समान नागरिक सहिंता ही तब्लीगी जमात जैसे संगठनों का इलाज़
आजादी के बाद की तत्कालीन सरकारों ने भारत में विभिन्न धर्मों के लिए भिन्न-भिन्न आधार पर दोहरे मापदंड अपनाते हुए कानून बनाए, उनका उद्देश्य क्या था? हमें आज तक नहीं समझ आया। किंतु आज इसका दुष्परिणाम पूरा भारत आज भुगत रहा है, आज जब संपूर्ण भारत पर कोरोना वायरस जैसी आपदा का कहर बरप रहा है, तो भारत सरकार ने अपनी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए संपूर्ण भारत ने इक्कीस दिनों के लिए लॉकडाउन का ऐलान किया, जहां देशभर में लॉकडाउन का पालन करते हुए देश में एक वर्ग के लोग अपने पवित्र नवरात्रि, रामनवमी, हनुमान जयंती जैसे महत्वपूर्ण पर्वों के बीच किसी भी धार्मिक स्थलों पर नहीं गए, घरों में बैठ कर ही नवरात्रि,रामनवमी, हनुमान जयंती का पर्व मनाया। वहीं कुछ धर्म विशेष के कुछ चुनिंदा लोग अपनी धार्मिक मान्यता के आगे लॉकडाउन के आदेश को मानने को तैयार ही नहीं है , साथ ही बड़े पैमाने पर विदेशियों को पूरे देश में कोरोना जिहाद फैलाने के लिए इबादतगहो में छुपाकर रखा गया और अब जब पुलिस उन्हें पकड़ने जाती है तो पत्थरबाजी के साथ ही गोलियां भी चलाई जा रही है।
गौरतलब है कि सूरत, अहमदाबाद , मुजफ्फरनगर, गाज़ियाबाद, मुंगेर, इंदौर, प्रयागराज, कश्मीर, मुर्शिदाबाद, लखनऊ जैसे अनेकों शहरों की पुलिस के द्वारा छापा मारने पर धार्मिक स्थलों में विदेशी कोरोना जिहादी छुपे हुए पाए गए हैं। फ़िलहाल सरकार ने इन छुपे हुए जिहादियों को देश के कोने कोने में खोजकर अपनी निगरानी में क्वारांटाइन कर चुकी है, इन सभी के उपर स्थानीय प्रशासन को बिना सूचना दिए छुपकर धार्मिक स्थलों में रहने के आरोप के आधार पर पुलिस ने महामारी एक्ट में मुकदमा भी दर्ज किया है।लेकिन हद तब हो जाती है जब दिल्ली सरकार के दिल्ली में 200 लोगों को एक साथ किसी भी हाल में एकत्रित न होने के आदेश देने के बाद भी दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में 13 से 15 मार्च के बीच धार्मिक संस्था तब्लीगी जमात के द्वारा मरकज में एक साथ लगभग हजारो लोगों को इकट्ठा करके जलसा आयोजित करने का मामला पाया गया। जिनमें से लगभग 1306 लोग विदेशी थे, जो पर्यटक वीजा पर भारत आकर अपने धर्म का भारत में प्रचार प्रसार कर रहे थे ,जिसकी सूचना ना तो दिल्ली सरकार को थी ना ही भारत सरकार को। इसी में से कुछ प्रचारक चुपचाप भारत के कोने कोने में धर्म का प्रचार करने के लिए जाने लगे, लॉकडाउन होने के बाद कुछ प्रचारक वहीं फँस गए तो वो स्थानीय प्रशासन से बचने के लिए मरकज के अंदर ही एक सप्ताह तक छुपे रहें, फिलहाल सरकार को पता चला तो इन सभी को सरकार ने खोज – खोज कर जांच करना शुरू कर दिया, तो पाया गया इनमें से अधिकांश कोरोना पॉजिटिव हैं, इन्ही में से हजारों की संख्या में जो लोग दिल्ली पुलिस को चकमा देकर देश के अन्य हिस्सों में चले गए वो अब देश के लिए मुसीबत का कारण बन गए हैं।
गौरतलब है कि इन्ही लोगों में से भारत के अन्य प्रदेशों में गए दर्जनों से अधिक जमातियों की कोरोना की वजह से मौत हो चुकी है। और लगातार अन्य राज्यों से भी ऐसे ही मौत के आकङे सामने आ रहे हैं। आज पूरे भारत में भय का माहौल है। क्योंकि इन्होंने रास्ते में जाते वक़्त और जाने के उन जगहों पर न जाने कितने लोगों को कोरोना से संक्रमित किया होगा। जिसका परिणाम है कि आज भारत कोरोना के तीसरे चरण के मुहाने पर जा पहुँचा है। बड़ा प्रश्न है कि आखिर इसका जिम्मेदार कौन है?
कोई इसका जिम्मेदार स्थानीय प्रशासन को बता रहा है तो कोई आयोजकों को लेकिन मेरी नजर में इसका जिम्मेदार हमारी संवैधानिक व्यवस्था है, जो धर्मों को अल्पसंख्यक होने के नाम पर कुछ ज्यादा ही खुली छूट देता है । धर्म विशेष के लिए भारतीय संविधान लागू न होकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के द्वारा बनाए कानून मान्य होते हैं, और इनके धार्मिक स्थलों पर सरकार का नियंत्रण न होकर इनके द्वारा बनाए वक्फ बोर्ड का नियंत्रण होता है, जो कि इन धर्मों के धमगुरुओ के हाथ की कठपुतली मात्र होती है । उदाहरण भी आपके सामने है। इसलिए अब वक़्त की मांग है कि पूरे भारत में सभी धर्मों के लिए व उनकी धार्मिक स्थलों और संस्थाओं को लेकर एक राष्ट्रीय नीति बननी चाहिए और वह नीति सभी धर्मों पर एकसमान रूप से पर लागू होनी चाहिए।
सबसे पहले तो इसके लिए सरकार को स्वयं सभी धार्मिक स्थलों व पर ख़ुद नियंत्रण रखना होगा साथ ही विभिन्न धर्मों के धार्मिक स्थलों की पूरे देश के प्रति जवाबदेही तय करना होगा। धार्मिक स्थलों व संस्थाओं के हर काम में पारदर्शिता लाना होगा। धार्मिक स्थलों में चढ़ावे के रूप में आने वाले धन से लेकर हर एक चीज का हिसाब होना चाहिए ताकि कोई उसका गलत तरीके से देशद्रोही गतिविधियों में प्रयोग न कर सके,इसे भारत सरकार द्वारा सुनिश्चित किया जाना चाहिए,चुकीं भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है यहाँ विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं इसलिए इनके अलग – अलग धार्मिक-स्थल में इबादत का अपना अलग अलग तरीका हो सकता है, लेकिन उसका उद्देश्य संपूर्ण भारत के कल्याण का होना चाहिए, भारत सरकार सुनिश्चित करें कि एकाकृत भारत में विभिन्न धर्मों के लोगों व उनके धार्मिक स्थलों और और उनकी संस्थाओं के लिए बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के आधार पर अलग-अलग मापदंड अपनाकर अलग अलग न होकर एक जैसा हो।
इसलिए अब वक़्त की मांग है कि पूरे भारत में सभी धर्मों व उनकी धार्मिक संपत्तियों और उनकी संस्थाओ के लिए एक समान कानून बनाया जाए। यदि भारत में अल्पसंख्यक के नाम पर कुछ विशेष धर्मों को कुछ इसी प्रकार से विशेष छूट मिलती रहेगी तो आने वाले समय में पूरे देश को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे।
)लेखक का स्वतंत्र विचार है )