यह वक्त भी गुजर जाएगा

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देवदत्त दुबे

इस समय सोशल मीडिया पर एक बात तेजी से वायरल हो रही है जिसमें एक बार अर्जुन ने कृष्ण से कहा इस दीवार पर कुछ ऐसा लिखो की खुशी में पढ़ो तो दुख हो और दुख में पढ़ो तो खुशी हो। तब कृष्ण ने लिखा “यह वक्त भी गुजर जाएगा” और हम सब लोगों को भी धैर्य बनाए रखना है क्योंकि यह वक्त भी गुजर जाएगा।

दरअसल सुख के दिन तेजी से व्यतीत होते हैं पता ही नहीं चलता और कष्ट के दिन थोड़े इंतजार करने वाले होते वर्तमान का इंतजार आपको लंबा नहीं लगेगा। जब आप इसकी तुलना मैं मिलने वाले जीवनदान से करेंगे क्योंकि जो घर पर वक्त गुजार रहा है वह अपना परिवार का समाज का और देश का जीवन बचाने में बड़ा योगदान दे रहा है क्योंकि जैसा कि कहा जाता है, एक भूल काफी है जिंदगी भर रुलाने के लिए यदि आपने ऐसी कोई भूल की जिसमें आप बेवजह घर से निकले और यदि कहीं संक्रमित हो गए तो फिर यह छोटी सी भूल आपको और आपके परिवार को बहुत भारी पड़ने वाली है। इस विश्वव्यापी संकट को देखते हुए भी कुछ लोग अभी भी लापरवाही कर रहे हैं वे अभी भी सामान्य दिनों की तरह वातावरण बनाए हुए इस महामारी का सबसे कमजोर पक्ष भी यही है कि करता कोई है और भरता कोई है। सोचो जिनके परिजन संक्रमित होकर अस्पताल में भर्ती हैं उनके परिवार वाले उन्हें देखने भी नहीं आ सकते यहां तक कि मर जाने पर कई जगह परिवार वाले अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो पाए। जैसा कि इंदौर के डॉक्टर पंजवानी के तीनों बेटे ऑस्ट्रेलिया में थे और उन्होंने वीडियो कॉलिंग के जरिए पिता का पार्थिव शरीर देखा ऐसी हजारों घटनाएं दुनिया में हो चुकी है।

जहां अस्पताल से सीधे श्मशान घाट लाशें भिजवाई गई सोचो इतने भयावह वातावरण में केवल घर के अंदर रहना ही जब सुरक्षित रख सकता है तो फिर बेसब्र क्यों होना। लॉक डाउन का समय बढ़ सकता है क्योंकि पूरे देश में कोरोना संक्रमित मरीज बढ़ रहे यदि हमने लॉक डाउन का सत प्रतिशत पालन अब तक किया होता तो आगे समय बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ती।अब भी समय है कि आज से ही प्रण करें की कुछ दिन की बात है, असुविधाओं मैं भी घर के अंदर ही रहेंगे पता नहीं क्यों इतने भयावह संकट के बाद भी देश के विभिन्न हिस्सों से जब ऐसी खबरें आती हैं, तो फिर सोचने पर विवश होना पड़ता है क्या लोग अभी सुधरने को तैयार नहीं है? जैसे कि मेरठ से खबर आई जहां झुग्गियों में कई खाने के पैकेट रखे हुए थे जबकि कुछ लोगों को नहीं मिले थे, यदि यह पैकेट एक घर में ना मिलकर सभी जगह बट जाते तो शायद लगता लोग महामारी से कुछ सबक ले रहे है ऐसी और भी खबरें आ रही हैं जहां आवश्यक वस्तुओं की कीमतें चौगुना तक बढ़ा दी है।

कुल मिलाकर यह जो प्राणों पर संकट आया है विश्वव्यापी है उससे निपटने के लिए हमें धैर्य रखना है, संयम रखना है और घर पर रहना है क्योंकि इतना तय है यह वक्त भी गुजर जाएगा। जिस चीन के वहान से इस महामारी की शुरुआत हुई वहां हालात अब सामान्य हो रहे यहां तो इतने हालात बिगड़े भी नहीं हैं इसलिए बहुत जल्दी स्थिति सामान्य होगी।

वैसे भी जीवन में समस्याओं का कोई अंत नहीं है कुछ लोगों के जीवन में तो पास की तरह समस्याएं आती जाती है। लेकिन 24 घंटे में 15 मिनट का योग हमें एक साक्षी भाव दे जाता है। बड़ी से बड़ी समस्याएं इस साक्षी भाव से आसानी से सुलझ जाएंगी जीवन में जब कोई भी विपरीत परिस्थिति, संघर्ष, चुनौती, परेशानी, दिक्कत और समस्या आती है तो हम उसका हिस्सा नहीं वही बन जाते हैं। समस्या और हम एक हो जाते हैं। मिसाल के तौर पर हम और क्रोध अलग-अलग हैं, लेकिन जब गुस्सा आता है तब हम ही गुस्सा बन जाते हैं। वही नुकसानदेह होता है साक्षी भाव को आप यूं भी समझ सकते हैं। आप किसी नाटक में काम कर रहे हैं तब अभिनय करने वाला कलाकार भी आप हैं और दर्शक भी स्वयं आप है। ऐसा करें कि गायक भी आप हो श्रोता भी खुद बने इस प्रयोग से हम खुद को खुद से ही देख सकेंगे जितना हम साक्षी भाव विकसित करेंगे उतना ही हम मन की शिफ्टिंग करने में दक्ष होंगे। अभी मन हमें लगाता हटाता है साक्षी भाव आने पर हम उसके गेयर बदल सकेंगे उसकी गति के क्लच गेयर और ब्रेक तीनों हमारे पास रहेंगे फिर कैसी भी घटना जीवन में हो शांति के साथ समाधान निकाल पाएंगे।

हर अंधेरी रात के बाद हर दिन जैसी सुबह आती है ऐसे यह दिन भी गुजर जाएंगे अच्छे दिन आएंगे धैर्य बनाए रखें घर पर ही रहे।


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