कथा विजयादशमी की!

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ऐसा जन विश्वास प्रचलित है कि विजयादशमी को जिस किसी काम का श्री गणेश किया जाए, वह सफल होता है। इस तिथि का एक और नाम भी है – अपराजिता दशमी। यह पर्व आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। विजयादशमी के आने से पूर्व ही पूरा देश राममय हो जाता है। सर्व विदित है, इसी दिन मर्यादा पुरूषोत्तम राम ने कुटिल रावण पर विजय पायी थी। इसी उपलक्ष्य में यह तिथि विजया के नाम से स्थापित हुई। इस दिन जगह जगह रावण वध का समारोह उल्लास के साथ मनाया जाता है।

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विजयादशमी की सुबह “नीलकंठ” नामक पक्षी का दर्शन अत्यंत मंगलकारी माना जाता है, ऐसा जन विश्वास प्रचलित है। रामचरित मानस में भी इसका उल्लेख मिलता है। फलित ज्योतिष के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को जब आकाश में तारे निकलते हैं, उस समय ’विजय’ नाम मुहूर्त होता है। इस मुहूर्त में शुरू किया गया हर कार्य सिद्ध होता है। कहीं कहीं इस दिन अस्त्र शस्त्र पूजन का भी विधान है। कहीं कहीं इस पर्व पर बहनें अपने भाई को तिलक भी लगाती हैं। राजघरानों में हाथी, घोड़े, स्वर्ण आदि की भी पूजा की जाती है।

“नीलकंठ” पक्षी

विजयादशमी को शमी वृक्ष की पूजा का विशिष्ट महत्व है। राजस्थान के क्षत्रियों के बीच शमी पूजन विशेष रूप से प्रचलित है। कथा मिलती है – अज्ञातवास के दुष्कर दिनों में गाण्डीवधारी अर्जुन के साथ एक शमी वृक्ष ने ही पाण्डवों की मर्यादा रक्षा की थी। विराट नगर में चाकरी करने से पूर्व पाण्डुपुत्रों ने अपने अस्त्र शस्त्र को एक प्राचीन शमी वृक्ष के कोटर में छिपा कर रखा था।

शमी वृक्ष

विजयादशमी की कथा: विजयादशमी के महात्म्य के संबंध में कथा कुछ इस प्रकार है: उस दिन अचानक गौरा पार्वती ने भोले शंकर से कहा “नाथ, मन में एक जिज्ञासा हो रही है…
“गौरा तुम्हारी जिज्ञासाओं का तो कोई ओर छोर नहीं है। पूछो, पूछो, क्या जानना चाहती हो ? सदा की तरह मैं तुम्हारी जिज्ञासा शांत करूंगा।
पार्वती बोली, “नाथ, मैं जानना चाहती हूं, लोगों में विजयादशमी का पर्व, जो अत्यंत उत्साह और निष्ठा से मनाया जाता है, उससे क्या पुण्य फल प्राप्त होता है ?“
भगवान शंकर ने मंद मुस्कान बिखेरते हुए जवाब दिया, “देवी, लो बताता हूं। आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि में नक्षत्रों के उदय होने पर विजय नामक मुहूर्त आता है, जो मानव की हर लालसा को पूरा करने वाला है। शत्रु को पराजित करने की कामना रखने वाले सम्राट को इसी विजय मुहूर्त में चढ़ाई करनी चाहिए। इस पुण्य तिथि को यदि श्रवण नक्षत्र मिल जाए, तो अत्यंत शुभ मानना चाहिए। मर्यादा पुरूषोत्तम रामचन्द्रजी ने ऐसे ही मंगलकारी मुहूर्त में रावण पर चढ़ाई की थी और इसी के प्रभाव से उन्हें रावण जैसे पराक्रमी शत्रु पर विजयश्री प्राप्त हुई थी। फलतः यह तिथि परम पावन और कल्याणकारी मानी गई। क्षत्रिय लोग इसे अपना त्यौहार मानकर विशेष रूप से मनाते हैं।“

शमी वृक्ष द्वारा मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान रामचन्द्रजी की मदद की कथा कुछ इस प्रकार है: जब रामचन्द्रजी ने रावण पर चढ़ाई की थी, तो प्रस्थान करने से पूर्व उन्होंने शमी वृक्ष का विधि विधान से पूजन अर्चन किया। तब शमी वृक्ष ने आशीर्वाद दिया, “विजयी भव।” और हुआ भी ऐसा ही।

शमी वृक्ष का पूजन करते समय इस मंत्र से प्रार्थना करने का विधान है:                                        
शमी शमयते पापं शमी लोहितकंटका।
धारिण्यर्जुनवाणानां रामस्य प्रियवादिनी।।
क्रिष्यमाणयात्रायां यथाकालं सुखं मय।
तत्रनिविघ्र कत्रों त्वं भव श्री राजपूजिते।।
विजयादशमी या दशहरे के प्रसंग में भगवान राम की पावन गाथा पूरे देश में छा जाती है। जगह जगह राम, लक्ष्मण और जानकी की झांकियां निकाली जाती हैं, जो भारतीय जनमानस पर एक गहरा प्रभाव छोड़ती है। रामनगर की रामलीला, इलाहाबाद और मैसूर का दशहरा अद्वितीय रूप में मनाए जाते हैं। इनमें दर्शकों की संख्या लाखों में होती है।
विजयादशमी को उत्तर भारत में हल्दी चावल के घोल ( ऐपन ) से ’दस खाने वाली अल्पना बनाई जाती है’। हर खाने में एक पीला फूल ( प्रायः कुम्हड़े या कण्डैल का ) रखा जाता है। रोली अक्षत से पूजा की जाती है। चाकू, कैंची और कलम दावात की भी पूजा की जाती है। एक कोरे कागज में घर का मुखिया श्रीगणेशाय नमः लिखता है, फिर उसके नीचे परिवार का हर सदस्य कुछ न कुछ लिखता है जैसे, “बोलो राजा रामचन्द्र की जय“। या “राम राम कहते रहो, धरे रहो मन धीर“। अंत में मेवे मिष्ठान का भोग लगाया जाता है।

प्रस्तुति: सतीशचन्द्र टण्डन ।


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