बिछड़े सभी बारी बारी : भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश सारंग का निधन
देवदत्त दुबे ।
प्रदेश में भाजापा को शून्य से शिखर पर पहुंचाने वाली पीढ़ी धीरे-धीरे समाप्त हो रही है। एक-एक करके दुनिया से विदा ले रहे वरिष्ठ भाजपा नेता कैलाश सारंग के निधन के बाद एक बार फिर से उस पीढ़ी को याद किया जा रहा है जिन्होंने अथक परिश्रम करके पार्टी को खड़ा किया ।
दरअसल पौधा कोई लगाता है और फल कोई और खाता है और जिन्होंने बंजर भूमि के पौधे रोपे हो वह कितने संघर्षशील और कर्मठ रहे होंगे। यह आज की भाजपा को देखकर सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।
जिन्होंने भाजपा की शुरुआत देखी है जनसंघ से लेकर जनता पार्टी और भाजपा तक पहुंचने में अनेक उतार-चढ़ाव सामने आए हैं ।
कभी आज की भाजपा के केवल दो सांसद हुआ करते थे ।आज चुनाव लड़ने के लिए भाजपा में पार्षद से लेकर पार्लियामेंट तक टिकट के लिए जद्दोजहद होती है ।
एक समय ऐसा था जब मना-मना कर टिकट दिए जाते थे और चुनाव लड़ाया जाता था। ऐसे दौर में सीमित साधनों में प्रदेश कार्यालय का संचालन करना कितना कठिन कार्य था और यह कार्य कैलाश सारंग ने वर्षों तक किया।
बहरहाल प्रदेश में भाजपा को शून्य से शिखर तक ओ जाने वाले एक एक कर बिछड़ते जा रहे हैं ।
स्वर्गी कुशाभाऊ ठाकरे, प्यारेलाल खंडेलवाल, विजयाराजे सिंधिया, नारायण प्रसाद गुप्ता, वीरेंद्र कुमार सकलेचा, सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी, बाबूलाल गौर के बाद दीपावली के दिन कैलाश नारायण सारंग का निधन भाजपा का उजला पक्ष लाने वाले नेताओं का निधन है।
लेकिन यह भी सच है जो इस दुनिया में आया है वह एक ना एक दिन जाएगा। लेकिन व्यक्ति कौन सा कार्य करके जाता है वहीं याद रखा जाता है।
जैसे परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी संस्कार आगे बढ़ते जाते हैं कि परिवार सुखी और संपन्न रहते हैं और प्रगति करते रहते हैं ।भाजपा की शुरुआत जिन मुद्दों को लेकर शुरू हुई थी उनमें से अधिकांश मुद्दे पूरे हो चुके है ।
चाहे धारा 370 का मामला हो और चाहे राम मंदिर का विषय हो। भाजपा ने इन मुद्दों को लेकर वर्षों तक आवाज उठाई है ।और धैर्य और साहस पार्टी का एहसास की चुनाव दर चुनाव अबकी बारी अटल बिहारी का नारा पार्टी लगाती रही और पीढ़ियां खपाती लेकिन पार्टी नेताओं ने हार नहीं मानी और एक दिन ऐसा आ गया जब एक नहीं बल्कि तीन बार अटल बिहारी वाजपेई ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। जबकि आज की राजनीति में नेता संयम और धैर्य खो चुके विपक्ष की राजनीति करना नहीं चाहता। सत्ता की राजनीति चाहिए जो सरकार में है पार्टी उसके नेता भी यदि विधायक है, मंत्री बनना चाहता है । संगठन में है विधायक और सांसद बनना चाहता है क्योंकि इस समय पार्टी का टिकट जीत की आधी गारंटी हो जाती है ।लेकिन पार्टी नेता भूल जाते हैं कि एक समय कांग्रेस का टिकट ही जीत की गारंटी होता था और वह पार्टी पूरे देश में सिमट गई क्योंकि पार्टी में अनुशासन नहीं रहा। नेताओं के बीच ताल मेल नहीं रहा, पार्टी नेतृत्व पर आस्था नहीं रही, विश्वास नहीं रहा ऐसे में केवल हवा में चुनाव जीतने की कोशिश करना अंधेरे में तीर चलाने जैसा है।
कांग्रेस पार्टी में अब इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जैसे नेता नहीं रहे जिन्होंने देश में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए कार्यकर्ताओं की समर्पित फौज भी नहीं रही। इन सब कमियों को दूर करने का पार्टी को प्रयास करना चाहिए क्योंकि अब देश में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आ गई। जिसमें नेताओं की एक ऐसी टीम है जो किसी भी परिस्थिति में चुनाव जिताऊ क्षमता रखती है।
कुल मिलाकर आज जो भाजपा विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती है उसके इतना विशाल होने के लिए अनेक नेताओं ने संघर्ष किया है और वह संघर्ष करने वाली पीढ़ी धीरे-धीरे अब विदा हो रही है सभी एक के बाद एक बिछड़ते जा रहे हैं। प्रदेश में पूर्व सांसद कैलाश नारायण का निधन एक पीढ़ी का अंत होने जैसा है।