लॉकडाउन ४ का आख़िरी दिन, आपदा की चिताओं पर रोटियां सेकता वैश्विक ड्रग माफिया

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कहते हैं, जहाँ आग होगी, वहां धुंआ भी जरूर होगा? इसी तरह जहाँ, धन का अकूत भण्डार होगा, वहां व्यसन खुदबखुद अपने पेर पसार ही लेते हैं, इसी तरह जब दुनिया में आबादी इतनी अधिक बढ़ रही है, तो उनका फायदा उठाने वाले गिद्ध भी तो होंगें ही न? प्राकृतिक आपदाओं और बीमारियों से इतर, नित नई बीमारियां भी इन धनपशुओं द्वारा गढ़ी भी जा रही होंगीं, लेकिन उससे पहले, इनके “धनपिचास” उस्ताद, इन कृतिम बीमारियों के उपचार के नए नए आयाम भी ढूँढ बैठे होंगे ।
और यही सब पूरे विश्व में करोना में भी घट रहा है, लेकिन आठ सौ करोड़ जनता सब कुछ जानते बूझते हुए भी, इनकी प्रयोगशालाओं में खुद को गिनीपिग बनाने को आतुर है।
धन लूटने, देशों की अर्थव्यवस्था पर कब्ज़ा करने और दुनिया को केमिकल वॉर में झोंक देने वाले चीन का षड्यंत्र आज जगजाहिर हो चुका और चीन सारे विश्व में अपराधी बना खड़ा है। खैर, उसका तो जो होगा, वो नियति जाने, लेकिन अगर हम सिर्फ पिछले दस सालों का वैश्विक ड्रग माफिया का खेल समझने की कोशिश भी करें, तो रूह काँप उठती है। इन षड्यंत्रों का खुलासा करने वाली संस्थाएं भी हैरान हैं, लेकिन अपनी जान जोखिम में लिए हुए आग के साथ धुएं की तरह इनका पीछा करती रहती हैं, २०१० में प्रोपब्लिका ने सबसे पहले इन ड्रग माफ़िया के दवाओं के प्रचार अभियान की अँधेरी दुनियाँ में सेंध लगाईं और मात्र सात कंपनियों द्वारा व्हिसिलब्लोअर मुकदमों के आउट ऑफ़ द कोर्ट सेटलमेंट के आंकड़ों से इनके पैरों की जमीन खिसक गई। यही नहीं, इतने गंभीर आपराधिक कुकर्म का भी “डॉलर्स फॉर डॉक्स” के नाम से यह कंपनियां डाटाबेस में हिसाब रखती पाई गईं हैं और इनमे मौजूद अरबों खरबों डॉलर्स के डॉक्टरों को किये गए भुगतानों का भी पूरा जिक्र है।
२०१४ से २०१८ के बीच, बीस दवाओं की लिस्ट में, डायबिटीस, सोरिएसिस, कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवाएं और खून पतला करने वाली कई दवाइयों में से, छह तो ऐसी दवाएं हैं, जिनका ना होना ही बेहतर होता। लेकिन मरीजों का खून चूसने में माहिर इन कंपनियों का फिर पेट कैसे भरता? खून पतला करने वाली दवा “जरेटो” (Xarelto ) को बनाने वाली कम्पनी जॉनसन & जॉनसन तथा बायर ऐजी ने १२३ मिलियन डॉलर्स इसके प्रचार प्रसार, डॉक्टरों को कमीशन देने में खर्च किये लेकिन कालांतर में इससे भी भयानक सच तो यह सामने आया कि इस दवा के उपयोग से जानलेवा ब्लीडिंग हो सकती है और इतने खतरनाक कॉम्प्लिकेशन यह लोग छुपा ले गए थे और इस वजह से इन कंपनियों को पच्चीस हजार मुकदमों में, ७७५ मिलियन डॉलर्स से भी अधिक का भुगतान करना पड़ा था।
जे & जे को पता था कि एस्बेस्टोस से कैंसर होता है, फिर भी उसने बच्चों के पाऊडर में इसका उपयोग किया और ९००० लीगल केसेस में पिछले साल, उसे ४.७ बिलियन डॉलर्स का भुगतान करना पड़ा है।
दुनिया की और भी कई संस्थाएं, इस तरह के षड्यंत्रों को लगातार उजागर करती रहती हैं, ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक एनालिसिस में २०१७ में साफ़ लिखा गया है कि, जरुरी नहीं कि सबसे ज्यादा प्रचारित और अनुशंसित दवा हकीकत में, इफेक्टिव, सेफ, नॉवल और उपचार हेतु वास्तविक भी हो!
यह कथन, एक भयानक सच अपने अंदर छिपाए बैठा है और इन धनपशुओं, धनपिचासों के हाथों की कठपुतलियां बने डॉक्टर ,अस्पतालों और स्वास्थ्य विभागों का क्रूरतम चेहरा नुमायां करता है।
आज बस इतना ही, इससे आगे, दवाइयों के इस घृणित खेल में, खास तौर पर इस करोना आपदा काल में धनदोहन का अवसर बने रेमडेसिविर और वेक्सीन की हकीकत पर बाकी बातें कल,
मिलते हैं कल, तब तक जय श्रीराम !

डॉ भुवनेश्वर गर्ग
डॉक्टर सर्जन, स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, हेल्थ एडिटर, इन्नोवेटर, पर्यावरणविद, समाजसेवक
मंगलम हैल्थ फाउण्डेशन भारत
संपर्क: 9425009303
drbgarg@gmail.com
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