बहुत याद आते है ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार
जैति भट्टाचार्य।
आखिर किसी की दुआ काम न आई, दिलीप साहब हम सबको छोड़कर चले गए । एक युग का अंत हो गया । 98 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कह दिया । दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसंबर 1922 को हुआ था । उनके पिता फल व्यापारी थे । दिलीप कुमार सबसे अधिक पुरस्कार पाने वाले अभिनेता हैं । उन्होंने अपना फिल्मी करियर 1944 में ज्वार भाटा ( film Jwar Bhata) से शुरू किया जो 1998 में क़िला (film Qila) पर आकर रुका । पांच दशकों तक चले अपने करियर में उन्होंने 65 से अधिक फ़िल्में कीं । उनका उसूल था साल में एक फिल्म करना । दिलीप कुमार का अभिनेत्री मधुबाला के साथ रिश्ता कई सालों तक चला परन्तु शादी में न बदल सका । 1966 में उन्होंने अभिनेत्री सायरा बानो से निकाह किया।
उनका बचपन –
उनका जन्म 11 दिसंबर 1922 को हिंदको बोलने वाले अमन परिवार में हुआ था जो अपने पारिवारिक मकान में रहता था । उनका जन्म पेशावर के क़िस्सा खवाणी बाजार, ब्रिटिश भारत में हुआ था । वह लाला गुलाम सरवर खान एवं आयशा बेगम के 12 संतानों में एक थे । जन्म के बाद उनका नाम रखा गया मोहम्मद युसूफ खान । 1930 के दशक में लाला गुलाम सरवर खान का बड़ा परिवार बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए बम्बई (आज का मुंबई ), महाराष्ट्र चला आया । युसूफ कुमार की प्राथमिक शिक्षा देओलाली, नासिक के सम्मानित बार्नेस स्कूल से हुई । पेशावर के पश्तून परिवार में जन्में युसूफ के पिता फल व्यापारी थे जिनके फलों के बागान पहले पेशावर में थे और बाद में देओलाली, नासिक में ।
करियर –
1940 के दशक में आजीविका की तलाश में युवा युसूफ पुणे आये । जीविका की तलाश तो करनी ही थी साथ ही साथ घर में भी कुछ अनबन हो गयी थी , पुणे के आर्मी क्लब में 1943 में उन्होंने सैंडविच की स्टाल लगाई । परन्तु उनकी तम्मना मुंबई जाकर कमाने की थी ताकि वह अपने पिता की मदद कर सकें । कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म हो जाने पर वह अपनी बचत 5000 रुपये लेकर मुंबई चले आये ।
एक दिन वह चर्चगटे रेलवे स्टेशन पर डॉ. मसानी से मिले । युसूफ ने उनसे रोज़गार के बारे में चर्चा की और मदद मांगी । डॉ . मसानी युसूफ को लेकर मलाड में बॉम्बे टॉकीज गए और बॉम्बे टॉकीज की मालकिन देविका रानी से मिलवाया । देविका रानी ने युसूफ को 1250 रूपए के मासिक वेतन पर रखा ।
वहां पर वह अभिनेता अशोक कुमार से मिले । अशोक कुमार उनकी अभिनय क्षमता से प्रभावित हुए । उन्होंने युसूफ को अभिनय में कृत्तिमता लाने से मना किया और अभिनय करते समय स्वाभाविक रहने के लिए कहा । बाद में यही स्वाभाविक अभिनय उनकी अपनी स्टाइल बन गयी । बॉम्बे टॉकीज में ही वह निर्माता शशधर मुख़र्जी से भी मिले । युसूफ की उर्दू भाषा पर अच्छी पकड़ को देखते हुए अशोक कुमार और शशधर मुख़र्जी ने मिलकर उन्हें कहानी लेखन एवं पटकथा लेखन विभाग में मदद की ।
युसूफ खान कैसे हुए दिलीप कुमार कैसे हुए दिलीप कुमार
उनकी अभिनय के प्रति रूझान को देखते हुए 1944 में फिल्म ज्वार भाटा (film Jwar Bhata) में मुख्य भूमिका के लिए चुना, दिलीप कुमार के डेब्यू फिल्म में उनके अलावा मृदुला रानी , शमीम बानो और निर्देशक अमियो चक्रवर्ती थे । लेकिन देविका रानी को युसूफ खान नाम जंच नहीं रहा था । बॉम्बे टॉकीज के कहानी लेखक भगवती चरण वर्मा ने तीन नाम सुझाये । देविका रानी ने युसूफ को तीनों नाम बताये । युसूफ हालाँकि अपनी पहचान बदलने को राज़ी नहीं थे फिर भी उन्होंने दिलीप कुमार को चुना । इस तरह युसूफ खान से वह दिलीप कुमार बन गए और फिर दिलीप साहब । दिलीप कुमार की पहली फिल्म ज्वार भाटा किसी का ध्यान अपनी ओर न खींच सकी । मुंबई में तो यह फिर भी चली लेकिन मुंबई के बाहर फिल्म कुछ न कर सकी । उसके बाद दिलीप कुमार की कुछ फ़िल्में असफल रहीं ।
उनकी पहली बड़ी बॉक्स ऑफिस हिट थी जुगनू (1947 ) Jugnoo में। इसमें वह नूर जहाँ (Noor Jahan) के साथ नज़र आये । इसके बाद 1948 में शहीद (Shahid) और मेला (Mela) उनकी अगली हिट फ़िल्में थीं । शहीद में कामिनी कौशल और मेला में नरगिस (Nargis) तथा नूर जहां थे लेकिन जिस फिल्म ने उन्हें आसमान की बुंलदियों पर पहुँचाया वह था 1949 में महबूब खान का अंदाज़ (Andaz) । इसमें दिलीप कुमार के साथ साथ राज कपूर (Raj Kapoor) व नरगिस भी हैं । उसी वर्ष फिल्म शबनम (Shabnam) रिलीज़ हुई जो एक और बॉक्स ऑफिस हिट थी । शबनम में भी दिलीप कुमार और कामिनी कौशल की जोड़ी नज़र आई, इसके बाद तो बॉक्स ऑफिस हिट्स की झड़ी लग गई ।
सफलता का ताज पहना दिलीप कुमार ने 1950 के दशक में
1950 के दशक में दिलीप कुमार ने अनेक फिल्मों में मुख्य भूमिका निभाई और सभी बॉक्स ऑफिस हिट रहीं । इस दशक ने दिलीप कुमार को सफलता का सरताज बना दिया। 1950 में जोगन (Film Jogan) (दिलीप कुमार , नरगिस और निर्माता केदार नाथ शर्मा) , बाबुल (Film Babul) ( एस. यू. सनी द्वारा निर्देशित इस फिल्म में दिलीप कुमार , मुनव्वर सुल्ताना एवं नरगिस थीं । संगीत निर्देशन नौशाद (Naushad) का था । 1950 के दशक की सबसे अधिक कमाई वाली दूसरी फिल्म थी ), 1951 में हलचल (Film Hulchul) ( इसके निर्माता थे के . आसिफ , निर्देशक एस .के . ओझा संगीत निर्देशक मोहम्मद रफ़ी और सज्जाद हुसैन । अभिनय किया है दिलीप कुमार , नरगिस , याकूब , जीवन तथा बलराज साहनी ) , दीदार (Film Deedar) ( इस रोमांटिक म्यूजिकल फिल्म के निर्देशक नितिन बोस एवं अभिनय किया है दिलीप कुमार , अशोक कुमार , नरगिस , निम्मी ) , तराना ( इस रोमांटिक कॉमेडी फिल्म के निर्माता और लेखक हैं के . एस . दरयानी , निर्देशक राम दरयानी , अभिनय किया है दिलीप कुमार और मधुबाला ने । तराना में यह जोड़ी पहली बार परदे पर आई ) , 1952 में दाग ( इस रोमांटिक ड्रामा फिल्म के निर्माता , निर्देशक थे अमियो चक्रवर्ती , मुख्य भूमिका निभाई है दिलीप कुमार , ललिता पवार और निम्मी ने , फिल्म को संगीतबद्ध किया है शंकर जयकिशन ने) और संगदिल ( दिलीप कुमार , लीला चिटनीस द्वारा अभिनीत रोमांटिक ड्रामा फिल्म के निर्देशक थे आर .सी. तलवार ) ,1953 में शिकस्त ( इस ड्रामा फिल्म के निर्माता , निर्देशक रमेश सहगल , अभिनय किया है दिलीप कुमार , नलिनी जयवंत , दुर्गा खोटे, ओम प्रकाश और के . एन . सिंह । फिल्म में संगीत दिया है शंकर जयकिशन ने । कहानी एवं पटकथा लेखन वजाहत मिर्ज़ा का । यह फिल्म अस्पष्ट रूप से बंगाली फिल्म पल्ली समाज पर आधारित है ) , 1954 में अमर ( इस रोमांटिक म्यूजिकल फिल्म के निर्माता , निर्देशक हैं मेहबूब खान और अभिनय किया है दिलीप कुमार , मधुबाला ,निम्मी ने ), 1955 में उड़न खटोला (यह रोमांटिक ड्रामा फिल्म एस .यू .सनी द्वारा निर्देशित और दिलीप कुमार , निम्मी , जीवन , टुनटुन ने अभिनय किया है । इसके निर्माता , संगीत निर्देशक नौशाद हैं संगीत के बोल लिखे हैं शकील बदायूनी ने ), इंसानियत ( इस एक्शन फिल्म के निर्माता , निर्देशक हैं एस . एस . वासन। अभिनय किया है दिलीप कुमार , देव आनंद , बीना रॉय , जयंत , शोभना समर्थ । गाने लिखें हैं राजेंद्र कृष्ण ने । संगीत दिया है सी. रामचंद्र ने । यह 1950 की तेलगु फिल्म का रीमेक है ) और देवदास ( यह कथा शिल्पी शरत चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित बांग्ला उपन्यास देवदास पर आधारित है । इसके निर्माता हैं बिमल रॉय । मुख्य भूमिका में हैं दिलीप कुमार और वैजन्तीमाला । इसमें वैजन्तीमाला ने पहली बार वेश्या का रोल किया है ), 1957 में नया दौर ( रोमांटिक ड्रामा फिल्म जिसके निर्माता निर्देशक थे बी . आर. चोपड़ा । इसको लिखा है अख्तर मिर्ज़ा ने । मुख्य भूमिका में हैं दिलीप कुमार और वैजन्तीमाला, सहायक भूमिका में हैं अजित खान और जीवन ) ,1958 में यहूदी (इस एक्शन ड्रामा फिल्म के निर्देशक हैं बिमल रॉय । इसमें दिलीप कुमार , मीना कुमारी , सोहराब मोदी , नज़ीर हुसैन , निगार सुल्ताना इत्यादि हैं । यह पारसी उर्दू रंगमंच के उत्कृष्ठ नाटक आग़ा हशर कश्मीरी के यहूदी की लड़की पर आधारित है ), मधुमती (यह अपसामान्य रोमांस फिल्म के निर्माता निर्देशक हैं बिमल रॉय । लिखा है ऋत्विक घटक एवं राजिंदर सिंह बेदी ने । मुख्य भूमिका में हैं दिलीप कुमार और वैजन्तीमाला , सहायक भूमिका में प्राण और जॉनी वॉकर ), 1959 में पैग़ाम (इस कॉमेडी ड्रामा फिल्म के निर्माता निर्देशक हैं एस. एस .वासन । इस फिल्म में पहली बार दिलीप कुमार और राज कुमार ने एक साथ काम किया । इसमें अभिनय किया है दिलीप कुमार , वैजन्तीमाला , राज कुमार , सरोजा देवी , मोतीलाल एवं जॉनी वॉकर ) । यह कुछ ऐसी फ़िल्में हैं जिन्होनें दिलीप कुमार की स्क्रीन इमेज ट्रेजेडी किंग की बना दी और वह ट्रेजेडी किंग कहलाने लगे,
ट्रैजिक रोल करते करते एक समय वह तनाव में चले जा रहे थे , तब मनोवैज्ञानिक की सलाह पर उन्होंने कुछ हलकी फुलकी फ़िल्में भी कीं । इसी दौरान प्यासा का ऑफर मिला । गुरुदत्त चाहते थे कि प्यासा में विजय का किरदार दिलीप कुमार निभायें । कहानी सुनने के बाद दिलीप कुमार ने गुरुदत्त से कहा था विजय तो मुझे मार ही डालेगा ।
1952 में दिलीप कुमार ने पहली बार ट्रेजेडी किंग कि इमेज से हटकर हल्का फुल्का रोल किया । 1952 में बनी आन ( इस बॉलीवुड एडवेंचर फिल्म के निर्माता निर्देशक महबूब खान थे । यह भारत कि पहली टैक्नीकलर फिल्म थी और उस समय की सबसे बिग बजेट फिल्म । इसमें अभिनय किया – दिलीप कुमार , निम्मी , मुराद , प्रेमनाथ, नादिरा ने । यह नादिरा का डेब्यू फिल्म था । यह पूरे यूरोप में रिलीज़ हुई थी और प्रीमियर लंदन में ) । इसके बाद 1955 में दिलीप ने आज़ाद में एक चोर की भूमिका निभाई ( इस एक्शन कॉमेडी फिल्म के निर्माता निर्देशक थे एस. एम् . श्रीमूलु नायडू । जिस वर्ष यह रिलीज़ हुई उस साल की सबसे ज्यादा कमाई वाली फिल्म थी और उस दशक की बड़ी हिट भी । अभिनय — दिलीप कुमार , मीना कुमारी , ओम प्रकाश , प्राण , अचला सचदेव इत्यादि । इसके लिए दिलीप कुमार को तीसरी बार बेस्ट एक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला । सी. रामचंद्र का संगीत हिट था ।) 1960 में कोहिनूर में दिलीप राजकुमार की भूमिका में नज़र आये (यह एक्शन एडवेंचर फिल्म थी । इसके निर्माता थे डॉ वी .एन. सिन्हा और निर्देशक एस .यू . सनी । अभिनय – दिलीप कुमार , मीना कुमारी , लीला चिटनीस तथा कुमकुम । संगीत था नौशाद का ।)
कालजयी फिल्म मुग़ल – ऐ- आज़म
इस एपिक हिस्टोरिकल ड्रामा फिल्म के निर्देशक थे के . आसिफ और निर्माता शपूरजी पलोनजी । भारतीय फिल्म इतिहास में यह फिल्म सबसे अधिक कमाई करने वाली पिक्चर थी । 11 साल बाद 1971 में हाथी मेरे साथी ने यह रिकॉर्ड तोड़ा और उसके बाद 1975 में आयी फिल्म शोले ने । परन्तु यदि बढ़ती महंगाई के हिसाब से देखा जाये तो मुग़ल – ऐ – आज़म 2010 तक सबसे अधिक कमाई वाली फिल्म रही । इसके ज्यादातर हिस्सों की शूटिंग ब्लैक एंड वाइट में हुई थी , अंत के कुछ सीन कलर में शूट किये गए थे । रिलीज़ होने के 44 साल बाद यह पूरी तरह से कलर हुई और 2004 में पुनः रिलीज़ हुई । दूसरी रिलीज़ भी व्यावसायिक तौर पर बहुत सफल रही । यह पहली फिल्म थी जिसे डिजिटली कलर किया गया । इसमें अभिनय किया दिलीप कुमार , मधुबाला , पृथ्वीराज कपूर , दुर्गा खोटे , निगार सुल्ताना , अजीत, मुराद , जॉनी वॉकर , गोपी कृष्णा इत्यादि ने ।
निर्माता के रूप में दिलीप कुमार
दिलीप कुमार एक ही फिल्म के निर्माता थे गंगा जमुना । वह इस फिल्म के लेखक, निर्माता और अभिनेता भी थे । लीड रोल में थे दिलीप कुमार , वैजन्तीमाला और नासिर खान । फिल्म के निर्देशक थे नितिन बोस । वैजन्तीमाला किस सीन में कौन सी साड़ी पहनेंगी यह भी दिलीप कुमार ही तय करते थे । इस फिल्म को हिंदी में सेकेंड बेस्ट फीचर फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला । इसके आलावा इसने कई अंतराष्ट्रीय पुरस्कार भी जीते ।
विदेशी फिल्मों को ठुकराया
1962 में दिलीप कुमार को ब्रिटिश फिल्म डायरेक्टर डेविड लीन की लॉरेंस ऑफ़ अरबिया में शेरिफ अली का रोल ऑफर किया गया था परन्तु उन्होंने यह रोल करने से इंकार कर दिया । अंत में यह रोल मिस्र के अभिनेता ओमर शरीफ की झोली में गिरा । बाद में दिलीप कुमार ने अपने ऑटोबायोग्राफी में टिपण्णी की थी कि उनके मुकाबले में ओमर शरीफ ने शेरिफ अली का रोल बेहतर ढंग से निभाया ।
1964 से 1969 तक दिलीप कुमार का करियर
1964 में उनकी अगली फिल्म लीडर की बॉक्स ऑफिस पर कुल आय औसत से कम रही । इस फिल्म की कहानी भी उन्होंने लिखी और इसका श्रेय उनको मिला । 1966 में वहीदा रहमान के साथ अगली फिल्म दिल दिया दर्द लिया थी । 1967 में राम और श्याम में जन्म से बिछड़े जुड़वाँ भाइयों का किरदार निभाया । 1968 में उन्होंने मनोज कुमार और वहीदा रहमान के साथ फिल्म आदमी में काम किया परन्तु यह बॉक्स ऑफिस पर औसत रही । 1968 में उनकी और वैजन्तीमाला की जोड़ी आखिरी बार परदे पर दिखी । कुल मिलकर सात बार उन्होंने वैजन्तीमाला के साथ काम किया अर्थात इस जोड़ी ने बॉलीवुड को सात हिट फ़िल्में दी हैं ।
1970 के दशक में प्रारम्भ हुआ दिलीप कुमार के करियर में गिरावट का दौर
1970 के दशक में बॉलीवुड प्रेमियों का दिलीप कुमार की फिल्मों से मोह भंग होने लगा । 1970 में पहली बार अपनी बेगम सायरा बानो के साथ दिलीप कुमार फिल्म गोपी में नज़र आये और यह बॉक्स ऑफिस पर सफल रही । 1970 में ही उन्होंने अपने जीवन की एकमात्र बांग्ला फिल्म सगीना महतो में अभिनय किया । इसमें भी वह सायरा बानो के साथ नज़र आये । सगीना महतो के निर्माता थे जे . के . कपूर और निर्देशक तपन सिन्हा । यह 1942 – 43 के मजदूर आंदोलन पर आधारित है । 1972 में उन्होंने दास्तान में जुड़वाँ भाइयों का रोल निभाया , यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर असफल रही
। 1974 में सगीना महतो का हिंदी में रीमेक हुआ । इसका नाम सगीना रखा गया एवं सगीना महतो के स्टार कास्ट के साथ ही इसे बनाया गया । 1976 में दिलीप कुमार ने एक ही फिल्म में तीन रोल निभाए । बैराग में वह पिता और जुडवा बेटों की भूमिका में दिखे लेकिन फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कमाल नहीं दिखा सकी । उन्होंने व्यक्तिगत रूप से तमिल फिल्म एंगा विट्टू पिल्लई में एम् .जी. रामचंद्रन के अभिनय को अपने राम और श्याम के रोल से कहीं बेहतर बताया । उनकी नज़र में बैराग में उनका अभिनय राम और श्याम से अच्छा था । बैराग और गोपी में फिल्म समालोचकों ने उनके अभिनय की प्रशंसा ही की फिर भी 1970 से 1980 के दौर में उन्होंने कई फिल्मों के लीड रोल खो दिए और वह राजेश खन्ना तथा संजीव कुमार की झोली में गिरे । उन्होंने फिल्मों से 1976 – 1981 तक का ब्रेक लिया । पांच साल के अंतराल के बाद वह पुनः रुपहले परदे पर दिखे , परन्तु एक नए रूप में ।
1980 के दशक में दिलीप कुमार की हुई फिल्मों में वापसी
वह इस बार परिपक्व बुजुर्ग के रूप में नज़र आये । उनकी कम बैक फिल्म क्रांति उस साल की सबसे बड़ी हिट थी । क्रांति के निर्माता निर्देशक मनोज कुमार थे । फिल्म की कहानी और पटकथा लेखन का कार्य किया है सलीम – जावेद ने । इसमें दिलीप कुमार के आलावा अभिनय किया है मनोज कुमार , शशि कपूर , हेमा मालिनी , शत्रुघ्न सिन्हा , परवीन बॉबी , सारिका , प्रेम चोपड़ा , मदन पूरी , पेंटल एवं प्रदीप कुमार ने । इस फिल्म ने भारत के कई जगहों पर गोल्डन जुबली मनाई । एक सिनेमा हॉल में यह 96 दिनों तक हाउसफुल रही । 1982 में विधाता बनी । इसमें दिलीप कुमार ने पहली बार निर्देशक सुभाष घई के साथ मिलकर काम किया । विधाता में उन्होंने संजय दत्त , संजीव कुमार और शम्मी कपूर के साथ काम किया । यह उस साल की सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म थी । उसी वर्ष उन्होंने शक्ति में अमिताभ बच्चन के साथ अभिनय किया । यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर औसत कमाई ही कर सकी। शक्ति रमेश सिप्पी द्वारा निर्देशित क्राइम ड्रामा फिल्म है । इसके निर्माता थे मुशीर – रियाज़ । इसमें दिलीप कुमार , अमिताभ बच्चन के अलावा राखी गुलज़ार , स्मिता पाटिल , कुलभूषण खरबंडा एवं अमरीश पूरी थे । यह पहली और आखरी फिल्म थी जब दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन को दर्शकों ने एक साथ परदे पर देखा । उन्हें इस फिल्म के लिए समीक्षकों की प्रशंसा भी मिली । इसी फिल्म में दिलीप कुमार ने बेस्ट एक्टर का आठवां और अंतिम फ़िल्मफेयर अवार्ड जीता । 1984 में वह फिल्म मशाल में दिखे । इसके निर्माता निर्देशक यश चोपड़ा थे । इस सोशल क्राइम ड्रामा में दिलीप कुमार , वहीदा रहमान , अनिल कपूर और रति अग्निहोत्री थे । अनिल कपूर ने जो रोल निभाया वह अनिल कपूर की झोली में गिरने से पहले अमिताभ बच्चन फिर कमल हसन को ऑफर किया गया था । इस फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर मुँह की खानी पड़ी। परन्तु हर बार की तरह उन्हें समीक्षकों की प्रशंसा ही मिली । एक बार फिर वह 1984 में एक्शन फिल्म दुनिया में परदे पर दिखे । इसमें उनके अलावा अशोक कुमार ,ऋषि कपूर , अमृता सिंह , प्रेम चोपड़ा , अमरीश पूरी , प्राण , प्रदीप कुमार , सायरा बानो इत्यादि थे । इसके निर्देशक रमेश तलवार और निर्माता यश जोहर थे । दिलीप कुमार की अगली फिल्म थी 1986 में बनी धर्म अधिकारी ।
1986 में ही उन्होंने सुभाष घई के साथ दोबारा काम किया ।इस बार फिल्म कर्मा में । कर्मा में कलाकारों की पूरी फ़ौज थी । इसमें दिलीप कुमार , नूतन , अनिल कपूर , जैकी श्रॉफ , नसीरुद्दीन शाह , श्रीदेवी , पूनम ढिल्लों , अनुपम खेर , दारा सिंह , शक्ति कपूर , टॉम आल्टर ,बिंदु , शरत सक्सेना , बीना , शशि पूरी , मुकरी , बाल कलाकार जुगल हंसराज इत्यादि थे । स्पेशल अपीयरेंस था सुभाष घई का । इस फिल्म में वरिष्ठ अभिनेत्री नूतन के साथ पहली बार दिलीप कुमार की जोड़ी बनी । इसके निर्माता निर्देशक थे सुभाष घई और संगीत था लक्ष्मीकांत – प्यारेलाल का । नूतन और दिलीप कुमार की जोड़ी एक बार और बनी थी । परन्तु वह फिल्म न पूरी हुई और न ही रिलीज़ । इस फिल्म का नाम था शिकवा जो 1950 में बनने वाली थी । नूतन के साथ उनकी जोड़ी पुनः 1989 की एक्शन ड्रामा फिल्म कानून अपना अपना में बनी । इसमें मुख्य भूमिका में थे संजय दत्त एवं माधुरी दीक्षित । यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित हुई । 1989 में इसने करीब चार करोड़ की कमाई की । यह तेलुगु फिल्म कलेक्टर गरी अब्बाई का रीमेक है ।
दिलीप कुमार के कॅरिअर का अंतिम दौर
1990 में वह फिल्म इज़्ज़तदार में रुपहले परदे पर दिखे । इस फिल्म में उनके साथ गोविंदा , माधुरी दीक्षित , अनुपम खेर, शफी इनामदार थे । अगले वर्ष 1991 में उन्होंने निर्देशक सुभाष घई के साथ तीसरी और अंतिम फिल्म सौदागर की । इसके निर्देशक थे सुभाष घई एवं निर्माता अशोक घई । इस फिल्म में बॉलीवुड के दो दिग्गज कलाकार दिलीप कुमार और राज कुमार के अलावा अमरीश पुरी , अनुपम खेर , मुकेश खंन्ना, दलीप ताहिल , गुलशन ग्रोवर , दीना पाठक एवं जैकी श्रॉफ भी थे । विवेक मुशरान और मनीषा कोइराला की यह डेब्यू फिल्म थी । इसमें संगीत दिया है लक्ष्मीकांत – प्यारेलाल ने । फिल्म के दो गाने इलू इलू और इमली का बूटा बेहद लोकप्रिय हुए थे । यह फिल्म हिट हुई तथा पूरे भारत में सिल्वर जुबली सक्सेस मनाई । इससे पहले दिलीप कुमार और राज कुमार ने 1959 में पैग़ाम में काम किया था । सौदागर दिलीप के अंतिम फिल्म से पहले की फिल्म थी और आखिरी बॉक्स ऑफिस सफलता । यह निर्देशक सुभाष घई के साथ उनकी तीसरी और आखिरी फिल्म थी । 1998 में उनकी आखिरी फिल्म क़िला बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप रही । इस फिल्म के निर्देशक थे उमेश मेहरा और निर्माता परवेश मेहरा । दिलीप कुमार ने इसमें रेखा , मुकुल देव , ममता कुलकर्णी , स्मिता जयकर एवं गुलशन ग्रोवर के साथ काम किया ।
ट्रेजेडी किंग की कुछ और फ़िल्मी ख़बरें
2001 में वह अजय देवगन एवं प्रियंका चोपड़ा के साथ अभिनय करने वाले थे परन्तु उनकी गिरती सेहत की वजह से ऐसा न हो सका । अमिताभ बच्चन और शाहरुख़ खान के साथ निर्देशक सुभाष घई की फिल्म मदर लैंड में वह काम करने वाले थे परन्तु दिलीप कुमार के फिल्म छोड़ने के साथ ही वह खटाई में पड़ गया । दिलीप कुमार की दो बेहतीन फ़िल्में मुग़ल -ऐ – आज़म एवं नया दौर पूरी तरह रंगीन फिल्म के तौर पर पुनः रिलीज़ किया गया । मुग़ल – ऐ – आज़म 2004 में और नया दौर 2008 में ।
दिलीप कुमार का फिल्मी सफर काफी दिलचस्प था। उन्हें बेस्ट एक्टर का फिल्म फेयर पुरस्कार कुल आठ बार मिला। फिल्मफेयर का लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड भी उन्हें मिला। 1950 केे दशक में वह प्रति फिल्म एक लाख रूपए लेने वाले पहले अभिनेता थे। वह बाॅलीवुड के पहले खान थे। सबसे अधिक बेस्ट एक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड जीतने वाले पहले अभिनेता दिलीप कुमार हैं। बाद में शाहरूख खान ने इसकी बराबरी कर ली। उनका करियर करीब पांच दशक तक चला जिसमें उन्होंने 65 से अधिक फिल्मों में तरह तरह के किरदार निभाए। अपने अभिनय में संपूर्णता लाने के लिए उन्होंने सितार बजाना सीखा था।
उनका पारिवारिक जीवन- उनके जीवन में प्रेम ने पहली बार अभिनेत्री कामिनी कौशल के रूप में दस्तक दी। लेकिन उनका विवाह 1966 में अभिनेत्री सायरा बानो से हुआ। सायरा बानो उनसे 22 साल छोटी थीं। यह उनका पहला विवाह था। वह सायरा बानो के साथ बांद्रा में रहते थे। उनके कोई संतान नहीं थी। अपनी ऑटोबायोग्राफी में दिलीप कुमार ने लिखा है कि सायरा बानोे 1972 में गर्भवती हुई थी। गर्भावस्था के दौरान कई समस्याएं पैैदा हुई जिसके फलस्वरूप गर्भपात हो गया। भगवान की मर्जी समझकर उन्होंने बच्चे के लिए पुनः कोशिश नहीं कीे।
दिलीप कुमार हिन्दी के अलावा धड़ल्लेे से उर्दू, पश्तो, पंजाबी, मराठी, अंग्रेजी, बंगाली, गुजराती, हिंदकोे, पारसी, अवधी और भोजपुरी भाषा बोेल सकतेे थे। वह संगीत प्रेमी थे। क्रिकेट उनका प्रिय खेेल था। वह अक्सर क्र्रिकेेट खेला करते थे। एक बार उन्होंने राज कपूर के खिलाफ क्रिकेट टीम की अगुवाई की थी। कपूर परिवार से उनके परिवार की पेशावर से दोस्ती थी जो मुबई आकर और बढ़ गई। उनके छोटे भाई नासिर खान भी फिल्म अभिनेता थे जिनकी मृत्यु 2020 में कोरोना से हुई।
दिलीप कुमार और उनकी हिरोइनें – दिलीप कुमार ने अपने करियर में कुल 22 हिरोइनों के साथ काम किया है। उनमें से कुछ के साथ उनकी जोड़ी बहुत अच्छी जमी। इनमें हैं मधुबाला, वैजंतीमाला, कामिनी कौशल, निम्मी, वहीदा रहमान, मीना कुमारी। क्या आप जानते हैं कि दिलीप कुमार का पहला प्यार कौन था जी हां वह कामिनी कौशल थीं।
दिलीप कुमार के साथ मधुबाला की जोड़ी मुगल – ऐ – आजम में ऐसी हिट हुई कि आज भी सलीम अनारकली का नाम आते ही यही चेहरे सामने आ जाता है।
दिलीप कुमार और वैजंतीमाला की जोड़ी फिल्म देवदास, नया दौर और मधुमति में दिखी। इनकी केमेस्ट्री गजब की थी। इसको समझने के लिए नया दौर का गाना ‘मांग के साथ तुम्हारा मैंने मांग लिया संसार‘ ही काफी है।
दिलीप कुमार और कामिनी कौशल ने शहीद, नदिया के पार, शबनम और आरजू से उस जमाने में हलचल मचा दी थी।
बहुत लोकप्रिय जोड़ी बनी दिलीप कुमार की निम्मी के साथ दीदार, आन, दाग और अमर में। वहीदा रहमान के साथ राम और श्याम, आदमी, मशाल और दिल दिया दर्द लिया में। मीना कुमारी के साथ फुटपाथ और कोहीनूर में।जोड़ी तो और भी बनी पर इतनी सफल न रही।
दिलीप कुमार की लव लाइफ – दिलीप कुमार ने सायरा बानो से विवाह किया और ताउम्र निभाया। परंतु सायरा बानों से पहले उनके जीवन में प्रेम की दस्तक पड़ चुकी थी। वह सायरा नहीं कोई और ही थीं। विवाह के समय तो वह सायरा को एक छोटी लड़की समझते थे। सायरा से प्रेम तो उन्हें विवाह के बाद हुआ। आइए हम विवाह पूर्व दिलीप के प्रेम संबंधों पर नजर डालते हैं।
दिलीप कुमार का पहला प्यार थीं कामिनी कौशल। उन दोनों ने कई फिल्में एक साथ कीं। शहीद के सेट पर उनके बीच प्यार का अंकुर फूटा परंतु कामिनी कौशल की शादी पहले ही अपने स्वर्गीय बहन के पति से हो चुकी थी। उनका ब्रेक – अप हो गया और दिलीप साब हिंदी सिनेमा के ट्रेजेडी किंग बन गए। उन्होंने अपनी ऑटोबायोग्राफी में लिखी थी कि वह वास्तव में कामिनी कौशल की ओर आकर्षित हुए थे। उनके अनुसार कामिनी कौशल ही उनका पहला प्यार थीं और बड़े बुरे तरीके से उनका दिल टूटा था। दिलीप कुमार मधुबाला के साथ सात साल तक रिलेशनशिप में रहे। फिल्म तराना की शूटिंग के दौरान दोनों में प्यार हुआ। परंतु एक कोर्ट केस की वजह से प्यार शादी तक न जा सकी। यह प्यार भी सफल नहीं रहा। इसके बाद दिलीप ने मुगल – ऐ – आजम के अलावा कोई फिल्म मधुबाला के साथ नहीं की । दोनों में बातचीत भी बंद हो गई थी। सुनने में आया कि मुगल – ऐ – आजम की शूटिेग के दौरान दोनों आफस्क्रीन बात नहीं करते थे। इस बात से यह समझना चाहिए कि दोनों के दिल में अभिनय का कौन सा स्थान था। इस तरह की लड़ाई के समय इतना रोमांटिक अभिनय, वह भी सात साल रिलेशनशिप में रहने के बाद।
दिलीप कुमार और वैजंतीमाला के प्यार की अफवाह फैली थी। परंतु वैजंतीमाला डा. चमनलाल बाली से शादी करके चेन्नई चली गई।
दिलीप कुमार की दूसरी शादी – दिलीप कुमार ने असमा रहमान नामक एक महिला से 1981 में दूसरी शादी की थी। यह शादी उन्होंने क्यों की थी यह किसी को नहीं मालूम लेकिन एक बार टीवी पर आया था कि दिलीप कुमार ने दूसरी शादी बच्चे के लिए की थी। उन्हें बच्चों से बहुत प्यार था। यह बात सच है या झूट उसका फैसला तो वही कर सकते थे। उनकी दूसरी शादी केवल दो साल चली।
सूत्रों के अनुसार कुछ स्थानीय अखबारों में उनकी मैरिज सर्टिफिकेट छप गई थी। उसके कुछ समय बाद दिलीप कुमार ने असमा से रिश्ते खत्म कर दिए।
अपनी बायोग्राफी में उन्होंने लिखा है कि मेरी जिंदगी के एक अध्याय को मैं और सायरा भूल जाना चाहते हैं। उन्होंने इसे अपनी बहुत बड़ी गलती माना।
उनके अनुसार आंध्र प्रदेश के हैदराबाद में एक क्रिकेट मैच में वह असमां से मिले थे। वह अपने तीन बच्चे और पति के साथ वहां रहती थी। उन्हें असमां से उनकी बहनों ने मिलवाया था। असमां बहनों की दोस्त थी।
सायरा बानो ने भी कहा कि मैं दो बीवियों में से एक बनकर रहना नहीं चाहती थी। पहले तो शक और अफवाह थी परंतु दिलीप कुमार ने सायरा के सामने कुरान पर हाथ रखकर कहा था कि यह झूठ है।
खैर जो भी हुआ 1983 में इस शादी का अंत हो गया। असमां ने दिलीप से शादी करने से पहले अपने पति से तलाक ले लिया था। यह शादी खत्म हो जाने के बाद उसने फिर से अपने पूर्व पति से शादी कर ली।
वह सुनहरा दौर – भारतीय हिंदी सिनेमा की सुनहरी तिकड़ी के नाम से जाने जाते थे दिलीप कुमार, राज कपूर और देव आनंद। सभी अपनी अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते थे। राज कपूर और देव आनंद से पहले 1950 और 1960 के दशक में दिलीप कुमार स्टार बन गए थे। फिल्म समीक्षकों के अनुसार दिलीप कुमार अपने साथ अभिनय करने वालों को धुंधला करके और बाद वालों को बौना करके हिंदी फिल्म के इतिहास में ऊंचे पहाड़ के समान बन गए।
उनके विषय में कुछ और बातें – उन्हें 1980 में मुंबई का शेरिफ नियुक्त किया गया था। उन्हें 1991 में भारत सरकार ने पदम् भूषण, 1994 में दादा साहेब फाल्के और 2015 में पदम् विभूषण से नवाजा।
1998 में पाकिस्तान सरकार ने उन्हें पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान – ए – इम्तियाज से नवाजा। इसको लेकर शिव सेना ने दिलीप कुमार की देश भक्ति पर सवाल किए थे। 1999 में प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी से सलाह मशवरा करने के बाद उन्होंने पुरस्कार रख लिया था।
2014 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने पेशावर में उनके पुश्तैनी हवेली को पाकिस्तान की राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया।