करोना काल, लॉकडाउन 3.0 का आठवां दिन, मानवता को संवारती ऐंजिल्स के नाम
वो मदर भी है, सिस्टर भी, वो नन भी है और “नो वन” भी, और इन सब सम्बोधनों के बीच वो एक बेटी भी है, बहन, माँ और प्रेयसी भी, पत्नी भी है और सेविका भी, घर परिवार और तमाम व्यक्तिगत समस्याओं से जूझती, वो परिचायिका, सेविका का अपना दायित्व पूरी तन्मयता से निभाती है। एक वही है, जो आपकी उलटी, सुसु, पॉटी पर भी, सारे घृणा भाव छोड़, आपकी हर तरह की सुश्रुषा करती है, जबकि आपके अपने घृणा से नाकमुंह सिकोड़ लेते हैं, फिर भी चेहरे पर मुस्कान लिए वो अपना कर्म करती रहती है। वो नए रंगरूट डॉक्टरों की सबसे पहली दोस्त भी है, शिक्षिका भी, उन्हे डांटती भी है पर काम भी वही सिखाती है और जब देखती है कि उसके नए बच्चों ने दिनभर से कुछ नहीं खाया, तो खुद भूखी रहकर अपने टिफिन से कइयों के पेट भी भर देती है।
इसीलिए आज फिर आनंद पिक्चर का वो किरदार याद आ रहा है, जिन जिन लोगों ने भी यह पिक्चर देखी होगी, उन्हें राजेश खन्ना के बाद अगर किसी का किरदार याद रहा होगा, अच्छा लगा होगा तो वो अमिताभ नहीं, फिल्म की मैट्रन का रहा होगा, बाहर से सख्त, अंदर से नरम और मरते हुए अपने हर मरीज के लिए अंदर से बेहद कमजोर, दुखी और किसी माँ की तरह अंदर ही अंदर बिलखती हुई।
हालांकि आज भी मैं, फिर वही कहूंगा, जो हर उस दिन के लिए कहता हूँ, कि एक ही दिन क्यों? हर दिन हर पल इनके नाम होना चाहिए, फिर वो चाहे मदर्स डे हो या नर्स डे और इन्हे ना सिर्फ दिल से सेल्यूट किया जाना चाहिए, बल्कि इनके लिए समाज को वो सारे प्रयास करने चाहिए जिससे इन्हे थोड़ा भी सुकून पहुँचता हो और इसलिए आज भी मुझे सर्जरी करते समय या मरीजों की देखभाल, मलहमपट्टी करते समय अपने इष्ट के अलावा, याद आती हैं, मेरे मेडिकल कालेज की हर वो नर्स, सिस्टर, मदर जिसने मुझ जैसे अज्ञानी को सर्जरी की पढ़ाई के पहले दिन, बिना डांटे, बिना उपहास उड़ाए, सर्जिकल ड्रेस्सिंग्स करना, औजार पहचानने से लेकर, सर्जरी की बारीकियां तक सिखाई। शेमा और एलसी से लेकर, ऑपरेशन थिएटर की सबसे सीनियर मैट्रन शकुंतला तक, जिनसे प्रोफेसर्स तक डरते थे, लेकिन मेरे पहले दिन से इन्होने जो मुझे स्नेह दिया, सिखाया, आज उसी की वजह से मैं इस देवीय कर्म में ना सिर्फ सफल हूँ, बल्कि संतुष्ट भी और इसीलिए अपने मातापिता के बाद अगर किसी को श्रेय जाता है, तो निःसंदेह इन्ही को !
और इसीलिए भी, जब आज इस जानलेवा करोना काल में, सेवा करती, दिन रात एक करती, इन ऐंजल्स को देखता हूँ, बिना थके, बिना किसी सहूलियत और किसी अवार्ड, तोहफे की लालसा लिए, और देखता हूँ कि अच्छे से अच्छे सूरमाँ भी जिस मास्क को दस मिनिट नही पहन सकते, जिसमे दम घुटता है इनका, PPE किट तो बहुत दूर की बात है, लेकिन आपकी जान बचाने, अपनी जान जोखिम में डालती, ये सृष्टि की रचयिताएं, सिर्फ़ मास्क ही नही, पूरा प्लास्टिक का तम्बू जैसा PPE किट पहन, भट्टी जेसे माहौल में तपती हैं फिर भी कुछ राक्षस, इन्हे गालियां देते हैं, पत्थर बरसाते, थूकते दिखाई देते हैं और सरकार आँखें फेरे दिखाई देती है, तब लगता है, कि पृथ्वी पर इतने गंभीर परजीवी क्यूँ और कहाँ से आये होंगें? जाहिर सी बात है कि इन्ही कुकर्मों के चलते विधाता ने भेजे होंगें और नहीं तो क्या, आपका अल्लाह, खुदा, जीसस, भगवान्, प्रकृति सृष्टि, विधाता आपसे खुश होंगें आपकी ऐसी हरकतों पर, सोचिए!
और इसीलिए जब जब धरती पर, प्रकृति पर, मूक पशुपक्षियों पर, असहाय दीनदुखियारों, मजलूमों बेजुबानों पर, किसी समूह, धर्म, ताकत का अत्याचार बढ़ जाता है, तब कोई मसीहा नहीं, यही, ऐसा ही, एक सूक्ष्म सा अदृश्य सा परजीवी आपकी दुनिया को तहस नहस करने ऊपर वाला भेज देता है, और वो बिना दिखे ही आपकी कब्रें खोद जाता हैं, और कहते भी हैं ना, खुदा की मार पड़े तुझ पर, कीड़ें पड़ें, तो और कैसी होती होगी, खुदा की मार, सोचियेगा?
और इसलिए अब, जबतक दुनिया, इस परजीवी COVID १९ से लड़ना, जीना सीखना शुरू कर रही होगी, तबतक “चायनीज खुदाई मार” के चलते कई और वायरस मैदान में आ जाएँगे। जाहिर है, अब यह केमिकल लड़ाई बेहद लम्बी है, और इसलिए प्रकृति के कुछ नियम तो, आज नहीं तो कल, सभी को, अब मानने ही होंगे!
मिलते हैं कल, तब तक जय श्रीराम!
डॉ भुवनेश्वर गर्ग डॉक्टर सर्जन, स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, हेल्थ एडिटर, इन्नोवेटर, पर्यावरणविद, समाजसेवक
मंगलम हैल्थ फाउण्डेशन भारत
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