मजबूत टीम तैनात थी प्रदेश भाजपा सरकार में है और यह भी तय माना जा रहा था कि उपचुनाव के बाद भाजपा की ही सरकार रहेगी। ऐसे में मतदाताओं का ध्रुवीकरण और सत्ता और संगठन का मैनेजमेंट चुनावी नाँव को पार लगाने में सफल रहा। जबकि विपक्षी दल कांग्रेस के पास एकमात्र नेता कमलनाथ थे जो क्रिकेट चयन से लेकर सभा करने के लिए दौड़ लगा रहे थे और जो जमावट कमलनाथ ने संगठन की जमाई थी वह प्रत्याशियों ने आखिरी हफ्ते में गवा दी। कुछ विधानसभा क्षेत्रों में मतदान केंद्रों पर कांग्रेस के पोलिंग एजेंट तक नहीं थे। खैर हार जीत की समीक्षा दलों के अंदर भी हो रही है और राजनैतिक विश्लेषक भी कर रहे हैं लेकिन इस समय दोनों ही दल दुरुस्ती के दौर से गुजर रहे हैं।
बहरहाल सत्तारूढ़ दल भाजपा इस समय सत्ता और संगठन को चुस्त-दुरुस्त बनाने के लिए चौतरफा प्रयास शुरु कर रही है। एक तरफ जहां मंडल स्तर पर कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया जा रहा है, वही दूसरी ओर संगठन में ऊर्जावान चेहरों को पदाधिकारी बनाने पर मंथन चल रहा है। साथ ही मंत्रिमंडल मैं चुनाव जीत कर आए गोविंद राजपूत और तुलसी सिलावट को शपथ दिलाने की भी तैयारी हो रही है। हालांकि पार्टी का एक वर्ग मंत्रिमंडल विस्तार पर जोर दे रहा है। लेकिन सत्ता और संगठन के शीर्ष नेताओं की रणनीति यही है कि फिलहाल दो मंत्रियों को शपथ दिलाकर बाकी का विस्तार नगरी निकाय और पंचायती राज के चुनाव के बाद किया जाए।
कुल मिलाकर बहुप्रतीक्षित 28 विधानसभा सीटों के उपचुनाव निपट ने के बाद अब दोनों ही दलों पर दबाव भी है और रणनीति भी है, कि वे सब निर्णय लिए जाएं जो पार्टी के लिए लाभकारी सिद्ध हो सके है, लेकिन इतना आसान नहीं है। इन निर्णयों को लेना सहमति और सामंजस्य बनाना प्राथमिकता में है ।विपक्षी दल कांग्रेस में सबसे महत्वपूर्ण निर्णय नेता प्रतिपक्ष कौन हो इसके बारे में लेना है। वैसे तो सज्जन सिंह वर्मा, डॉक्टर गोविंद सिंह, बाला बच्चन और जीतू पटवारी के नाम लिए जा रहे थे, लेकिन पिछले कुछ दिनों से बृजेंद्र राठौर और डॉक्टर विजय लक्ष्मी साधो के नाम भी तेजी से आगे बढ़ाए जा रहे हैं । इस निर्णय को लेने में भी पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ की भूमिका अहम मानी जा रही है।


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