नारी उत्पीड़न की जीवंत गवाही “द शो मस्ट गो ऑन”

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मनीष कपूर ।
मनीष कपूर ।

प्रयागराज। परिस्थितियाँ जहां एक ओर विभिन्न प्रकार के अत्याचार, शारीरिक शोषण सहन करने पर विवश कर देती हैं तो दूसरी ओर निहित स्वार्थ के खातिर व्यक्ति को विवेक शून्य बना देती है। जहां न तो संबंधों को पहचानने की क्षमता रह जाती है और न ही संवेदना का भाव। समाज मे अनवरत चल रहे इस खेल से जन्म ले रहे हैं विभिन्न प्रकार के अपराध। कुछ ऐसा दृश्य शुक्रवार को उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र प्रेक्षागृह में “एकता” संस्था द्वारा प्रस्तुत नाटक “द शो मस्ट गो ऑन” में देखने को मिला।

समाज मे आज भी इंसान की शक्ल में कुछ भेड़िये हैं, जो दूसरों की मजबूरियों और विवशता का लाभ उठाकर सारे संबंधों को वासना की आग में भस्म कर देते हैं। कुछ कमियाँ हममें भी हैं जो हमे आगे बोलने से रोक देती है। जब पति ही पत्नी को अपनी आय का साधन बना ले तो उसकी परिणीति विनाशकारी हो जाती है। पूज्यनीय नारी के साथ हो रहे घृणित कार्य को समाज “द शो मस्ट गो ऑन” समझ कर मूकदर्शक बना देखता रहता है। लेखक अफ़ज़ल खान ने इस विषय के द्वारा समाज पर एक करारा तमाचा मारा है, ताकि समाज के लोग जागरूक हो और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न होने पाये।

नाटक की कथावस्तु यह है कि पुष्पक एक गरीब बेरोज़गार व्यक्ति है। उसकी पत्नी बहुत खूबसूरत है। उसकी एक जवान बेटी भी है किनि। पुष्पक, मामा नामक एक व्यक्ति से कुछ पैसे उधार लेता है। यहीं से लेनदेन का सिलसिला शुरू होता है। मामा धीरे धीरे पुष्पक की पत्नी की ओर आकर्षित होता है।आखिरकार एक दिन मामा,, पुष्पक की पत्नी को अपनी हवस का शिकार बना लेता है।विवशता की मारी रत्ना अब हर दिन मामा की हवस का शिकार बनने लगी। बेबसी और लाचारी की जंजीरों में जकड़ी रत्ना, मामा की घिनौनी हरकतों का विरोध नही कर पाती। मामा की हरकतें दिन पर दिन बढ़ती गई। एक दिन मामा ने रत्ना की बेटी कीनि की ओर भी हाथ बढ़ा दिया। उस दिन तो रत्ना के अंदर खौल रहा लावा फूट पड़ा। फिर वह तनिक भी समय न गंवाये, मामा की गर्दन काट देती है। पति बीच मे आता है तो रत्ना उसका भी सर काट देती है।

हृदय स्पर्शी इस मार्मिक दृश्य को बड़े ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया। सबसे अधिक इस दृश्य ने लोगों को प्रभावित किया। संवाद और कथावस्तु की मजबूती पूरे समय बनी रहती है। पात्रों का अभिनय , प्रकाश व्यवस्था एवं संगीत संयोजन ने भी नाटक की सजीवता को बनाए रखा।

निर्देशक के रूप में अफ़ज़ल खान ने नाटक के साथ पूरा न्याय किया। जहां छोटे-छोटे संवादों ने नाटक को बोझिल होने से बचाया।

साइक्लोरामा।

वही दूसरी ओर रेप सीन को साइक्लोरामा पर दिखाकर अपनी सूझ-बूझ का परिचय दिया।
अभिनय की दृष्टि से आरती चौबे उर्फ पूजा(रत्ना), प्रतिमा श्रीवास्तव(किनि), सूर्यकांत (मामा), रेणुराज सिंह (शोभना) का अभिनय अत्यंत सशक्त था। सौरभ केसरी (रिक्शा वाला) एवं प्रेमेंद्र सिंह (पुष्पक) ने भी अपनी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया। संगीत संयोजन अमन वर्मा, प्रकाश व्यवस्था सुजॉय घोषाल ( लालटू दादा), रूप सज्जा हामिद अंसारी, मंच निर्माण आरिश जमील, रमेश चंद्र, अमन वर्मा, वस्त्र विन्यास पूजा, रेनुराज, मंच व्यवस्था शाहबाज़ अहमद, कार्तिकेय गुप्ता, विद्या जायसवाल, तुराब अली, अब्दुल्लाह, आंजनेय गुप्ता ने की। प्रेक्षागृह व्यवस्था ज्योति आनंद एवं कीर्ति चौधरी की थी। प्रस्तुति नियंत्रक मनोज गुप्ता थे।

कार्यक्रम से पूर्व कोरोना की दूसरी लहर के दौरान प्रयागराज के पांच वरिष्ठ रंगकर्मियों श्री रामचन्द्र गुप्त, श्रीमती पूजा ठाकुर, डॉ अनुपम आनंद , श्री शशिकांत शर्मा एवं श्रीमती सफलता श्रीवास्तव के निधन पर दुःख व्यक्त करते हुए उनके व्यक्तित्व और कार्यों पर प्रकाश डाला गया। आयोजन में दो मिनट का मौन रखकर दिवंगत आत्माओं के प्रति शोक व्यक्त किया गया।

इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के तौर पर सुरेश शर्मा ( निदेशक उ.म.क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र), डॉ विभा मिश्रा (सहायक निदेशक सूक्ष्म, लघु उद्योग मंत्रालय भारत सरकार , लोकेश शुक्ल निदेशक आकाशवाणी इलाहाबाद, बांके बिहारी पांडे प्रधानाचार्य रेवती देवी इंटर कॉलेज, अजामिल व्यास (वरिष्ठ रंगकर्मी, चित्रकार), अतुल यदुवंशी (वरिष्ठ लोक नाट्य विद), शैलेश श्रीवास्तव (वरिष्ठ नाट्य निर्देशक) थे।

अतिथियों का स्वागत संस्था के केंद्रीय महासचिव जमील अहमद ने किया।धन्यवाद ज्ञापित संस्था के केंद्रीय अध्यक्ष रतन कुमार दीक्षित ने किया।मंच संचालन आकांक्षा पारुल ने किया।


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