वी पी सिंह-कैसे एक राजा आम जनता का नेता बन गया

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“तुम मुझे क्या खरीदोगे मैं बिल्कुल मुफ्त हूं” ये शब्द इलाहाबाद के मांडा के राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह के हैं जब उन्होंने कांग्रेस को अलविदा कहा था शायद उनका कहना सही था कि वह मुफ्त के थे तभी उन्होंने कांग्रेस सरकार के खिलाफ झंडा उस दौर में बुलंद किया जब इंदिरा गांधी के मौत के बाद सहानुभूति की लहर पर सवार होकर उनके सुपुत्र राजीव गांधी भारी बहुमत के साथ लोकसभा में पहुंचे और देश के प्रधानमंत्री बने थेे। उस समय राजीव गांधी के खिलाफ एक शब्द भी कहना किसी के बस की बात नहीं थी क्योंकि पहली बार कांग्रेस को इतना बहुमत मिला था और पहली बार चुनाव में 50% से अधिक मतदान हुआ जिसमें से 49.1 वोट सिर्फ कांग्रेस को मिले हुए थे इस दौर में जब राजीव गांधी ने विश्वनाथ प्रताप सिंह को वित्त मंत्री बनाया ईमानदारी से काम करने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह ने राजीव गांधी के मित्र अमिताभ बच्चन और धीरूभाई अंबानी को भी नहीं बख्शा टैक्स चोरी पकड़ी और कुछ लोगों को जेल भेजा इसके बाद जब विश्वनाथ प्रताप सिंह को वित्त मंत्रालय से हटाकर रक्षा मंत्री बनाया गया तब विश्वनाथ प्रताप सिंह को पता चला कि स्वीडन से जिन 410 तोपों का सौदा हुआ है उसमें कुल ₹64 करोड का कमीशन खाया गया है बाद में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इस मुद्दे को उठाया और उस दौर में उठाया जब राजीव गांधी के खिलाफ कोई एक शब्द भी बोलने की हिम्मत नहीं कर सकता था क्योंकि उस समय हिंदुस्तान की सियासत में सबसे मजबूत व्यक्तित्व राजीव गांधी ही थे, बिल्कुल आज के नरेंद्र मोदी की तरह। राजीव गांधी के मिस्टर क्लीन की छवि के खिलाफ बोलना अपने ऊपर ही कीचड उछालने की तरह से था। परंतु राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह ने उनकी छवि को मटियामेट कर दिया स्थिति ऐसी हो गई की 1987 में विश्वनाथ प्रताप सिंह को कांग्रेस से बाहर कर दिया गया तब विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार से बाहर निकलकर जनता की अदालत में इस मामले को लेकर गए और उन्होंने राजीव गांधी को जनता के बीच खड़ा कर दिया उन्होंने ये मामला आम जनता, गरीब, दबे कुचले और युवाओं के बीच में उठाया। दूसरी तरफ नौजवानों को भी भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने वाला एक नेता मिल गया था एक ऐसा नेता जो सत्ता को त्याग कर आया था वी पी सिंह गांव, चट्टी, चौराहे पर पैदल चलकर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे थे। 1988 में उन्होंने राष्ट्रीय मोर्चा का गठन किया तत्पश्चात जब 1989 में लोकसभा का चुनाव हुआ था जिसमें कांग्रेस को सर्वाधिक सीटें तो मिली परंतु वह सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी दूसरी तरफ विश्वनाथ प्रताप सिंह जो राष्ट्रीय मोर्चा के अध्यक्ष थे उनको एक तरफ वामपंथी पार्टियों तो दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी का समर्थन मिल गया और वह देश के प्रधानमंत्री बन गये।

प्रधानमंत्री बनने के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पिछले 10 वर्षों से धूल फांक रही मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने का फैसला लिया और यही फैसला भारतीय राजनीति में सामाजिक आर्थिक ढांचे के बदलाव का वाहक साबित हुआ और उसी का परिणाम हुआ कि काशीराम, मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान जैसे तमाम नेता उभर पाए विश्वनाथ प्रताप सिंह के इस फैसले ने उनको उनकी ही जाति बिरादरी ही नहीं बल्कि पूरे सवर्ण समाज का दुश्मन बना दिया दूसरी तरफ जिस वर्ग के लिए उन्होंने इतना बड़ा फैसला लिया वह वर्ग भी उन्हें वह सम्मान नहीं दे सका जिसके वह वास्तविक अधिकारी थे। शायद वह सम्मान उनको सिर्फ इसलिए नहीं मिला क्योंकि वह उन लोगों के बीच से नहीं आते थे जिनके लिए उन्होंने अपनों को छोड़ दिया था ।परंतु विश्वनाथ प्रताप सिंह का इस बात का भली-भांति एहसास था उन्होंने कहा था कि मैं यह नहीं जानता कि हमें लोग किस तरह से याद रखेंगे लेकिन मैं यह जानता हूं कि आने वाले समय में लोग मेरे ही दिखाए रास्ते पर चलेंगे भले ही लोग हमें याद ना करें इसके अलावा मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह को इस बात का भी भली-भति एहसास हो चुका था कि उनकी सरकार बहुत दिनों की मेहमान नहीं है इसीलिए उन्होंने नई दिल्ली में एक बयान दिया था कि “कुछ लोग हमें दिल्ली से हटा सकते हैं सत्ता से हटा सकते हैं परंतु हमें गरीब के दरवाजे से कभी नहीं हटा सकते” आज भारत का शायद ही कोई ऐसा राजनीतिक दल हो जो विश्व नाथ प्रताप सिंह को याद करता हो लेकिन लगभग हर राजनीतिक दल उनके रास्ते पर चल रहा है भारतीय जनता पार्टी के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने तो 81 वें संविधान संशोधन से बैकलॉग के लिए 100% आरक्षण का प्रावधान किया , 82 वें संविधान संशोधन से आरक्षित वर्ग के लिए न्यूनतम अंक की बाध्यता समाप्त कर दी ,85वें संविधान संशोधन से आरक्षितों को बिना परफारमेंस प्रमोशन का प्रावधान किया और जाटों को आरक्षण दिया गया दूसरी तरफ मजबूत प्रधानमंत्री के जाने वाले नरेंद्र मोदी ने भी देश में एससी एसटी एक्ट में संशोधन कर बिना जांच एफ आई आर के तत्काल बाद गिरफ्तारी का प्रावधान कर दिया जिसका पूरे देश में भयंकर विरोध हुआ और मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को अपनी सरकार तक गवानी पड़ी और लोगों को दोबारा विश्वनाथ प्रताप सिंह के मंडल कमीशन की याद आ गई परंतु नरेंद्र मोदी ने अपने फैसले को नहीं बदला भले ही बाद में नरेंद्र मोदी की सरकार के द्वारा सवर्णों को 10% आरक्षण दिया गया। तात्पर्य है कि विश्वनाथ प्रताप सिंह के ही रास्ते पर आज के राजनीतिक दल चल रहे हैं भले ही उनकी बात न की जाए। लेकिन यह खेद का विषय है जिस वर्ग के लिए उन्होंने न केवल अपनी सरकार को दांव पर लगा दिया बल्कि गंवा भी दिया उस वर्ग के द्वारा उन्हें यथोचित सम्मान नहीं दिया गया। विश्वनाथ प्रताप सिंह के ऊपर गाहे-बगाहे कीचड़ उछाले जाते रहते हैं परंतु इस बात की चर्चा नहीं की जाती कि कैसे राजघराने में पैदा हुआ यह लड़का गरीबों का मसीहा बन गया परंतु महात्मा गांधी के देश में विश्वनाथ प्रताप सिंह से एक सीख यह मिलती है कि यदि कोई भी अपने जाति समूह के हितों से ऊपर उठकर काम करेगा तो वह सार्वजनिक जीवन में हाशिए पर चला जाएगा ये विश्वनाथ प्रताप सिंह की स्थिति देखकर के स्पष्ट हो जाता है एक ऐसा प्रधानमंत्री जिसने विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में हिस्सा लेते हुए अपनी ज्यादातर जमीने दान में दी थी थी बाद में उनके परिवार वालों ने उनसे नाता भी तोड़ लिया, इसके बावजूद उन्हें विलेन के रूप में देखने वालों की संख्या आज भी है। वीपी सिंह ने बाबा साहब भीमराव अंबेडकर और नेल्सन मंडेला को एक साथ भारत रत्न दिया इसके अलावा डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की एक तैल चित्र को भी भारतीय संसद में स्थापित करवाया डॉक्टर अंबेडकर के जन्मदिवस पर उन्होंने राष्ट्रीय छुट्टी की घोषणा भी की इसके अलावा उन्होंने ही नव बौद्धों को आरक्षण की सुविधा प्रदान की। विश्वनाथ प्रताप सिंह के मन में किसी के प्रति किसी तरह का कोई मैल नहीं था जब वह राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव प्रचार कर रहे थे तब भी उन्होंने कभी भी राजीव गांधी के ऊपर व्यक्तिगत हमले नहीं किए यह चीजें वर्तमान राजनेताओं को विश्वनाथ प्रताप सिंह के जीवन चरित्र से सीखनी चाहिए। मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने भले ही विश्वनाथ प्रताप सिंह के किए गए फैसलों पर सवाल उठाया हो परंतु उसने सरकार से समर्थन वापस नहीं लिया कुछ दिनों बाद अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण हेतु लालकृष्ण आडवाणी ने रथयात्रा का जब प्रारंभ किया तब बिहार में लालू प्रसाद यादव की सरकार के द्वारा गिरफ्तार करने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और वीपी प्रधानमंत्री नहीं रहे ।आज की परिस्थिति में हम लोग भले ही वैकल्पिक राजनीति की बात करते हो परंतु कोई भी विश्व नाथ प्रताप सिंह का विकल्प नहीं बन सकता है।भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाकर सत्ता में आये विश्वनाथ प्रताप सिंह का पूरा कैरियर बेदाग रहा ,कहा जा सकता है कि वीपी सिंह भारतीय राजनीति में सिद्धांत की राजनीति करने वाले पीढ़ी के आखिरी नेता थे सामाजिक न्याय के प्रति ईमानदार नजरिया रखने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह के प्रति भारतीय जनमानस का बौद्धिक अन्याय है कि उन्हें इतिहास में उनकी उचित जगह देने से वंचित रखा गया कम से कम उस वर्ग को भी उनको सम्मान देना चाहिए जिसके लिए उन्होंने अपने और अपनी सरकार को बलिदान कर दिया यहां तक कि अपने सम्मान को भी बलिदान कर दिया। नियति का अन्याय ही था कि कैंसर से जूझ रहे उनके अंतिम समय में दिल्ली के अपोलो अस्पताल में किसी पूर्व प्रधानमंत्री की तरह से चैनल उनको कवर न कर सके क्योंकि वो 26 नवंबर 2008 के मुंबई हमले को कवर करने में व्यस्त थे।।

सौरभ सिंह सोमवंशी

लेखक अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा पूर्वी उत्तर प्रदेश के सह मीडिया प्रभारी हैं।


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