संगम की रेती पर लगे माघ मेले के तीसरे सबसे बड़े स्नान पर्व मौनी अमावस्या पर देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगा रहे हैं।

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संवाददाता उर्मिला शर्मा ।

प्रयागराज । श्रद्धालु स्नान कर मां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती से लोक कल्याण की जहां कामना कर रहे हैं। दिन के अंत तक मेला प्रशासन के द्वारा दी गई इस जानकारी के अनुसार लगभग 1.5 करोड़ लोगो ने आस्था की डुबकी लगाया है। प्रशासन की चाक चौबंद व्यवस्था और नए पुराने घाटों के कारण 16 अलग अलग स्थानों पर पूरे भीड़ को नियंत्रित किया गया तथा संगम नोज पर ही एकल घाट स्नान व्यवस्था की गया था जिससे किसी एक घाट पर जरूरत से ज्यादा लोग इकठ्ठे नहीं हो पा रहे थे।

क्यों करते है स्नान

संगम में स्नान के संदर्भ में एक कथा का भी उल्लेख आता है, वह है सागर मंथन की कथा। कथा के अनुसार जब सागर मंथन से भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए उस समय देवताओं एवं असुरों में अमृत कलश के लिए खींचा-तानी शुरू हो गयी इससे अमृत की कुछ बूंदें छलक कर इलाहाबाद हरिद्वार नासिक और उज्जैन में जा गिरी। यही कारण है कि यहाँ की नदियों में स्नान करने पर अमृत स्नान का पुण्य प्राप्त होता है। यह तिथि अगर सोमवार के दिन पड़ती है तब इसका महत्व कई गुणा बढ़ जाता है। अगर सोमवार हो और साथ ही महाकुम्भ लगा हो तब इसका महत्व अनन्त गुणा हो जाता है। शास्त्रों में कहा गया है सत युग में जो पुण्य तप से मिलता है द्वापर में हरि भक्ति से, त्रेता में ज्ञान से, कलियुग में दान से, लेकिन माघ मास में संगम स्नान हर युग में अन्नंत पुण्यदायी होगा।

इस तिथि को पवित्र नदियों में स्नान के पश्चात अन्न, वस्त्र, धन, गौ, भूमि, तथा स्वर्ण जो भी आपकी इच्छा हो दान देना चाहिए। इस दिन तिल दान भी उत्तम कहा गया है। इस तिथि को मौनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है अर्थात मौन अमवस्या। चूंकि इस व्रत में व्रत करने वाले को पूरे दिन मौन व्रत का पालन करना होता इसलिए यह योग पर आधारित व्रत कहलाता है।

शास्त्रों में वर्णित भी है कि होंठों से ईश्वर का जाप करने से जितना पुण्य मिलता है, उससे कई गुणा अधिक पुण्य मन का मनका फेरकर हरि का नाम लेने से मिलता है। इसी तिथि को संतों की भांति चुप रहें नहीं हो तो अपने मुख से कोई भी कटु शब्द न निकालें। इस तिथि को भगवान विष्णु और शिव जी दोनों की पूजा का विधान है। वास्तव में शिव और विष्णु दोनों एक ही हैं जो भक्तो के कल्याण हेतु दो स्वरूप धारण करते हैं इस बात का उल्लेख स्वयं भगवान ने किया है।

संतो का महत्त्व

वहीं माघ मेले में अमेठी सगरा से आए परमहंस आश्रम के संत शिवयोगी मौनी महाराज माघ मेले में अनूठी साधना करते नजर आए। उन्होंने चक्रवर्ती लोट परिक्रमा करते हुए संगम में आस्था की डुबकी लगाई। मौनी महाराज हर साल कोई न कोई संकल्प लेकर चक्रवर्ती दंडवत लोट परिक्रमा करते हैं। यह बेहद कठिन साधना होती है। जिसमें माघ मेले में स्थित अपने शिविर से लोटकर संगम तक पहुंचते हैं और संगम में गंगा स्नान के साथ ही अपने शिष्यों के साथ जल में ही खड़े होकर हवन और मां गंगा की आरती करते हैं। इस बार माघ मेले पर कोरोना संक्रमण का खतरा भी मंडरा रहा है। इसलिए मौनी महाराज ने इस बार कोरोना की वैश्विक महामारी के खात्मे का संकल्प लेकर माघ मेले में चक्रवर्ती दंडवत प्ररिक्रमा की है। उनके मुताबिक यह कठिन साधना है। लेकिन वह पिछले 28 वर्षों से लगातार इस साधना को करते आ रहे हैं। उनका कहना है कि उन्होंने इस बार माघ मेले में उनका संकल्प प्रमुख स्नान पर्वों पर इसी तरह से चक्रवर्ती दंडवत परिक्रमा करने का है। कोरोना की महामारी खत्म हो इसके लिए पांच बार चक्रवर्ती दंडवत परिक्रमा का अपना संकल्प पूरा करेंगे। शिव योगी मौनी महाराज के मुताबिक अपने शिविर में मकर संक्रांति के दिन से ही एक विशेष अनुष्ठान की भी शुरुआत किया है। जिसमें कोरोना की महामारी के खात्मे को लेकर माघ मेले के दौरान एक लाख 51 हजार दीयों का दीपदान भी करेंगे। मौनी महाराज पिछले 40 वर्षों से अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण और काशी मथुरा की मुक्ति के लिए अनुष्ठान और दीपदान करते आ रहे हैं।


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