ऊलझे उपचुनाव को समझने मे दलो को आ रहा पसीना

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देवदत्त दुबे ।
भोपाल। अब जबकि 28 विधानसभा क्षेत्रों में नामांकन पत्र दाखिल करने का सिलसिला शुरू हो गया है, तब राजनीतिक दल इस बात को लेकर उलझन में हैं कि आखिर इन उपचुनाव की उलझी हुई गुत्थी कैसे सुलज पाएगी ।
दरअसलअसामान्य परिस्थितियों में हो रहे 28 विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव राजनीतिक पंडितों को भी समझने में पसीना आ रहा है। हर दिन परिस्थितियां बदल रही है । कभी बयान उलझा देते हैं, तो कभी किसी की सभा समीकरण बदल देती है, कभी इधर से उधर जाने वाले नेताओं के कारण तराजू डामाडोल होने लगता है और सबसे बड़ी उलझन दोनों दलों में भीतर घात को लेकर है। जिस तरह की खबरें आ रही है, उसमें ऊपर से लेकर नीचे तक दोनों दलों में बड़े पैमाने पर भीतर का घात होने का अंदाजा लगाया जा रहा है। बल्कि यहां तक कहा जा रहा है कि इस चुनाव में उसी दल की जीत होगी जो भीतर घात पर अंकुश लगा लेगा और इसमें भी अब जो भी दल मैनेजमेंट के माध्यम से प्रयास करेगा उसी को सफलता मिलेगी। बातों में अधिकांश लोग अब आने वाले नहीं है। वे जो भी चाह रहे हैं वह तुरंत। जो दल उपलब्ध करा देगा उसकी तरफ ध्रुवीकरण तेजी से होगा। लेकिन सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यही है कि कौन दल कितनी गंभीरता से इन चुनाव को ले रहा है ? उसका मैनेजमेंट कैसा है ?
बहरहाल प्रत्याशियों की घोषणा के बाद अब दोनों दलों की ओर से चुनावी मैदान संभाल लिया गया है। लेकिन उपचुनाव में कौन सा मुद्दा सटीक बैठेगा यह समझ पाना दलों के लिए मुश्किल हो रहा है। यही कारण है की छोटे-छोटे मुद्दों को हवा दी जा रही है। प्रदेश के चौथी बार मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान ने मंगलवार को पत्रकार वार्ता करके अनेकों बार एक ही बात दोहराई की हां मैं गरीब हूं, हां मैं भूखा नंगा हूं और इसी कारण मैं गरीबों की चिंता करता हूं। इस मामले में वह वैसा ही जोर दे रहे हैं जैसा एक समय गुजरात में नीच शब्द को लेकर नरेंद्र मोदी ने तूल दिया था । लेकिन हर कदम फूंक-फूंक कर चल रहे पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कांग्रेसी नेताओं को साफ शब्दों में चेताया है की शब्दों के चयन और मर्यादा का ध्यान रखें क्योंकि किसान कांग्रेस के अध्यक्ष दिनेश गुर्जर ने सुर्खी विधानसभा क्षेत्र के जैसीनगर में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर दिए गए बयान से जो बवाल मचा है वह आगे ऐसा कहीं भी ना हो ।इसका इंतजाम कमलनाथ ने कर दिया है माना जा रहा है की कमलनाथ ने सभी नेताओं को मौखिक रूप से समझा दिया है, कि उपचुनाव की सभाओं और प्रचार के दौरान विपक्ष पर हमला करने के वक्त शब्दों के चयन और मर्यादा का हर हाल में ध्यान रखा जाए। उन्होंने कहा कि ऐसा कोई भी ध्यान नहीं दिया जाए जिससे पार्टी का नुकसान हो और वह चुनाव में मुद्दा बन जाए ।जबकि सत्ताधारी दल इस मुद्दे को तूल देना चाहता है। यही कारण है की भाजपा के नेताओं ने अपनी डीपी में लिखना शुरू कर दिया है कि मैं भी शिवराज लेकिन यह कितना असरकारी होगा यह वक्त ही बताएगा क्योंकि दोनों ही तरफ से रणनीतिकार एक-एक शब्द को और एक-एक बयान को पकड़कर तिल का ताड़ बना रहे हैं
कुल मिलाकर आम चुनाव की तरह मुद्दों की स्पष्टता ना होने के कारण उपचुनाव प्रतिदिन किसी न किसी बात पर उलझे हुए दिखाई देते हैं और इस उलझन को जो भी दल समय रहते समझाता जाएगा उसकी राह बनती जाएगी अन्यथा यह उलझन मतदान के दिन भारी भी पड़ सकती है।


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