इकबाल अहमद के मार्गदर्शन में होती है कटरा रामलीला,बतौर मुस्लिम कर रहे कई सालों से मार्गदर्शन

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विवेक रंजन सिंह।
विवेक रंजन सिंह।

सामाजिक समरसता व एकता की मिसाल देखना हो तो कटरा रामलीला में देखा जा सकता है। निर्देशन किसी भी प्रस्तुति का आधार होता है। एक निर्देशक को हर पात्रों के भावों व अभिनय तत्वों को समझना बहुत आवश्यक होता है। रामलीला हिन्दू धर्म से जुड़ा प्रसंग है। एक बार के लिए यह आश्चर्य होगा कि कोई मुस्लिम कैसे रामलीला को निर्देशित कर सकता है? पर कटरा रामलीला में विगत कुछ वर्षों से यही होता है।

70 वर्षीय सय्यद इक़बाल अहमद मूल रूप से दारागंज निवासी हैं। उनका कहना है कि बचपन से ही दारागंज की रामलीला व हिन्दू तीज़ त्यौहारों को उन्होंने बड़े करीब से देखा है। उसका प्रभाव है कि उनके अंदर रामलीला को लेकर जो भाव हैं वो आज भी प्रबल हैं।

कई वर्षोँ तक उन्होंने खुद दारागंज रामलीला की जिम्मेदारी सम्भाली है। उनका मानना है कि यदि हम किसी भी धर्म समुदाय के प्रति बैर रखेंगे तो वही चीज़ हमारे मुह पर आकर गिरेगी। निर्दर्शन में वो सहायक की भूमिका में होते हैं। इससे पहले अश्वनी अग्रवाल कटरा रामलीला के निर्देशन में मुख्य निर्देशक के तौर पर होते थे वो उनके साथ भी सहायक के तौर पर जुड़कर उनकी सहायता करते थे।

ज्यादातर कलाकारों का कहना है कि मुस्लिम होकर भी रामलीला के प्रति जो कागचेष्टा उनकी है वह जल्दी किसी मे नही देखने को नही मिलती। इस बार की रामलीला का मुख्य निर्देशन सुबोध कुमार कर रहे हैं। इकबाल अहमद जी इस बार मार्गदर्शक की भूमिका में है।

राही मासूम रजा जैसे साहित्यकार के साथ भी यही हुआ था कि उन्हें दोनो धर्मों से कटु वचन बोले गए थे लेकिन उनकी संवाद की ताकत ने सबको मुहतोड़ जवाब दिया था। सय्यद इकबाल अहमद राष्ट्रीय स्तर के क्रिकेट खिलाड़ी भी रहे हैं। स्वभाव से सरल व सहज हैं। पात्रों से हमेशा प्यार व दुलार उन्हें मिलता रहता है।


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