“लॉकडाउन चार का दूसरा दिन, प्रवासी मजदूर और दर्द भुनाने वाले गिद्धों के नाम”

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1993, सूडान, की इस दर्दनाक तस्वीर को देखिये, जिसे पुलित्ज़र अवार्ड दिया गया, इसमें एक गिद्ध, एक भूख से तड़पती मरणासन्न बच्ची के पीछे घात लगाए बैठा, उसके मरने का इंतजार कर रहा है। अवार्ड मिलने के बाद एक उद्वेलित पाठक ने इस फोटोग्राफर पत्रकार को फोन किया और पूछा कि आखिरकार फिर उस बच्चे का क्या हुआ? फोटोग्राफर ने जवाब दिया कि मुझे नहीं पता, मैं तो यह तस्वीर खींच कर चला आया था।

जिस पर फोन करने वाले ने, फोटोग्राफर को कहा कि, आपको पता है, उस दिन इस बच्चे के पास एक नहीं, बल्कि दो गिद्ध थे?
पहला गिद्ध वो, जो उस भूखी बच्ची के मरने का इंतजार कर रहा था, ताकि उसको खा कर अपनी भूख मिटाए। दूसरा गिद्ध वो था, जिसने इस बच्चे के दु:ख को भुनाया, उसकी जान बचाने की जगह और इनाम जीतने के लिए। आपने आखिर उसे बचाने का प्रयास क्यों नहीं किया? इन सवालों के कुछ दिन बाद उस फोटोग्राफर ने आत्महत्या कर ली। सीधे शब्दों में, यदि कोई भी गिद्ध, इन बेबस, बदहाल प्रवासी मजदूरों की तस्वीरों को शेयर कर उससे धन कमा रहे हैं, राजनीति कर रहे हैं, तो यकीन मानिए, वो भी ऐसे ही गिद्ध है, जो इन मौके को भुना, मजलूमों की चिताओं पर अपनी रोटियां सेक रहे है।

तब से आज तक, मानवता विरोधी और भारत को अस्थिर करने वाली ताकतें, विश्वपटल पर ऐसे ही गिद्धों को इनाम देती आई हैँ, जो देश की भूख, गरीबी, बालश्रम, बालवेश्यावृत्ति और राष्ट्रविरोध दिखाएं, सेना पर पथ्थर मारते दिखाएं, ढेरों बच्चे पैदा करने को कहें और फिर उनकी बदहाली पर सरकार को कोसें, और अभी पिछले कुछ नोबल, फोर्ड, मेग्सेसे, पुलित्जर इनामों का विषय देखें तो, इनकी सारी मंशायें सार्वजनिक हो जाती है। और इसीलिए आज सड़कों पर बेहाल, सफर में सफर करते, इन बेबस लोगों की तस्वीरें छपी दिखती हैं, तो लगता है कि, पाठकों से मदद के नाम करोड़ों का चंदा बटोरते ये लोग, अगर फोटो खींचने के साथ साथ उनकी थोड़ी थोड़ी मदद भी कर दें, वाहन भोजन पानी उपलब्ध करवाने के लिए अड़ जाएँ तो? लेकिन वो तो गिद्ध हैं, वो तो तब तक इन्तजार करेंगे, जब तक कि छपास लायक इनकी तस्वीर, उनके शर्मसार कैमरों में ना उतर जाए । और अगर आज अपने ही आज़ाद देश में, पैसा राशन भोजन मुफ्त मिलने के बावजूद, अपने घरों को लौटने को मजबूर, इन मजदूरोंकी स्थिति जब इतनी दुखद है तो जरा बिना किसी सहायता, सुरक्षा और भोजनपानी के १९४७, १९८४ और १९९० की कल्पना कीजिये, उन स्याह रातों में घर छोड़ने वालों की तस्वीर कितनी भयावह रही होगी? यूँ भी षड्यंत्र, स्वार्थ, पीठ में छुरा भोंकने में महारथ हासिल है यहाँ के गिद्धों को और हिंदूत्व को मीठा ज़हर देने की कोशिशें तो यूँ भी बहुत पुरानी है। बंटवारा करवाने वाले ने गीता में लिखी बातों और रघुपति राघव राजाराम को तोड़ा-मरोड़ा, तो अब नए ज़माने के स्वयंभवु बापू, भागवत कथा में अली मौला का जाप कर रहे हैं। तारों को आपस में जोड़ें तो समझ आएगा कि असल साज़िश क्या है।

किसी देश के लिए, किसी भी आपदा से लड़ने के लिए, जो सबसे आवश्यक बात है, वो है #जनता का ऊंचा मनोबल, कामगार समाज और टिकाऊ अर्थव्यवस्था। गद्दार लुटेरा तंत्र और विपक्ष इसी पर प्रहार कर रहा है ताकि गरीब भारत, कोरोना से हार जाए और वापिस से एक कमजोर भारत, चीन, पाकिस्तान या नेपाल जैसे छोटे से देशों के सामने खड़ा हो। षड्यंत्र बहुत गहरा है, बहुत ही गहरा, इसको समझिये और सतर्क रहिये, मोदी के खिलाफ पाकिस्तान से मदद मांगने कौन गया था, याद ही होगा? केदार आपदा में लोग मरते रहे, लाशें कुत्ते नोचते रहे और राहत सामग्री के चंद ट्रक, नामदारों के झंडा फहराने के इन्तजार में खड़े खड़े सड़ गए थे! अपनी सरकारों वाले राज्यों में यह क्या कर रहे हैं लेकिन यूपी सरकार को हजार बसें देने के नाम पर राजनीतिक झुनझुने और झूठ पकड़ा रहे हैं, अगर इनकी मंशाएं साफ़ होतीं, तो उन्ही राज्यों से इन मजदूरों को पैदल भगाते ? वहीँ से बसों में ना भेजते? और जब मजदूर उद्योग, विकास के लिए बेहद जरूरी हैं और राशन, भोजन, पैसा सब कुछ इनके पास केंद्र पहुंचा रहा है, तब इनका विस्थापन क्यूँकर हो रहा है, यह सब बेहद खतरनाक षड्यंत्र की और इशारा कर रहा है, जनता को जागने, समझने की जरुरत है! देश को कमजोर करने के लिए ये विघ्नसंतोषी किसी भी स्तर तक जा सकते हैं।

चलते चलते, भारत में कोरोना केस 1,00,000 के पार पहुंचे। थोड़ी सी राहत की बात ये कि 100 से 1,00,000 होने में भारत को 64 दिन लगे, जबकि अमेरिका को 25, स्पेन 30, जर्मनी 35 और ब्रिटेन को 42 दिन । जागरूक सरकार का समय से लागू किया गया लॉकडाउन, इस बीमारी को सिर्फ़ इतना ही डिले कर सकता था! अब बाक़ी, जनता और करोना जाने ।

मिलते हैं कल, इसी समस्या पर और विचार करने के लिए, तब तक जय जय श्रीराम

डॉ भुवनेश्वर गर्ग: डॉक्टर सर्जन, स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, हेल्थ एडिटर, इन्नोवेटर, पर्यावरणविद, समाजसेवक
मंगलम हैल्थ फाउण्डेशन भारत
संपर्क: 9425009303
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