अतीत की घटनाओं से अवगत होकर स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों से सबको प्रेरणा लेना लेना चाहिए : राज्यपाल

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डाॅ अजय ओझा।

इतिहास में वास्तविकता आनी चाहिए, शोधकर्ता अपने शोध में इस दिशा में ध्यान दें : राज्यपाल।

रांची, 4 मई। डॉ० श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, राँची एवं इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, क्षेत्रीय कार्यालय, राँची के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी एवं प्रदर्शनी के उद्घाटन के अवसर पर राज्यपाल रमेश बैस ने कहा कि –
 डॉ० श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, राँची एवं इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, क्षेत्रीय कार्यालय, राँची के संयुक्त तत्वावधान में आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम के तहत आयोजित इस दो दिवसीय संगोष्ठी एवं प्रदर्शनी के उद्घाटन समारोह में आकर मुझे अपार प्रसन्नता हो रही है।

 प्रगतिशील स्वतंत्र भारत के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम पूरे देश भर में उत्साह से मनाया जा रहा है। यह स्वतंत्र भारत की उपलब्धियों पर जश्न मनाने के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को याद करने के लिए भारत सरकार की एक पहल है।
 आज़ादी का अमृत महोत्सव का अर्थ नए विचारों का अमृत है। यह एक ऐसा महाउत्सव है जिसका अर्थ स्वतंत्रता की ऊर्जा का अमृत है। स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा स्वाधीनता के लिए किए गये त्याग व बलिदान की गाथा हमें सदैव देश के प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा देता है। हमारे मन में नए विचारों, नए संकल्पों की क्रांति का संचार करता है।

 इसका उद्देश्य देशभर में एक अभियान चलाकर देश की आजादी के लिए स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों द्वारा दिये गये बलिदान एवं उनके योगदान से सबको अवगत कराना है और देशभक्ति की भावना जागृत करने के साथ-साथ गुमनाम शहीदों की गाथाएं जन-जन तक पहुँचाना है।
 मेरा मानना है कि जब हम देशवासी पूरी तरह जान जायेंगे कि हमें स्वाधीनता कितनी कठिनाई से मिली, इसके लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को कितना संघर्ष करना पड़ा, कितनी यातनाएं झेलनी पड़ी तो हर देशवासी में राष्ट्रभक्ति की भावना स्वतः ही जागृत हो जायेगी। वे मातृभूमि से प्रेम की अहमियत को समझ पायेंगे।
 आजादी का अमृत महोत्सव हमें यह भी अवसर देता है कि हम अपने भविष्य को ध्यान में रखते हुए अपने इतिहास को और भी गहराई से जाने, क्योंकि जब आप आजादी के संघर्ष के बारे में पढ़ेंगे और उसको गहराई से जानने का प्रयास करेंगे तो आपको पता लगेगा कि भारत माता ने कैसे-कैसे वीरों को जन्म दिया है।
 स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए बहुत सारे देशवासी शहीद भी हुए जिनमें कुछ लोग ऐसे थे जिनकी उम्र बहुत कम थी, लेकिन अपने वतन को लेकर इतना प्रेम था और देश प्रेम की भावना इतनी प्रबल थी कि बिना किसी भय के ब्रिटिश हुकूमत को कड़ी चुनौती दी और उनका डटकर सामना अपनी आखिरी सांस तक किया।

 1770 आते-आते तिलका मांझी ने अंग्रेज़ों से लोहा लेने की पूरी तैयारी कर ली थी। उन्होंने लोगों को अंग्रेज़ों के आगे न झुकने के लिये कहा। उनके नेतृत्व में जनजातियों ने 1778 में रामगढ़ छावनी, जो अभी झारखंड में ही है, में तैनात पंजाब रेजिमेंट पर हमला कर दिया। उनकी सेना के जोश के सामने अंग्रेज़ों को छावनी छोड़ कर भागना पड़ा।
 1831 में कोल विद्रोह अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ किया गया एक महत्वपूर्ण विद्रोह था। कोल विद्रोह के पहले ही 1795-1800 तक तमाड़ विद्रोह, 1797 में विष्णु मानकी के नेतृत्व में बुंडू में मुंडा विद्रोह, 1798 में चुआड़ विद्रोह, 1798-99 में मानभूम में भूमिज विद्रोह और 1800 में पलामू में चेरो विद्रोह ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की अटूट शृंखला कायम कर दी थी।
 1832 में वीर बुधु भगत ने “लरका विद्रोह” नामक ऐतिहासिक आन्दोलन का सूत्रपात्र किया। 1831-32 में तेलंगा खड़िया, वर्ष 1855 में सिद्धो-कान्हू, चांद-भैरव और दो बहनें फूलो-झानो ने संघर्ष की एक ऐसी कहानी लिखी जो इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए अमर हो गई।
 सर्वविदित है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इस क्षेत्र के महान विभूतियों ने भी ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध कड़ा संघर्ष किया। इस क्षेत्र में 1857 का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से पूर्व ही अंग्रेजों के विरुद्ध कई आंदोलन हुए।
 1910-16 के मध्य में जतरा टाना भगत तथा 1857 के महासंग्राम में ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव, टिकैत उमराव सिंह, शेख भिखारी, ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव, नीलाम्बर-पीतांबर आदि ने अग्रणी भूमिका निभाई। 1895-1900 के मध्य धरती आबा बिरसा मुंडा आदि ने अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन किया।
 अभी भी बहुत से लोग हैं जो आजादी के संघर्ष की गहराई को नहीं जानते और उनके बलिदान की कहानी से वाकिफ़ नहीं हैं। इस अमृत महोत्सव में उन वीर सपूतों को याद करना है, जिन्होंने अपना समस्त जीवन देश को समर्पित कर दिया।
 हर देश का साहित्य भी स्वतंत्रता के शंखनाद में सक्रिय भूमिका का निर्वहन करता है। कहा गया है-”साहित्य समाज का दर्पण होता है।” हमें देश की विभिन्न भाषाओं में आजादी के भाव दिखते हैं। हमारे लेखकों ने अपनी रचना के माध्यम से लोगों में देशभक्ति का जज्बा जगाया तथा स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
 झारखंड के जनजातीय एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के लोक साहित्य में मातृभूमि के प्रति प्रेम के भाव दिखते हैं। इस क्षेत्र के लोगों के संघर्ष का इतिहास यहाँ के लोक गीतों के माधम से समझा जा सकता है।
 इसी कड़ी में मुंडारी साहित्य में ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध संघर्ष की गाथाएँ निहित है। जिस दौर में संचार का कोई माध्यम नहीं था तब यहां के लोगों ने अपनी परंपरा को स्वतंत्रता आंदोलन का हथियार बनाया। अपने लोक वाद्य यंत्रों को संचार का सशक्त माध्यम बनाया।
 आजादी का अमृत महोत्सव प्रत्येक भाषा व संस्कृति के अमृत पर गौरव करता है। आशा है कि यह संगोष्ठी मुंडारी भाषा एवं साहित्य में निहित प्रेरणादायी संदेशों को जनमानस तक पहुंचाने की दिशा में लाभप्रद होगी।
 आज़ादी का अमृत महोत्सव को जन-आंदोलन का रूप देना है ताकि युवा पीढ़ी आज़ादी के संघर्ष की गाथा को समझ सकें और उनके हृदय में देश-प्रेम की भावना का प्रबल संचार हो।
 इस अवसर पर मैं यह भी कहना चाहूँगा कि विश्वविद्यालय अपने विद्यार्थियों को इंटर्नशिप के लिए स्वतंत्रता सेनानियों के ग्राम भेजे ताकि उनकी कृतियों के बारे में अधिक-से-अधिक जानकारी प्राप्त कर सके।
 विद्यार्थी उन ग्रामों का भी बेहतर तौर से अवलोकन करें ताकि इन महान विभूतियों के ग्रामों को आदर्श ग्राम के साथ पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सके, इस कार्य में विश्वविद्यालय अहम भूमिका का निर्वहन कर सकता है।
 हमारे विश्वविद्यालय यूनिवर्सिटी सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी के तहत आजादी के इन महानायकों के ग्रामों को गोद भी ले सकते हैं तथा सरकार द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं को सफल बनाने के साथ-साथ वहाँ के बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
 अंत में, एक बार पुनः इस संगोष्ठी के अपार सफलता की कामना करता हूँ तथा इस संगोष्ठी के आयोजन के लिए आयोजकों को बधाई देता हूँ।


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