कोरोना काल में क्या खोया – क्या पाया तय करेगा भविष्य

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तविश्वव्यापी कोरोनावायरस ने पूरी दुनिया को नए सिरे से जिंदगी जीने के लिए विवश कर दिया है। जिस तरह की आपाधापी आडंबर और मशीनी जिंदगी आदमी जीने लगा था अब उसके उलट घरों में सादगी से और स्वालंबन के साथ दिन काट रहा है यह महामारी तभी समाप्त होगी जब इसकी कोई वैक्सीन खोज ली जाएगी। या जब तक मानवता के दुश्मन वाले देश जैसे चीन और उतरी कोरिया में जब तक तानाशाह जैसे शाशक मौजूद रहेंगे।

दरअसल दुनिया में जब भी महामारिया आई है। तब-तब मानव जीवन में बड़ा उलटफेर हुआ है देश में लॉक डाउन लागू हुए एक महीना हो गया है और इससे कोरोना महामारी का संक्रमण गति को धीमे करने में काफी सफलता भी मिली है लेकिन दूसरी ओर कई प्रकार की मुश्किलें भी बढ़ गई हैं व्यापार, व्यवसाय का बंटाधार हो गया है अर्थव्यवस्था चौपट हो गई है और भविष्य के प्रति संशय बढ़ गया है।

सबसे ज्यादा कोरोनावायरस से उत्पन्न हुई परिस्थिति में उद्योग जगत को प्रभावित कर रही हैं, शिक्षा क्षेत्र में नौनेहाल का भविष्य अनिश्चितता के भवर में है, खासकर गरीब बच्चों के माता पिता अब कैसे बच्चों को पढ़ाएंगे क्योंकि दिन रात मेहनत करके वह बच्चों को पढ़ा रहे थे लेकिन अब वे घरों में खाली हाथ बैठे अब उन्हें पढ़ाने की वजह बच्चों के पेट भरने की चिंता सता रही है।

बहरहाल सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्रियों से चर्चा करके लॉक डाउन से बाहर निकलने की योजनाओं पर चर्चा की और इसका निर्णय राज्य सरकारों पर छोड़ दिया है क्योंकि शुरुआती दौर में लॉक डाउन जितना जरूरी था अब यदि बहुत ज्यादा लंबा खींचा तो इसका विपरीत असर भी पढ़ने लगेगा क्योंकि अब अर्थव्यवस्था को ऑक्सीजन देने के लिए उद्योगों और व्यापार का चलना जरूरी हो गया है। छोटी-छोटी दुकानों को भी छूट मिलना जरूरी हो गया है जिससे लोगों को जरूरत का सामान मिले और जो फैक्ट्रियों में उत्पादन हो वह भी बिकने लगे और नगदी भी बाजार में दिखने लगेगी क्योंकि इस वक्त ज्यादातर क्षेत्र में नगदी गायब हो चुकी है।

व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए चौतरफा प्रयासों की जरूरत है। केवल बड़े उद्योगों और बड़े-बड़े व्यापार व्यवसाय से काम नहीं चलेगा बल्कि यह अवसर है की छोटे छोटे लघु उद्योग गांव स्तर पर शुरू किए जाए जिससे कि गांव की युवा पीढ़ी दूर जाकर काम करने के लिए बाध्य ना हो सरकार स्वयंसेवी संगठनों और समाजसेवियों को पर्यावरण संरक्षण जल संवर्धन गौ पालन जैसे कार्यों के लिए प्रोत्साहित कर सकती है। जिससे कि रोजगार भी मिले और प्रकृति के साथ मानव जीवन का सहेजना भी हो सके अन्यथा जिस तरह के विकास की आपाधापी में प्रकृति और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया गया है, उसके कारण ना केवल बीमारियां बढ़ी वरन स्वस्थ जीवन जीना मुश्किल हो गया है।

कुछ लोग कह सकते हैं कि कोरोना महामारी अच्छी आई कहीं पर्यावरण सुधर गया, कहीं नदियां साफ हो गई कहीं आडंबर वाली खर्चीली शादियां बंद हो गई भारी भरकम मृत्यु भोज बंद हो गया है। ना मिलने के कारण ही सही नशा का व्यापार आधा रह गया है। अब राजनीति में शक्ति प्रदर्शन की दौर भी खत्म हो गए है। घर बैठकर काम करने का महत्व बड़ी-बड़ी आईटी कंपनियां तक समझ गई और भविष्य में बहुत सी कंपनियां केवल 25% कर्मचारियों को ही ऑफिस में बुलाएंगे बाकी घर बैठकर काम कर आएंगे है। जिससे कर्मचारियों के आने-जाने पर खर्च होने वाला कीमती समय भी बचेगा और ईंधन की भी बचत होगी साथ ही ऑफिस में कर्मचारियों के लिए बैठने की कम जगह की जरूरत रहेगी । ऐसे ही कई क्षेत्रों में भविष्य में सुधार आने की संभावना भी बढ़ गई है। लेकिन यह आदमी के विवेक पर तय करेगा कि उसने करोना से कितना सीखा कितना खोया और कितना पाया और करोना का कहर कितने आर और कितने पार होंगे यह तो अब भविष्य ही बताएगा ?

देवदत्त दुबे


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