अनुग्रह नारायण-जिसके आगे जाति और दल के बंधन टूट जाते हैं
सौरभ सिंह सोमवंशी।
प्रयागराज शहर उत्तरी के चार बार के विधायक को जननेता कहा जाता है।
कांग्रेस के उत्तराखंड प्रभारी और कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य रह चुके हैं अनुग्रह नारायण सिंह।
प्रयागराज।प्रयागराज की शहर उत्तरी से कांग्रेस ने चार बार के विधायक रह चुके अनुग्रह नारायण सिंह को अपनी पहली सूची में स्थान दिया है अनुग्रह नारायण सिंह प्रयागराज की शहर उत्तरी से चुनाव लड़ेंगे, अनुग्रह नारायण सिंह वर्तमान में कांग्रेस के सदस्यता अभियान समिति के प्रदेश अध्यक्ष हैं इसके पहले वह उत्तराखंड के प्रभारी और कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य रह चुके हैं।
शहर उत्तरी एक ऐसी विधानसभा सीट है जिसके बारे में कहा जाता है कि ये विधानसभा बुद्धिजीवियों का गढ है यहां के गैरसाक्षर वोटर भी लोकतांत्रिक साक्षरता के नजरिए से काफी सजग हैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय, एशिया का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय, उत्तर प्रदेश का पुलिस हेड क्वार्टर, एजी ऑफिस, शिक्षा निदेशालय, हिंदुस्तानी एकेडमी और हजारों वर्ष पुराना महर्षि भारद्वाज के गुरुकुल की याद दिलाने वाला भारद्वाज आश्रम भी इसी विधानसभा में है। शहर उत्तरी बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों, न्यायविदों, राजनीतिक हस्तियों के साथ-साथ
मजदूरों कर्मचारियों के एक ऐसे समन्वय का केंद्र है जिसकी मिशाल मुश्किल से ही तलाशी जा सकती है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की रणनीति यहीं पर पंडित नेहरू व इंदिरा गांधी के घर स्वराज भवन में बैठ करके बनाई जाती थीं।
कौन हैं अनुग्रह नारायण सिंह?
आपातकाल की दौरान पुलिस अनुग्रह नारायण सिंह फरार हो गए थे, पुलिस उनके घर से उनका सारा सामान उठा ले गई थी।इलाहाबाद विश्वविद्यालय में जब छात्रसंघ का चुनाव होता है तो उतना वोट किसी प्रत्याशी को नहीं प्राप्त होता है जितने के अंतर से अनुग्रह नारायण सिंह ने चुनाव जीता था।
भारतीय राजनीति में ईमानदारी व सुचिता की बात की जाए तो प्रदेश के एक ऐसे राजनीतिक विहीन परिवार से ताल्लुकात रखने वाले पूरब के ऑक्सफोर्ड इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ की रहनुमाई करने वाले, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के बैनर तले गैर बराबरी के खिलाफ लडने वाले गरीबों, यतीमों और दबे-कुचले की आवाज, किसी समय दलित मजदूर किसान पार्टी (दमकिपा),जनता दल व समाजवादी वामपंथी विचारधारा से1979-80 की छात्र राजनीतिक पौधशाला में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष होकर उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी पंचायत में कई बार विधानसभा में अपनी आवाज मजबूती के साथ उठाने वाले अनुग्रह नारायण सिंह जिनके बारे में जनमानस में प्रचलित है कि “सोशल वर्कर बेस्ट करेक्टर” “एक ही नेता ए० एन०सिंह”। अनुग्रह नारायण सिंह ने 1967 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्नातक में प्रवेश लिया इसके बाद 1972 में उन्होंने वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली इसके बाद वे वकालत के साथ-साथ जुडीशियशल परीक्षाओं की तैयारी करते रहे इस बीच उनके पास लोग अपनी समस्याएं लेकर आते रहते थे, 1975 में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में जुड़ गए जब इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी तब पुलिस ने अनुग्रह नारायण सिंह को खोजना शुरू किया और वे घर से फरार हो गए इस दौरान पुलिस अनुग्रह नारायण सिंह के घर से उनका सारा सामान तक उठा ले गई थी।
आपातकाल के दौरान बंद छात्र संघ का चुनाव उसकी समाप्ति के बाद 1979 में पहली बार इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हुआ तब अनुग्रह नारायण सिंह 5232 वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे आज इलाहाबाद विश्वविद्यालय में जब चुनाव होता है तो उतना वोट किसी प्रत्याशी को नहीं प्राप्त होता जितने वोटों के अंतर से अनुग्रह नारायण सिंह ने उस दौर में चुनाव जीता था उस दौर के लोग बताते हैं कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय से लेकर इविंग क्रिश्चियन कॉलेज तक विजय रैली निकाली गई थी अनुग्रह नारायण सिंह छात्र-छात्राओं के बीच इतने लोकप्रिय थे कि लोग अपनी हर छोटी-बड़ी समस्याओं को लेकर अनुग्रह नारायण सिंह के पास ही आते थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उस दौर में छेड़खानी पूरी तरह से बंद हो गई थी और विश्वविद्यालय के कर्मचारी भी छात्र संघ का समर्थन किया करते थे उस समय एग्जाम के वाक आउट की समस्या का समाधान भी अनुग्रह नारायण सिंह ने कर दिया था।
जब अनुग्रह ने किया इलाहाबाद विश्वविद्यालय में संयुक्त परिषद का गठन
1979 में जब अनुग्रह नारायण सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष बने तब उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र संघ ,अध्यापक संघ, विश्वविद्यालय के प्रशासनिक अधिकारी व तृतीय और चतुर्थ कर्मचारियों को मिलाकर एक परिषद का गठन किया जिसे संयुक्त परिषद का नाम दिया गया , यह एक ऐसी परिषद थी जिसमें छात्र अध्यापक कर्मचारी और प्रशासनिक अधिकारियों का प्रतिनिधित्व था परिणाम यह था कि किसी भी तरह की कोई समस्या कभी होती ही नहीं थी क्योंकि किसी भी तरह का निर्णय संयुक्त परिषद लेती थी जिसमें सभी का प्रतिनिधित्व था यह अनुग्रह नारायण सिंह की ही सोच के चलते फलीभूत हुआ था, उस दौर में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सभी गेटों पर स्थाई बैरिकेडिंग की गई थी ताकि कोई भी असामाजिक तत्व विश्वविद्यालय में प्रवेश ना कर सके आज भी इलाहाबाद विश्वविद्यालय में गेट पर ही जो साइकिल स्टैंड है वह अनुग्रह नारायण सिंह के ही दौर से शुरू हुआ और आज तक चल रहा है।
1980 में अनुग्रह नारायण सिंह मजदूर राजनीति में आ गए इस दौरान प्रयागराज के नैनी में कई कंपनियां लग चुकी थी। ट्रेड यूनियन की राजनीति शुरू कर चुके अनुग्रह नारायण सिंह ने सबसे पहले जीप फ्लैशलाइट की कंपनी के लगभग 25 हजार मजदूरों की लड़ाई लड़ी और उनको न्याय दिलाया।
इसके बाद अनुग्रह नारायण सिंह ने त्रिवेणी शीट ग्लास वर्कर्स यूनियन और प्रयाग मेटल इंजीनियरिंग वर्कर्स एसोसिएशन की लड़ाई लड़ी, यह कंपनियां अपने मजदूरों का शोषण करती थी ऐसा आरोप मजदूरों ने लगाया था हालांकि आंदोलन की कमान अनुग्रह नारायण सिंह ने जब अपने हाथ में संभाल ली तब मजदूरों को काफी राहत मिली,
30अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की शहादत के बाद नवंबर में पूरे देश में लोकसभा का चुनाव हुआ जिसमें इलाहाबाद सीट से कांग्रेस ने राजीव गांधी के परम मित्र अमिताभ बच्चन को मैदान उतारा तब उनका मुकाबला जनता दल के कद्दावर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा से था परिणाम यह हुआ कि अमिताभ बच्चन ने बहुगुणा को करारी शिकस्त दी और 1लाख 87 हजार 795 वोट के बड़े अंतर से बहुगुणा को हराया इलाहाबाद उत्तरी विधानसभा में अमिताभ बच्चन ने हेमवती नंदन बहुगुणा को 86000 वोटों से हराया था,3 महीने के भीतर ही जब उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव हुआ तब उसी लोकदल से शहर उत्तरी से अनुग्रह नारायण सिंह को प्रत्याशी बनाया गया और कांग्रेस प्रत्याशी बनी उच्चन्यालय के न्यायाधीश जे एन दुबे की पत्नी सरोज दूबे जिनको कांग्रेस कद्दावर नेता राजा मांडा और बाद में प्रधानमंत्री बने विश्वनाथ प्रताप सिंह और सांसद अमिताभ बच्चन का उम्मीदवार कहा जा रहा था उस दौरान अमिताभ बच्चन को मानने वालों की एक बहुत बड़ी संख्या थी ऐसे लोगों ने “अमिताभ बच्चन फैंस क्लब” का भी गठन किया था परंतु अनुग्रह नारायण सिंह ने उस दौर में भी सरोज दुबे को 8600 वोटों से हराया और विधायक बन गए। कांग्रेस के चरमोत्कर्ष पर कांग्रेस के उम्मीदवार की प्रयागराज शहर उत्तरी के इस हार की चर्चा पूरे देश में हुई जाहिर है अनुग्रह नारायण सिंह की भी चर्चा पूरे देश में हुई।
उसके बाद 1989 में दोबारा चुनाव हुए तब अनुग्रह नारायण सिंह जनता दल के ही उम्मीदवार थे यह चुनाव दिसंबर की ठंडी में हुआ और कांग्रेस के उम्मीदवार थे तत्कालीन केंद्र सरकार में स्वतंत्र प्रभार मंत्री राजेंद्री बाजपेई के सुपुत्र और वर्तमान में शहर उत्तरी के विधायक हर्षवर्धन बाजपेई के पिता अशोक बाजपेई। अशोक बाजपेई को उस चुनाव में भी अनुग्रह नारायण सिंह ने बीस हजार वोटों के अंतर से हराया था।
1991 आते-आते मंडल और कमंडल का दौर आ गया था और इस चुनाव में जनता दल के अनुग्रह नारायण सिंह को भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर नरेंद्र सिंह गौर के हाथों पराजित होना पड़ा, इस चुनाव में अशोक बाजपेई कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन के उम्मीदवार थे जिन्हें तीसरे नंबर पर संतोष करना पड़ा था ।
1992 में 6 दिसंबर को बाबरी ढांचे को ढहा दिया गया और कमंडल की राजनीति अपने चरम पर आ गई और विधानसभा भंग कर दी गई ।
1993 में चुनाव हुए और भारतीय जनता पार्टी के नरेंद्र सिंह गौर शहर उत्तरी से विजई हुए और अनुग्रह नारायण सिंह को दूसरे नंबर पर संतोष करना पड़ा।
1996 के चुनाव में नरेंद्र सिंह गौर दोबारा विधायक बने और तब तक जनता दल समाप्त हो चुकी थी और अनुग्रह नारायण सिंह निर्दलीय उम्मीदवार थे। उन्हें दूसरे नंबर पर संतोष करना पड़ा।
2002 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी के नरेंद्र सिंह गौर विजय हुए इस चुनाव में अनुग्रह नारायण सिंह बताते हैं कि उन्होंने निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ने का फैसला किया था परंतु अपने अत्यंत करीबी, बड़े भाई समान और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के कहने पर उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़ा इस चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार दोनों ने उनका प्रचार किया था इसके बावजूद अनुग्रह नारायण सिंह को दूसरे नंबर पर संतोष करना पड़ा और वह चुनाव हार गए इस चुनाव में समाजवादी पार्टी तीसरे नंबर पर और कांग्रेस चौथे नंबर पर थी।
2007 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले राहुल गांधी के आग्रह पर अनुग्रह नारायण सिंह ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की और शहर उत्तरी से ही उम्मीदवार बने अबकी बार अनुग्रह नारायण सिंह ने बहुजन समाज पार्टी के हर्षवर्धन बाजपेई को 1786 वोटों से मात दे दी।
2012 के विधानसभा चुनाव में भी बहुजन समाज पार्टी के हर्षवर्धन बाजपेई को अनुग्रह नारायण सिंह के हाथों पराजित होना पड़ा।
2017 के विधानसभा चुनाव में अनुग्रह नारायण सिंह कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरे और उनका मुकाबला भाजपा के हर्षवर्धन बाजपेई से था चारों तरफ भाजपा की लहर चल रही थी। हर्षवर्धन वाजपई को जीत मिली और इस चुनाव में अनुग्रह नारायण सिंह को 54000 वोट प्राप्त हुआ। हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव में शहर उत्तरी के सेंट एंथोनी स्कूल समेत कई बूथों पर ईवीएम में गड़बड़ी की बात सामने आई थी।
ज्ञात हो कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की 95% सीटों पर समस्त प्रत्याशियों को 90000 मत प्राप्त करना भी आश्चर्य व शोध का विषय है।
सागरपेशा, झुग्गीझोपड़ी, रेहड़ी पटरी वाले के नेता हैं अनुग्रह
वर्ष 2000 में परेड ग्राउंड प्रयागराज में 7000 लोगों को बेघर बेघर होने से बचाया
बात वर्ष 2000 की है जब तत्कालीन इलाहाबाद में सरकार महाकुंभ की तैयारी कर रही थी 2001 में महाकुंभ होना था उसके पहले मेला क्षेत्र के परेड ग्राउंड झुग्गी झोपड़ी और मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों को तत्कालीन जिलाधिकारी ने हटाए जाने का आदेश दे दिया था, तर्क दिया था कि लाखों की संख्या में विदेशी शहर में आएंगे सैकड़ों की संख्या में लोग अनुग्रह नारायण सिंह के पास पहुंचे अनुग्रह नारायण सिंह ने जिला अधिकारी से बात की उसके बाद संगम क्षेत्र मलिन बस्ती संघ नाम से एक जनहित याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर किया इसके अध्यक्ष अनुग्रह नारायण सिंह और सचिव अंशु मालवीय थे संगम क्षेत्र मलिन बस्ती संघ बनाम भारत सरकार रक्षा विभाग और उत्तर प्रदेश सरकार के इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आदेश दिया की केंद्र सरकार और राज्य की सरकार मिलकर के इन मलिन बस्तियों को कहीं और प्रतिस्थापित करें तब ही उनको हटाया जाए इनकी संख्या 1500 के करीब थी जिसमें 7000 से अधिक लोगों की संख्या थी इसी तरह से शहर के 1998 में फफामऊ डोमनीमऊ से लेकर पूरा गडरिया, अल्लापुर, संजय नगर , सोहबतियाबाग ,मलाक राज व रामबाग में रहने वाले करीब 2500 परिवारों को रेल विभाग हटा रहा था तब लोग अनुग्रह नारायण सिंह के पास पहुंचे और उन्होंने इलाहाबाद आवास हीन मोर्चा जिसके वे अध्यक्ष थे के नाम से उच्च न्यायालय में जनहित याचिका की और इलाहाबाद आवास हीन मोर्चा बनाम रेल विभाग भारत सरकार व अन्य के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि भारतीय रेल विभाग की जिम्मेदारी है कि वह इन परिवारों का पुनर्वास करें और तब हटाए इस तरह से सैकड़ों काम है जिनकी बदौलत प्रयागराज के लोग गरीब वंचित और हर तबके के लोग उन्हें पसंद करते हैं कहा जाता है की अनुग्रह नारायण सिंह बस्ती बस्ती मोहल्ले मोहल्ले घूमते हुए लोगों से मिलते जुलते रहते हैं अनुग्रह नारायण सिंह का प्रशिक्षण मजदूर कर्मचारी और गरीबों की पाठशाला में हुआ है और शायद यही कारण है कि उनकी यही बात उन्हें बाकी नेताओं से अलग करती है अनुग्रह नारायण सिंह ने छात्र जीवन से ही जो कुछ सीखा वह हमेशा उनके मस्तिष्क में घर कर गया और वह गरीब दलित श्रमिक एवं वंचितों की सबसे ईमानदार और दमदार आवाज बन गए।