कोरोना काल में त्राहिमाम करता विश्व और राह दिखाती भारतीय परम्पराये

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डॉक्टर भुवनेश्वर गर्ग

मंगल भवन अमंगल हारी।
द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।।

आज बड़ा ही पुनीत पावन पर्व है, प्रभु श्रीराम का दिन, सम्पूर्ण विश्व की सबसे बड़ी, सबसे शक्तिशाली, सबसे विराट मानव सभ्यता का दिन।पर इन हजारों हजार साल में यह देश कितने टुकड़ों में बँट, आज कहाँ और किस हाल में आ खड़ा हुआ है ?

कब होगा फिर से राम राज्य का सपना पूरा ?

लेकिन यह भी सच है कि आज भी यह देश अपनी आस्थाओं और जड़ों से वैसे ही जुड़ा हुआ है जैसा कि प्रभु श्रीराम के समय रहा होगा क्योंकि तब उनका इस धरा पर आगमन धर्म, कर्म और मर्यादा की रक्षा के लिए हुआ और आज भी कुछ वैसी ही स्थिति देश के सामने हैं, असुर, विधर्मी भाँति भाँति से प्राणियों पर कहर ढा रहे हैं, जीवन रक्षक डाक्टरों, पुलिसकर्मियों पर थूक रहे हैं, पथ्थर फेंक रहे हैं, राजकर्म में विघ्न बाधाएं पैदा कर रहे हैं, गंदगी से सराबोर हैं और जल, वायु, पर्यावरण को दूषित कर रहे हैं, बिना ये सोचे कि खुद भी एक अदृश्य से कीटाणु से चौपट हो जाने वाले हैं और बाकी का भी सर्वनाश करेंगे।

इंदौर के टाटपट्टी बाखल में मुस्लिम समुदाय ने जाँच करने आये डॉक्टरों पर हमला बोल दिया

पर अभी भी देर नहीं हुई है । लौट आओ जड़ों की ओर। क्योंकि गहराई में जाकर शान्ति से सोचोगे तो पाओगे कि सब यहीं के हैं , इसी धरती के जन्में, इसी माटी के पले बड़े और चार पांच पीढ़ी पहले कौन क्या था, ये पता करना बहुत मुश्किल भी नहीं है। मध्य युग में पूरे यूरोप पे राज करने वाला रोम ( इटली ) नष्ट होने के कगार पे आ गया , मध्य पूर्व को अपने कदमो से रोंदने वाला ओस्मानिया साम्राज्य ( ईरान , टर्की ) अब घुटनो पर हैं , जिनके साम्राज्य का सूर्य कभी अस्त नहीं होता था, उस ब्रिटिश साम्राज्य के वारिस बर्मिंघम पैलेस में कैद हैं, जो स्वयं को आधुनिक युग की सबसे बड़ी शक्ति समझते थे, उस रूस के बॉर्डर सील हैं, जिनके एक इशारे पर दुनिया के नक़्शे बदल जाते हैं, जो पूरी दुनिया के अघोषित चौधरी हैं, उस अमेरिका में लॉक डाउन हैं और जो आने वाले समय में सबको निगल जाना चाहते थे,वो चीन, आज मुँह छिपाता फिर रहा है और सबकी गालियां खा रहा है।

एक देश एक खून

एक जरा से परजीवी ने विश्व को घुटनो पर ला दिया? न एटम बम काम आ रहे न पेट्रो रिफाइनरी ना मिसाइलें ? मानव का सारा विकास एक छोटे से जीवाणु से सामना नहीं कर पा रहा ? क्या हुआ, निकल गयी हेकड़ी ? बस इतना ही कमाया था आपने इतने वर्षों में, कि एक छोटे से जीव ने सबको घरो में कैद कर दिया ? और जो नहीं मान रहा, सूरमां बना घूम रहा है, उसको कोई छूने को, कांधा देने को भी तैयार नहीं है।और सारे देश आशा भरी नज़रो से देख रहे हैं आज हमारे देश की तरफ, उस भारत की ओर जिसका सदियों से अपमान करते रहे, रोंदते रहे, लूटते रहे, लेकिन एक मामूली से जीव ने सबको उनकी औकात बता दी।

कोरोना वायरस

पर भारत जानता है, भारत का वीर सेनापति जानता है कि असल युद्ध तो अभी शुरू हुआ है, सीमा पार के छद्म विरोधी ही नहीं, देश में बैठे जयचंदों से भी और जैसे जैसे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ेगी, ग्लेशियरो की बर्फ पिघलेगी, आज़ाद होंगे लाखो वर्षो से बर्फ की चादर में कैद दानवीय विषाणु, जिनका न आपको परिचय है और न लड़ने की कोई तेयारी, ये कोरोना तो झांकी है, चेतावनी है, उस आने वाली विपदा की, जिसे आपने जन्म दिया है। मेनचेस्टर की औध्योगिक क्रांति और हारवर्ड की इकोनॉमिक्स संसार को अंत के मुहाने पर आखिरकार ले ही आई है।

मेनचेस्टर की औध्योगिक क्रांति

लेकिन क्या आप जानते हैं, इस आपदा से लड़ने का तरीका कहाँ छुपा है? तक्षशिला के खंडहरो में, नालंदा की राख में, शारदा पीठ के अवशेषों में, मार्तण्ड के पत्थरो में।सूक्ष्म परजीवियों से मनुष्य का युद्ध नया नहीं है, ये तो सृष्टि के आरम्भ से अनवरत चल रहा है, और सदैव चलता रहेगा, इस से लड़ने के लिए हमने हरेक का हथियार भी खोज लिया था, मगर आपके अहंकार, लालच , स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने की हठ धर्मिता ने सब नष्ट कर दिया ।

तक्षशिला के खंडहर

क्या चाहिए था आपको ? स्वर्ण एवं रत्नो के भंडार? यूँ ही मांग लेते, राजा बलि के वंशज और कर्ण के अनुयायी आपको यूँ ही दान में दे देते। सांसारिक वैभव को त्यागकर आंतरिक शांति की खोज करने वाले समाज के लिए वे सब यूँ भी मूल्य हीन ही थे, ले जाते। मगर आपने ये क्या किया, विश्व बंधुत्व की बात करने वाले समाज को नष्ट कर दिया? जिस बर्बर का मन आया वही भारत चला आया, रोदने, लूटने, मारने, जीव में शिव को देखने वाले समाज को नष्ट करने।

तमाम मुस्लिम शाशको द्वारा भारत के भव्य इमारतों को तोडना और लूटना

कोई विश्व विजेता बनने के लिए तक्षशिला को तोड़ कर चला गया, कोई सोने की चमक में अँधा होकर सोमनाथ लूट कर ले गया, तो कोई खुद को ऊँचा दिखाने के लिए नालंदा की किताबो को जला गया, किसी ने बर्बरता को जिताने के लिए शारदा पीठ के टुकड़े टुकड़े कर दिये, तो किसी ने अपने झंडे को ऊंचा दिखाने के लिए विश्व कल्याण का केंद्र बने गुरुकुल परंपरा को ही नष्ट कर दिया और आज करुणा भरी निगाहों से देख रहे हैं उसी पराजित, अपमानित, पद दलित, भारत भूमि की ओर, जिसने अभी अभी अपने घावों को भर, अंगड़ाई लेना आरम्भ किया है।

प्राचीन गुरुकुल सब्यता

किन्तु, ये देश और हम फिर भी निराश नहीं करेंगे, फिर से माँ भारती का आँचल आपको इस संकट की घडी में छाँव देगा, श्रीराम के वंशज इस दानव से भी लड़ लेंगे। किन्तु, मार्ग उन्ही नष्ट हुए हवन कुंडो से निकलेगा, जिन्हे कभी आपने अपने पैरों की ठोकर से तोडा था। आपको उसी नीम, पीपल, पलाश की छाँव में आना होगा, जिसके लिए आपने इस देश का उपहास किया था। आपको उसी गाय की महिमा को स्वीकार करना होगा , जिसे आपने अपने स्वाद का कारण बना लिया। उसी गाय के गोबर से लिपे आंगनों में आपको शान्ति मिलेगी, उन्ही मंदिरो में जा के घंटानाद करना होगा, जिनको कभी आपने तोडा था। उन्ही वेदो को पढ़ना होगा, जिन्हे कभी अट्टहास करते हुए नष्ट किया था। उसी चन्दन तुलसी को मस्तक पर धारण करना होगा , जिसके लिए कभी हमारे मस्तक धड़ से अलग किये थे । यही है प्रकृति का न्याय और आपको स्वीकारना होगा।

सोमनाथ मंदिर

फिर कहता हूँ , इस दुनिया को अगर जीना है, तो केदार काशी, सोमनाथ में सर झुकाने आना ही होगा, तक्षशिला के खंडहरो से माफ़ी मांगनी ही होगी, नालंदा की ख़ाक छाननी ही होगी। मंदिरों के घंटानाद से तीव्र साउंड फ्रिकवेंसी से कई वायरस मर जाते हैं। और यह आपने स्वीकार करना प्रारंभ भी कर दिया है। हाथ जोड़कर अभिवादन करना भी सम्पूर्ण विश्व ने शुरू कर ही दिया है। बहुत जल्द ही भारत की छांव में पूरी तरह सबको आना ही होगा क्योंकि इस देश ने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया, कभी किसी को मजबूर नहीं किया धर्म बदलने को, कभी किसी के गले नहीं काटे, मासूम बच्चों को तड़पा तड़पा कर नहीं मारा और ना ही कभी किसी के अधिकार क्षेत्र में अनाधिकार कब्जा किया ।

क्योंकि तब भी हमारा यही सिद्धांत था और आज भी यही है। इस देश का ब्रह्मवाक्य :

सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःख भाग भवेत्। ।


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