डाइबिटीज से बचने को लिए हर हाल में चलना जरूरी है
डॉ अजय ओझा।
पटना, 9 जून। हर साल डाइबिटीज से चालीस लाख लोग की मृत्यु होती है पूरे विश्व में । अकेले अगर भारत की बात करें तो एक करोड़ से ज्यादा लोग रोज डाइबिटीज की गोलियां खाते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि दो हजार बीस में अकेले भारत में डाइबिटीज से मरने वाले की संख्या सात लाख से ज्यादा थी। इसी कारण आज भारत डाइबिटीज, हाईपरटेंशन और ब्लड प्रेशर का हब बन चुका है। अगर ऐसे ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हर घर में तीन से चार लोग डाइबिटीज से पीड़ित मिल जायेंगे। ऐसे मे अगर आप प्रतिदिन वाक् करते हैं तो इस तरह के बिमारियों से बच सकते हैं। वाक् बहुत ही बड़ी दवा है आपको इस तरह के बिमारियों से बचाने की। अतः वाक् को हमेशा अपने जीवन में अपनाएं। उक्त बातें आस्था फाऊंडेशन द्वारा आयोजित मेगा बैद्यनाथ मधुहारी डाइबिटीज वाक् में आये हुए सैकड़ों युवाओं, महिलाओं और डाइबिटीज से पीड़ित लोगों को संबोधित करते हुए मशहूर फिजिशियन डॉ दिवाकर तेजस्वी ने कही। उन्होंने आस्था फाऊंडेशन द्वारा आयोजित वाक् की प्रशंसा करते हुए कहा कि आज पूरा देश इस आयोजन से प्रभावित होगा और एक मैसेज समाज में वाक् के प्रति जाएगी।
कार्यक्रम का आयोजन गांधी मैदान में किया गया था जिसमें शामिल लोगों ने गांधी मैदान से दो किलोमीटर तक पैदल वाक् किया। मशहूर डाइटिशियन चेतन कुमार ने उपस्थित लोगों से खानें पीने के बारे में जानकारी दी । उन्होंने लोगों से कहा कि वाक् करने के बाद आपका डाइट क्या होना चाहिए जिससे कि आप हमेशा स्वस्थ रहें। मशहूर कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ अमृता राकेश ने कहा कि डाइबिटीज का कैंसर से भी गहरा रिस्ता है। अतः अगर आप वाक् करते रहेंगे तो डाइबिटीज से बचेंगे और कैंसर होने की संभावनाएं कम होगी। संस्था के चेयरमैन निक्की सिंह ने कहा कि आस्था फाउंडेशन हर साल इस तरह का आयोजन कर एक मैसेज लोगों में वाक् के प्रति देती है। कार्यक्रम में कई डाक्टरों के साथ डाइटिशियन शालिनी राज , रिया, संजीव कर्ण, निकुंज जी , चन्द्रशेखर के अलावा पिरामल फाउंडेशन के वरिष्ठ अधिकारी प्रदीप जी और मनीष कुमार के साथ सैकड़ों लोग मौजूद थे। कार्यक्रम में बैद्यनाथ मधुमेहारी, वास्तू विहार, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम सहयोगी की भूमिका में थीं । सबसे बड़ा सहयोग गुरूजी का मिला जिन्होंने पूरे कार्यक्रम की तैयारी दो महीने से जी जान से लगाकर की थी । धन्यवाद ज्ञापन राजेन्द्र भाईसाहब ने किया।