‘ना ही कोई अदालत थी और न ही कोई सुनवाई थी, ये तो केवल राखी के धागे की बस भरपाई थी’ -दी उदयपुर महिला समृद्धि अरबन को-ओपरेटिव बैंक की रजत जयंती पर कवि सम्मेलन

Share:


उदयपुर, 19 जनवरी (हि.स.)। ‘ना ही कोई अदालत थी और न ही कोई सुनवाई थी, ये तो केवल राखी के धागे की बस भरपाई थी’ बलात्कार और हत्या के बाद पुलिस मुठभेड़ में मारे गए आरोपितों पर लिखी गई पंक्तियों को जैसे ही टीकमगढ़ के कवि अनिल तेजस्व ने जोशीले तरीके से पढ़ीं, सुनने वालों ने न केवल पीडि़ता को श्रद्धांजलि दी, बल्कि पुलिस के इस कदम पर जमकर तालियां बजाकर हौसला अफजाई की। मौका था दी उदयपुर महिला समृद्धि अरबन को-ओपरेटिव बैक लिमिटेड के रजत जयन्ती वर्ष के उपलक्ष्य में शनिवार रात भारतीय लोक कला मण्डल में आयोजित समृद्धि हास्य कवि सम्मेलन का जिसमें हास्य के साथ व्यंग्य और वीर रस की कविताओं ने श्रोताओं को देर रात तक बांधे रखा। मथुरा की शृंगार रस की कवयित्री पूनम वर्मा ने कविता पाठ करते हुए ‘किसी की याद की खुशबू में भीगे केश लायी हूं, दिलों को जोङऩे वाले अमिट उपदेश लायी हूं, कभी कान्हा के होठों पर सजी रहती थी गोकुल में, मंै ब्रज की बांसुरी हूं प्रेम का संदेश लायी हूं..’ रचना सुनाकर कवि सम्मेलन की शुरुआत की।वीर रस के कवि विनीत चौहान ने अपनी वीर रस की रचना ‘रक्तिम आंखों से मैं पूरे भारत को जलता हुआ देख रहा हूं, आस्तीन में काले विषधर हर दिन जलते हुए देख रहा हूं, गिनती पूरी कौन करेगा इस पागल शिशुपालों की, कौन शीश काटेगा फिर से शकुनि वाली चालों की…’ सुनाकर श्रोताओं में जोश भरा। कवि दीपक पारीक ने ‘खुश रहेंगे खूब हरदम ये बहाना सीखिए, आप भी हंसना हंसाना दिल मिलाना सीखिए, भूलकर इस बात को कब से अंधेरा है घना, आज से मिलकर सभी दीपक जलाना सीखिए…’, कवि सम्मेलन का संचालन करने वाले कवि अजातशत्रु ने ‘लहू मिट्टी से पूछेगा, बता ये रंग किसका है, हवा में नफरतों की आग वाला संग किसका है, उड़ा बारूद बम गोले हिली नुक्कड़ की मीनारें, सनी है खून में वर्दी जली थाने की दीवारें, बताओं फूल के बदले में कोई वार करता है, ये अपना देश है उसका इसे जो प्यार करता है….’ सुनाकर सभी में जोश भर दिया।  
टीकमगढ़ के कवि अनिल तेजस्व ने अपनी रचना ‘एक बहिन के खातिर खाकी वर्दी वाले जागे थे, मौत दिखाई दी आंखो में तब अपराधी भागे थे, खाकी वर्दी वालों ने बहिनों पे ये उपकार किया, चारों के चारो कुत्तों को मुठभेड़ों में मार दिया, ना ही कोई अदालत थी और न ही कोई सुनवाई थी, ये तो केवल राखी के धागे की बस भरपाई थी।
हास्य कवि कवि मुन्ना बैटरी ने अपनी हास्य रचना ‘दिखा कर जख्म अब बेधडक़ बोल देती है, झुर्रियों सी दिखती सब तडक़ बोल देती हैं, किस किस को बांटा है ठेकेदार ने कितना, बारिश के होते ही सब सडक़ बोल देती है…’
हिन्दुस्थान समाचार/सुनीता / ईश्वर


Share:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *