मानसिक बीमारी का योगाभ्यास से निर्मूलन संभव : ब्रम्हकुमारी निर्मला बहन

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डॉक्टर अजय ओझा।

रांची, 11 जून । आज के बिखरे, अशान्त और दुखी मनुष्य को अपना खोया हुआ व्यक्तित्व पुनः प्राप्त करने के लिए एक नवचेतना की आवश्यकता है। विकारी स्वभाव के कारण मनुष्य का
अर्न्तमन अस्वस्थ और स्वभाव क्रूर हो गया है। इस मानसिक बीमारी के लिए योगाभ्यास एक अचुक आवश्यक उपचार है। राजयोग प्रवचनमाला जारी रखते हुए ये उद्गार ब्रह्माकुमारी निर्मला बहन ने ब्रह्माकुमारी संस्थान, चौधरी बगान, हरमू रोड में व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि ‘योग’ नाम से आज कितने ही प्रकार की शारीरिक क्रियाएँ प्रचलित है परन्तु शारीरिक क्रियाओं द्वारा मानसिक उपचार नहीं किया जा सकता। इसके लिए बुद्धि में शुद्ध विचार डालकर अशुद्ध विचारों को बाहर निकालना जरूरी है। मानसिक दुर्बलताओं और अवगुणों के रूप में पाप मनुष्य के अन्दर मौजूद है। इनका दूर होना ही पाप का भस्म होना है। योग अपना प्रभाव इसी जन्म में दिखाता है। संस्कारों में शुद्धि और शक्ति इसी जन्म में
प्राप्त होती और इस प्राप्ति के आधार पर ही भविष्य जगत सुखदायी बनता है। इस जन्म के संचित संस्कारों का ही प्रतिबिम्ब भविष्य जन्म है। अब परमात्मा प्रत्यक्ष संपर्क के बिना योग पथ पर आगे नहीं बढ़ा जा सकता। आत्मिक पुरुषार्थ केवल तभी संभव है, जबकि सदा जागती ज्योति परमात्मा के प्रकाश से आत्मा की बुझी बुझी सी ज्योति पुनः जाग जाय और व्यक्ति स्वयं को शरीर न समझ कर आत्मा समझने लग जाय। आज की विषम स्थिति का निष्कर्ष यह है कि जिस प्रकार प्रकृति के तत्वों में आयी विकृति एक विश्व
व्यापी तथ्य है उसी प्रकार मानव जाति के मनोजगत या आन्तरिक जीवन में आयी मानसिक विकृति को मिटाने का एक मात्र उपाय परमात्मा से आत्मा का योग युक्त होना ही है। मानव समूह के कुछ लोगों के मानसिक शुद्धि या पवित्रता प्राप्त कर लेने पर अन्ततः सम्पूर्ण मानवता का मनोजगत ही परिष्कृत हो जायेगा। इस क्रम में जीवन के साथ-साथ जगत का परिष्कार अथवा शुद्धिकरण सम्पन्न हो जायेगा। परमात्मा शिव के अनुसार समूची मानवीय सृष्टि में सुख और शांति की स्थापना का यही भागवत कार्य आज सम्पन्न हो रहा है।

नया युग आध्यात्मिक युग होगा।
पवित्रता ही सुख शांति की जननी है, हर कीमत पर इसकी रक्षा करना अपना सर्वप्रथम कर्त्तव्य है।


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