निराला के काव्य में समाज के हर वर्ग का चित्रण नये ढंग से – डॉ उदय प्रतापनिराला

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छायावाद के महत्वपूर्ण कवि, जिनमें सभी प्रवृत्तियां विद्यमान – डॉ अनुपमप्रयागराज ।

10 दिसम्बर (हि.स.)। निराला जी ने सर्वस्व त्याग कर भारत मां का श्रृंगार करने के लिये कविताएं रची और इनके काव्य में गरीब से लेकर समाज के हर वर्ग का चित्रण बहुत ही नये ढंग से हुआ है। इसीलिये उन्होंने प्रकृति, ईश्वर और मनुष्य तक अपनी काव्य संवेदना का विकास किया। उनकी कविताएं समकालीन साहित्य से लेकर आज तक के कवियों को एक नया मार्ग प्रदान करती हैं।यह विचार हिन्दुस्तानी एकेडमी अध्यक्ष डॉ. उदय प्रताप सिंह ने एकेडमी के तत्वावधान में मंगलवार को हिन्दुस्तानी एकेडमी, प्रयागराज में छायावाद के जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर महाप्राण निराला पर केन्द्रित ‘छायावाद के सौ वर्ष : सन्दर्भ महाप्राण निराला का रचनाकर्म’ विषयक संगोष्ठी में व्यक्त किया।

उन्होंने कहा कि ‘निराला कबीर की परंपरा के कवि हैं। निराला ने अपने जीवन काल का बहुत अधिक समय प्रयागराज में व्यतीत किया। प्रयागराज के हर गलियों से उनका गहरा नाता है और प्रयागराज का कर्तव्य है कि उनको किसी न किसी बहाने याद करे। इसी क्रम में आज हिन्दुस्तानी एकेडेमी उक्त आयोजन कर रही है। वक्ता प्रो. मुश्ताक अली ने छायावाद के सौ वर्ष और महाप्राण निराला पर कहा कि निराला की शुरूआती रचनाएं ‘जुही की कली’ और ‘अधिवास’ भले लौटाई गई हों लेकिन बाद में निराला जी का व्यक्तित्व इतना विराट हो गया कि ‘सरस्वती’ उनके सामने छोटी हो गयी।       डॉ. अनुपम आनंद ने कहा कि छायावाद अपने प्रारम्भ दौर से ही अपने अनेक अन्तर्द्वन्दों, प्रवादों से घिरा रहा। अध्यापकीय आलोचना में इसको प्रकृति काव्य माना गया गया है।

सच यह है कि सभी काव्य आन्दोलनों में प्रकृति एक अनिवार्य हिस्सा रही है। छायावाद मूलतः नवजागरण की देन है और इसकी चुनौती है, विश्व कविता के सम्मुख प्रस्तुत हो सकने की। निराला छायावाद के महत्वपूर्ण कवि हैं। जिनमें छायावाद की सभी प्रवृत्तियां विद्यमान हैं। एक ओर अभिजात्य के साथ राम को नायकत्व देते हैं तो दूसरी ओर इलाहाबाद की सड़क पर तोड़ती पत्थर इनके काव्य को नायकत्व प्रदान करती है। डॉ.रविनंदन सिंह ने कहा कि छायावाद विविध एवं विरोधाभासी प्रतीत होने वाली काव्य प्रवृत्तियों का समुच्चय है। जिस तरह छायावाद विरूद्धों का समंजस्य है, उसी प्रकार निराला भी विरूद्धों का समन्वय करते दिखाई देते हैं। भाषा, भाव, विषय, संवेदना आदि कोणों से देखने पर छायावादियों में सबसे बड़ी रेंज निराला के पास ही दिखाई देती है। संगोष्ठी का संचालन डॉ. विनम्र सेन सिंह ने एवं धन्यवाद ज्ञापन एकेडेमी के अध्यक्ष डॉ.उदय प्रताप सिंह ने किया। इस अवसर पर रामनरेश तिवारी, शिवराम उपाध्याय, डॉ. फाजिल अहसन हाशमी, अजित पुष्कल, डॉ. मुरारजी त्रिपाठी, डॉ. सुजीत कुमार सिंह, डॉ. आभा त्रिपाठी, अशोक स्नेही, डॉ. सुमन विश्वकर्मा, डॉ. रवि शंकर पाण्डेय, डॉ. सरोज सिंह, डॉ. उषा मिश्रा, डॉ. पूर्णिमा मालवीय, डॉ. शान्ति चौधरी, उमेश श्रीवास्तव, डॉ. अनिल कुमार सिंह, कविता उपाध्याय, रेहान, डॉ. प्रीति सिंह, डॉ. उमा शर्मा आदि के साथ शहर के अन्य रचनाकार एवं शोध छात्र भी उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार/विद्या कान्त/मोहित


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