पत्रकारिता में मर्यादा की खोज मे भारत

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पूरी दुनिया मे पत्रकारिता  एक ऐसी वृत्ति है जो वृत्ति कम कर्तव्यनिष्ठा की परछाई ज्यादा माना जाता है। परन्तु अभी निरपेक्ष रूप में पत्रकारिता जैसे असंभव प्रतीत होती है। होगा भी क्यों नहीं, समाज मे निरपेक्षता को कौन पूछता है? इसका मतलब ये नहीं की मैं पूरे पत्रकार समाज को दोषी ठहरा रहा हूं। भारत मे तरक्की की नाम पर जो  अधोपतन हुआ है वो शायद और कोई देश मे हुआ होगा। जो भारत त्याग तपस्या और बलिदान के लिए पूरी दुनिया में मशहूर था आज ये सभी शब्दावली के शब्द किताबी बात होकर रह गयी है बस।

समाज को तरक्की तो चाहिए परन्तु किन मूल्यों बदौलत यह तरक्की हासिल हुई है, इसका भी ध्यान रखना जरुरी है। ऐसा बिल्कुल नही हो की एक रोग की दवाई  से दूसरा रोग पैदा हो जाये। तरक्की सबकुछ नहीं होता सामाजिक मूल्योँ का बोध भी कोई चीज होती है।

भारतीय संविधान मे पत्रकारिता को चौथे स्तम्भ के रूप मे जो दर्जा मिला है उसकी गरिमा को बनाये रखना सभी पत्रकारों और संस्थाओं  की जिम्मेदारी तथा नैतिक कर्तब्य होता है। आज ऐसा माहौल है कि बिना राजनतिक पृष्ठभूमि या सहयोग के  इस तरह की संस्था कभी सफल नही हो सकती है।

ऐसा माहौल क्यों और किसने  पैदा किया ? इसके पीछे क्या सिद्धांत है? कोई सम्पूर्ण निरपेक्षता से समाज की सेवा क्यों  नही कर सकता? इसका उत्तर पाने की चेष्टा होनी चाहिए।आर्थिक उपलब्धियां, वव्यसायिक तरक्की और अव्वल नंबर पे बने रहने की महत्वाकांक्षा आज इस क्षेत्र को सम्पूर्ण रूप मे अनैतिकता के अँधेरे मे लगातार धकेल रहा है।

इस प्रतियोगिता मे अधिकतर लोगों का ग्रसित होने कारण  बची खुची नैतिकता को प्रधानता देने वाले पत्रकारों की प्रासंगिकता कम हो जाने के कारण है। आज भी ऐसे बहुत पत्रकार हैं जो लोगों को सम्पूर्ण सत्य का दर्शन कराने के लिए अपनी जान की भी बाजी लगा देते हैं। परन्तु उनकी महानता उन महत्त्वाकांक्षा के पहाड़ के तले दब जाती है जहां से दुबारा आत्मविस्वास मिल पाना असम्भव होजाता है। आज यह प्रसंग मैं इसीलिए लिख रहा हूँ क्योंकि आज मैं एक घटना से बहुत प्रभावित हूँ और दुखी भी। प्रसंग यह है की एक प्रतिष्ठित संपादक  के  ऊपर आक्रमण हुआ, वह भी जब वह अपनी धर्मपत्नी के साथ घर वापस आ रहे थे।

तो फिर मैंने इसका कारण जानने की कोशिश की, परन्तु मुझे कुछ सटीक तथ्य मिल नही पाया, तभी से लेके सामाजिक जनमाध्यम तक हर जगह इस बात की चर्चा तो खूब हो रहाहै परन्तु मुझे लगा कोई निरपेक्ष होकर सत्य उजागर करने के लिए तैयार नहीं है। दुनिया की सचाई से दुनिया को रूबरुः करने वाले एक पत्रकार के ऊपर आक्रमण सारा पत्रकार समाज के ऊपर आक्रमण नहीं है क्या? यदि हां तो पूरा पत्रकार समाज एकत्रित होके इसका विरोध क्यों नहीं करता? समाज को सत्य के साथ सदैव खड़ा होना चाहिए, जो नहीं हो रहा है मतलब या तो समाज बिक गया है या उस पत्रकार की बात में सत्यता नहीं है। दोनों परिस्थिति मे घाटा तो समाज का ही है। इसीलिए सत्य जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

राजनीति और पत्रकारिता यह दो अलग अलग परंतु महत्वपूर्ण बिषय है, उनका एक-दूसरे पर निर्भरता को कोई भी नकार नहीं सकता लेकिन इन दोनों के बीच कोई भी अपवित्र संबंध नहीं होना चाहिए। पत्रकारिता का एक ही धर्म होना चाहिए, वह केवल सत्य के साथ, सत्य के लिए और सत्य की लड़ाई लड़ना चाहिए। राजनीति मे भ्रष्टाचार आज की समाज मे आम बात है परन्तु पत्रकारिता एक ऐसा पेशा है जो आज भी जनता सत्य का उजागर करने का उम्मीद इसी मे देखता है, उस उम्मीद को पानी मे मिलाना ना किसी पत्रकार के लिए उचित होगा ना ही पत्रकारिता संस्था के लिए। जनता का विश्वास तो इन पत्रकारिता वृत्ति की सबसे बडी पूंजी है, विश्वास एक बार उड़ गया तो दुबारा मिलना बहत मुश्किल होता है। इसीलिए मै दुबारा कहता हूँ की जो भी संस्था सत्य के साथ खडी रहती है उसका पराजय असंभव है। मर्यादाहीन पत्रकारिता का भारतीय समाज मे कोई स्थान नहीं भले ही यह बात किसी को अच्छी ना लगे । पत्रकार अपनी मर्यादा मे रहे तो कोई भी संस्था उसे प्रभावित करके अनैतिक कार्य करवा ही नहीं सकता। और जो संस्था पत्रकारों को अपनी फ़ायदा केलिए अनैतिक कार्य करने को विवश करता है उस संस्था का सामाजिक बहिष्कार करना चाहिए।

यह भूलना कभी भी उचित नहीं की भारतीय समाज आज भी इन्ही पत्रकार और उनकी पत्रकारिता को सत्य की दूत मानते है, उनका यह भरोसा सदैव कायम रहना चाहिए । यदि आप देखें तो आप पाएंगे कि कई पत्रकार बुनियादी आवश्यकता के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन आप पाएंगे कि उनमें से कई बहुत अमीर भी हैं। उनमें यह बहुत बड़ा अंतर बिल्कुल अच्छा नहीं है। यह सच है कि पत्रकारिता के पेशे में आप बहुत अमीर नहीं बन सकते हैं जब तक आप खुद को किसी भी राजनीतिक पार्टी के हाथ बेच नहीं देते।

लेकिन एक बार जब आप अपने आप को किसी ऐसे व्यक्ति या संस्था को बेच देते हैं, तो फिर आप लोगों के लिए नहीं हो सकते, आप सच्चाई के लिए नहीं हो सकते, आप ईमानदारी के लिए नहीं हो सकते, आप राष्ट्र के लिए नहीं हो सकते। वे केवल वही बताते हैं जो उनके राजनीतिक बेतनदाता स्वामी उन्हें कहने के लिए बोलते हैं। वे असहाय हैं लेकिन आप नहीं। भले ही आपका संगठन प्रमुख आपसे कुछ और करने के लिए कहे परन्तु आपको सच्चाई कभी नहीं छोड़नी चाहिए। आप समाज के प्रति जवाबदेह हैं। और एक पत्रकार के रूप में आपको जो सम्मान स्वत: प्राप्त हुआ है, इस सम्मान को अस्वीकार कभी नहीं करना चाहिए। मूल्यबोध और चरित्र पर कालिख नकारात्मक सिद्ध होसकता है। यह लेख उन सभी ईमानदार पत्रकारों को समर्पित है जो सत्य के साथ है।

लेखक: डॉक्टर स्टालिन मिश्रा, सिंगापुर मूल निवासी -ओडिसा डॉक्टर मिश्रा पबित्र जगन्नाथ धाम ओडिशा के मूल निवासी हैं परन्तु अभी सिंगापुर मे रहते हैं।  वह एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। वह सिंगापुर एक्सचेंज में बिजनेस इंटेलिजेंस के वरिष्ठ सलाहकार के रूप में काम कर रहे हैं। वे सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक बहुत प्रसिद्ध व्यक्तित्व हैं। उन्हें दुनिया भर में कई पुरस्कार और मान्यताएं मिलीं। जैसा कि वह एक स्वतंत्रता सेनानी के परिवार से है, वह बहुत ही देशभक्त, सच्चा राष्ट्रवादी है और समाज की सेवा करने के लिए विशेष रुचि रखते है। वह अपनी सर्वश्रेष्ठ क्षमता के अनुसार भारत के विकास के लिए प्रयास कर रहे है |न केवल विज्ञान और सूचना प्रौद्योगिकी में बल्कि कला संस्कृति साहित्य के क्षेत्र में भी उनकी समान क्षमता है। वह बहुत प्रतिभावान व्यक्तित्व है, युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। समाज के लिए उनके समर्पण के लिए हाल ही में उन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय से सामाजिक कार्य में डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्राप्त की। इंडोनेशिया के शाही संघ ने उन्हें 2019 में स्पिरिट कल्चर अवार्ड से सम्मानित किया, भले ही उसके पास बहुत सारे किस्से और अनुभव हैं लेकिन वह एक बहुत ही सरल व्यक्ति है।


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