मुंशी प्रेमचंद्र रचित ‘कफ़न’ की नौटंकी प्रस्तुति ने दर्शकों के दिलों को दिया झकझोरा

Share:

मनीष कपूर।

प्रयागराज । दिनांक 22 मार्च 2021 को मुंशी प्रेमचंद्र रचित कफ़न की नौटंकी प्रस्तुति ने दर्शकों के दिलों को दिया झकझोरा।

स्वर्ग रंगमंडल ने बेहद मार्मिक कहानी को नौटंकी में ढालकर अपनी प्रस्तुति के अंदाज से पुनः सिद्ध किया कि नौटंकी के चाहने वाले कम नहीं है । माया महाठगनी के परिप्रेक्ष्य में ‘ठगिनी क्यों नैना झमकावै’ के अंत: मर्म को बड़ी ही बारीकी से मंच पर कलाकारों ने अपनी भावपूर्ण गायकी और अभिनय से रेखांकित किया।

निर्देशक अतुल यदुवंशी ने नौटंकी की जीवंत कला के माध्यम से इस कहानी की मंचीय प्रस्तुति में नए आयाम जोड़ दिए। मुंशी जी के कथानक को पात्रों ने जिस अंदाज और बेबाकी से उन्होंने ढाला है , उसके लिए वाकई में उनकी लोक मर्मज्ञता और कथानक के दर्शन और प्रदर्शन की निपुणता झलकती है।

मुंशी जी की कालजई रचनाओं में शुमार कहानी कफन में तत्कालीन घटनाओं को मुंशी जी ने अपनी कलम से किरदारों के रूप में पिरो कर ऐसा खाका खींचा है, जिसके ताने-बाने में आज भी मजदूर इसी चक्की में पीस रहा है। जिसका अंतिम परिणाम बेबसी, गरीबी, भुखमरी और लाचारी है। गरीबी और बेबसी के साथ जीने वाले किरदारों में घीसू माधव में गर्भवती बुधिया की प्रसव वेदना से इतर अपना पेट भरने में मशगूल है । मौत पर भारी भूख को दर्शाती यह नौटंकी दर्शकों के संवेदना और उसके चरम पर जाकर झकझोरती है।

जहां व संज्ञा – शून्य और स्तब्ध हो जाता है ।
बुधिया के कफन की तैयारी के लिए गांव भर से जुटाए गए पैसों से दोनों बाप बेटा बाजार में कफन लाने जाते हैं तो दोनों के अंतर्मन में से भूख की छटपटाहट क्रिया कर्म के आडंबरो पर भारी पढ़ती है और दोनों पेट भरने से बुधिया की बैकुंठ जाने की कामना करते हैं।

राजकुमार श्रीवास्तव जी ने नौटंकी में रूपांतरण के लिए सटीक उपमाओ और लोक विषयों के आसपास का ताना-बाना बुना है।
कलाकारों में मंच पर घीसू और माधव की भूमिका में क्रमशः सचिन केशरवानी और आर्यन मोहिले ने बेहतरीन अभिनय से सभागार निरंतर तालियों की गूंज से गुंजायमान रहा।

बुधिया के रूप में सुजाता केसरी ने बेहद प्रभावित किया वही नौटंकी के इस क्रम में सूत्रधारों के तौर पर विदूषक की भूमिकाओं में संदीप शुक्ला और रोशन पांडे ने अपने गायिकी और अभिनय से दर्शकों में अपनी अमित छाप छोड़ी तो वही कार्यक्रम संयोजक कृष्ण कुमार मौर्य ने ठाकुर की भूमिका में दर्शकों का मनोरंजन करते रहे।

मुख्य अतिथि के रूप में देश के वरिष्ठ साहित्यकार डा. ज्योतिष जोशी एवं विशिष्ट अतिथियों में साहित्यकार प्रोफेसर राजेंद्र कुमार जी, डॉ. राजेश मिश्रा जी एवं प्रोफेसर सूर्य नारायण सिंह जी उपस्थित रहे।
डा.ज्योतिष जोशी जी ने अपने वक्तव्य में परंपराशील नाट्य की महत्ता और उपयोगिता पर विस्तार से बात रखी और स्वर्ग रंगमंडल एवं अतुल यदुवंशी के निर्देशकीय कौशल की भूरी भूरी प्रशंसा की। प्रोफेसर राजेंद्र कुमार जी ने आज के दौर में कफन जैसी प्रस्तुति को समय की मांग करते हुए इसका नई पीढ़ी से साक्षात्कार की जरूरत पर जोड़ दिया। सभी कलाकारों को एवं निर्देशक लोककलाविद् श्री अतुल यदुवंशी जी को उन्होंने साधुवाद दिया।


Share: