रोमांचक यात्रा के शौकीन प्रयागराज के दो युवक

प्रयागराज स्थित प्रीतमनगर निवासी रिशेन्द्र वर्मा एवं ट्रांसपोर्ट नगर निवासी आशीष यादव का शौक अन्य युवाओं से कुछ भिन्न है। यह युवक स्कूटी यात्रा अर्थात स्कूटी द्वारा प्रयागराज से 19 जून 2021 को लद्दाख के लिए रवाना हुए थे और 10 अक्तूबर 2021 को राजस्थान गए थे यानि बरफ से आग। रिशेन्द्र रेज काॅफी और माई फिटनेस के डिस्ट्रीब्यूटर हैं तथा आशीष नौकरी करते हैं।
रिशेन्द्र के अनुसार लद्दाख का पर्यावरण बहुत ही अच्छा है परंतु वहां जाने वाले पर्यटक अगर सावधानी नहीं बरतेंगे तो कुछ सालों में यहां का पर्यावरण भी प्रदूषित हो जाएगा। लद्दाख के रास्ते में उन्हें काफी अच्छे लोग मिले। जम्मू कशमीर के मुसलमान भाइयों के विषय में उनकी धारणा बहुत अच्छी थी। रिशेन्द्र के मुताबिक कशमीर के मुसलमान भाई भी भारतीय ही हैं। लद्दाख यात्रा के दौरान उन्हें हाड़़ कंपा देने वाली ठंड का सामना करना पड़ा था जिससे निपटने के लिए उन्होंने पच्चीस हजार रूपए की खरीददारी की थी। दोनों ने ही कहा कि इस यात्रा में सब कुछ बेहद अच्छा था। कहीं कोई परेशानी नहीं हुई परंतु पेट्रोल की वजह से उन्हें बहुत परेशान होना पड़ा। कभी कभी तो ब्लैक में पेट्रोल खरीदना पड़ता था। सबसे ज्यादा परेशानी हिमाचल प्रदेश में हुई थी। वहां पर सरचू में 150 रूपए लीटर पेट्रोल खरीदना पड़ा था जो इस यात्रा में सबसे महंगा था।

दोनों से जब पूछा गया कि पेंगांग लेक पर पहुंचने के बाद उनके मन में सबसे पहली बात कौन सी आई। दोनों ने कहा सपना सच हुआ। आज तक जिसे हम लोगों ने टीवी सीरियल, फिल्म और वाॅलपेपर या चित्रों में ही देखा वह आंखों के सामने था। रिशेन्द्र ने कहा कि लेक का पानी इतना साफ था कि नीचे पड़े पत्थर तक दिख रहे थे। नीले रंग का जल जिसे क्रिस्टल क्लीयर कह सकते हैं।

राजस्थान वह आगरा, भरतपुर होते हुए गए थे। पूछने पर आशीष ने बताया कि राजस्थान के लोग बहुत अच्छे थे। बहुत ही मिलनसार। मिलते ही चाय पिलाते लेकिन वहां के लोग यूपी वालों से डरते हैं। वहां के लोगों के अनुसार यूपी वाले बहुत जल्द चाकू निकाल लेते हैं। कई राज्यों की यात्रा उन्होंने की लेकिन राजस्थान का खाना उन्हें सबसे अच्छा और सस्ता लगा। वहां पर रिशेन्द्र को सेव टमाटर सबसे अच्छा लगता था और आशीष को वहां की तरह तरह की छाछ।

रिशेन्द्र को लोंगेवाला और तनोट माता मंदिर बहुत अच्छा लगा। तनोट माता मंदिर से भारत पाक सीमा 12 – 14 किमी दूर है। उनके अनुसार यदि राजस्थान का सही मजा लेना है तो राजस्थान के भीतरी हिस्से में जाना पड़ेगा अर्थात मरूस्थल। आशीष को मरूस्थल बहुत पसंद आया।

दोनों ने कहा कि जैसलमेर शहर में प्रवेश करते ही सब कुछ सुनहरा दिखता है। वहां के पत्थर सुनहरे रंग के हैं। आशीष को बीकानेर का किला भी अच्छा लगा। परंतु दोनों ने ही कहा जैसलमेर के किले की बात ही कुछ और है। रिशेन्द्र के अनुसार किले के अंदर होटल हैं जहां रह सकते हैं, दुकानें हैं खरीददारी आसानी से की जा सकती है और सबसे अच्छा किले के ऊपर से पूरा शहर दिखता है। बहुत सुदर दृष्य तथा वहां के पत्थर गर्मी में ठंडा करते हैं और ठंडी में गर्म। आशीष ने कहा कि यह किला साधारण किलों से कुछ अलग था। जब पूछा गया कि क्या दोनों की रूचि पहले से ही इतिहास में थी। उन्होंने कहा जब स्कूल में टीचर पढ़ाती थीं तब नहीं था पर अब अच्छा लगने लगा है।

उन्होंने अब तक की दोनों यात्राओं को छोटी राईड बताते हुए कहा अब कुछ बड़ा करेंगे।