मानव का परिचय आज के जैसे विषम स्थिति में ही पता चलता है – यह वक्त भी गुजर जाएगा सिर्फ यादें शेष रह जाएंगी

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देवदत्त दुबे

किसी का भी हर समय एक सा नहीं रहता । जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं । अच्छे समय में कौन साथ दे रहा है कौन नहीं यह ज्यादा दिन याद नहीं रहता । लेकिन बुरे वक्त में कौन सात दे रहा है इसे सब याद रखते हैं और इस समय पूरी दुनिया ऐसे ही वक्त से गुजर रही है । देश के प्रधानमंत्री से लेकर परिवार के सदस्य तक इस समय कसौटी पर है । कि इस समय कौन कितना साथ दे रहा है ?

या एक ऐसा वक्त है जहां सबकी भूमिकाओं की अग्नि परीक्षा हो रही । ऐसे अवसर बहुत कम आते हैं ।अन्यथा, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक, शासन, प्रशासन, अधिकारी, कर्मचारी, न्यायाधीश, डॉक्टर, पत्रकार, कसौटी पर होते हैं । क्योंकि इनके ऊपर दायित्व होते है लेकिन इस समय परिवार का प्रत्येक सदस्य पड़ोसी मोहल्ला शहर रहने वाले लोग और मित्र कसौटी पर हैं । जैसे तैसे करके यह वक्त तो निकल जाएगा, लेकिन इस बुरे वक्त में किस की क्या भूमिका रही इसको बरसों याद किया जाएगा । यह अपने ऊपर है कि हम किस तरह से याद किए जाएं, खासकर इस समय सबसे बड़ी चुनौती परिवार के लोगों पर आई है । जो बरसों बाद एक साथ घर में रह रहे हैं, अन्यथा कितने परिवार हैं जिनके बच्चे या तो बाहर पढ़ रहे हैं या सर्विस कर रहे है । घर पर केवल मां बाप रहते है या फिर ऐसे परिवार हैं जिनके घर के सामने दर्जनों वाहन खड़े हैं, क्योंकि अब बच्चे और महिलाएं भी अपने लिए अलग अलग कार, बाहर खड़े रखते हैं । जब से महिलाएं कामकाजी हुई है तब से वाहनों की संख्या कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है । सुबह से सब अपने-अपने वाहन से काम पर निकल जाते हैं और शाम को आते हैं मोबाइल में खो जाते हैं । ज्यादातर परिवारों में यही क्रम था, लेकिन अभी भरपूर समय मिला है जब हम एक दूसरे को सहयोग कर सकते हैं, समझ सकते हैं और गृह कार्य में हाथ बढ़ाकर सहयोग कर सकते हैं । क्योंकि अधिकांश परिवारों में खाना बनाने वाले आने लगे हैं जो अब नहीं आ रहे और हंसी खुशी बिताए गए यह दिन जिंदगी भर सुकून दे सकते हैं । उस समय पश्चाताप होगा जब परिवार का कोई सदस्य इस दुनिया से विदा लेगा भगवान से प्रार्थना है की ऐसा किसी घर में ना हो । लेकिन दुनिया का नियम भी तो है कि जो आएगा उसको जाना है । लेकिन ऐसा करके जाना है जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी सुकून से जी सकें ।आज जो कुछ चल रहा है वह मनुष्य की गलती के कारण हो रहा है । विकास के नाम पर पेड़ों की कटाई, नदियों को छलनी किया गया । गाड़ियों से इतना धुआं निकला आसमान भी रो पड़ा है । एक सप्ताह में ही महानगरों में आसमान साफ साफ दिखाई देने लगा है ।

जरूरत मांडो तक जरुरी सामग्री और भोजन पहुंचाते लोग

बहरहाल, हम इस समय देश दुनिया की बात ना करके परिवार की ही बात करते हैं क्योंकि सुख-दुख में परिवार ही काम आता है । अच्छों की जरूरत सबको है यहां तक कि अस्तित्व अच्छे लोगों का आकांक्षी है । ऐसे में हम सोच सकते हैं कि हमें मौका मिला है कि हम परिवार में सबके लिए अच्छे साबित हो सके । अन्यथा परिवार के मामलों को समझाने के लिए अलग से थाने खोलना पड़े हैं । कुटुंब न्यायालय बनाने पड़े हैं और तो और वृद्ध आश्रम तेजी से खोले जा रहे हैं । इन सब का मतलब है की हमने कभी चिंतन मनन नहीं किया, क्योंकि हम जैसा करेंगे वैसा ही भरेंगे। फिर क्यों नई बहू शादी के बाद अलग रहने की जिद करती है और बुढ़ापे में बहू के साथ रहने की कोशिश करती है । जवान बेटा बाप को जवाब सवाल करता है । और बुढ़ापे में आज्ञाकारी पुत्र की अपेक्षा करता है । ऐसे अनेकों संबंध परिवार में होते हैं तो समय यही है कि हम परिवार में वैसे ही संबंधों को जिए जैसे हम अपने लिए जीवन भर चाहते हैं और यह अवसर पहली बार आया है । जब परिवार का प्रत्येक सदस्य परिवार भावनाओं को मजबूत कर सकता है अन्यथा एक साथ रहने का मौका ही कम मिलता है ।

भोजन करवाते लोग

कुल मिलाकर कोरोना वायरस आगे की दुनिया बहुत बदली हुई नजर आएगी, जिसके लिए भी हमें अभी से तैयारी कर लेना चाहिए । जो मजदूर आज महानगरों से सैकड़ों किलोमीटर पैदल छोटे-छोटे बच्चों के साथ सामान ला दे अपने घरों को लौट रहे है, वे अब भविष्य में महानगरों की तरफ जाने के पहले 10 बार सोचेंगे । महानगरों में आगे से घर पर काम करने वाले कम ही मिलेंगे इसलिए अभी से सबको आदत डाल लेना चाहिए । घर के काम करने की जिन लोगों ने इफरात धन कमाने के फेर में इंसानियत खोई है, वे आज पश्चाताप कर रहे हैं क्योंकि घर के बाहर एक दर्जन गाड़ियां खड़ी है लेकिन उन्हें बैठने की हिम्मत नहीं बची । देशभर के महानगरों में मकान फ्लैट लिए हैं लेकिन एक कमरे में ही सिमट कर रह गए हैं ।

ऐसे अनेकों उदाहरण है जिनको सभी भली-भांति जानते हैं, जरूरत है इस अवसर पर संकल्पित होने की आगे से गलतियों को ना करने की तभी हम आने वाली पीढ़ी को सुख शांति दे पाएंगे, क्योंकि हमने देख लिया है कि जिस पैसे पद प्रतिष्ठा में सुख शांति खोज रहे थे उसमें अंततः वह मिली नहीं ।

वैसे तो अभी अधिकांश लोग अच्छी बात ही सोच रहे होंगे लेकिन वक्त निकलने के साथ वैसे ही बदल जाते हैं जैसे अच्छे मैसेज व्हाट्सएप से हम फॉरवर्ड तो कर देते हैं लेकिन आत्मसात नहीं कर पाते है । लेकिन जो लोग जीवन की हकीकत इस दौर में समझ जाएंगे उनके लिए उनके परिवार के लिए और आने वाली पीढ़ी के लिए वे वास्तव में वह दे जाएंगे जिसकी जरूरत है ।

जाहिर है इस समय देश का हर व्यक्ति कसौटी पर है । परिवार परंपरा पहली बार अग्नि परीक्षा के दौर से गुजर रही है जो भी इस वक्त को जैसे गुजारेगा वैसे ही वर्षों तक याद किया जाएगा ।


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