लॉक डाउन का दसवां दिन और एक नया सबक
मेरी छत पर ९३ गमलें हैं और उनको मै अभी तक पाइप के जरिये पानी देता था। किसी को कम किसी को ज्यादा मिलता होगा और पूरे गमले में भी फैलता नहीं था, पाइप के प्रवाह से सीधे नीचे भी जाता देखा मेंने, और सबसे बड़ी बात कि मेरी कसरत तो हो ही नहीं रही थी ?
मै तो पूरे कपडे पहने, पेरो में चप्पल डाले, बस खड़ा-खड़ा इसे एक कार्य समझ खानापूर्ति कर रहा था ऊपर से अहंकार अलग कि देखो मै कितना ख्याल कर रहा हूँ इनका, गोया कि मुझसे पहले तो सृष्टि थी ही नहीं ।
ऊपर से सूर्य भगवान अलग हँसते होंगे कि, देखो इस मूर्ख आदमी को, मैं इसे सबसे दुर्लभ संजीवनी देने के लिए जल रहा हूँ और ये सारे कपडे पहना, बस खड़ा है, कोई श्रम तो कर ही नहीं रहा ।
पैरों के नीचे से, छत पर पड़ी धूल भी मुझे मेरा उपहास करती हंस रही होगी, कि मै इसके पैरों से लिपट-लिपट इसका मेनिक्योर पेडीक्योर कर दूँ, इसके तलुवों को सहला कर उनकी बिवाइयां मिटा दूँ, लेकिन ये मूर्ख तो चप्पल पहना खड़ा है। क्या करूँ इस अज्ञानी का ?
छतों पर फ़ैल रहा पानी भी उदास, मुझे मौका ही नहीं मिल रहा, इस प्राणी के पैरों, तलवों को भिगोने का, उन्हें माटी को मथने और शरीर को ठंडक पहुँचाने देने का। उधर हवा भी मानो रूठी सी है कि यह अपना शरीर उघाड़े और श्रम करें तो मैं इठलाऊँ, इसके शरीर के रोम छिद्रों को खोलूं और इसके शरीर में ऊर्जा का प्रवाह करूँ लेकिन यह तो ?
तब मुझे बोझा ढोते, खेतों में श्रम करते मजदूरों का ध्यान आया, अपने भोजन की जुगाड़ करते मूक पशुओं, ख़ास तौर पर गाय भैंस का, ध्यान आया कि सुबह बासा बचा खुचा भोजन खाकर सारा दिन धूप में तपते, श्रम करते इन जीवों के शरीर को इन पंचतत्वों के प्रताप से कितनी ऊर्जा, शक्ति और इम्मुनिटी मिल जाती है कि ये बड़ी से बड़ी व्याधियां भी हँसते हुए झेल जाते हैं और इन्हे अमीरों वाली बीमारियां, विटामिन डी की कमी, डायबिटीस भी नहीं होती ?
क्यों भगवान ने पेड़पोधे बनाए, दुधारू गाय, भेंस बनाई । अब तो सोचिए और क्यों ये सब आपके आस पास ना हों तो ? हज़ारों साल से हमारे देश में सूर्यनमस्कार की व्याख्या और महत्ता है। क्यों ? सोचिए !
साफ़ सफ़ाई, गाय की पूजा, उसके गोबर से आँगन रसोई की लीपाई क्यों होती थी और क्यों आज गौ काष्ठ इतना आवश्यक होने लगा है ? हमारे देश में क्यों झुककर पैर छूने और हाथ जिस कर प्रणाम करने की परम्परा और सीख दी जाती थी । सोचिए ?
यह भी सोचिए कि हर काम मशीने करें, आप प्रकृति के साथ ना चलें, साफ़ सफ़ाई ना रखे, शुद्ध सात्विक भोजन ना करें, पेड़ पोधों, मूक पशुओं की देखभाल ना करें और अपनी परम्पराओं, बुजुर्गों की अवहेलना। तो प्रकृति क्यों आपके लिए सोचेगी ? सोचिए ! इससे पहले की कहीं इतनी देर हो जाए कि आप सोचने लायक ही ना रहें !
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