लॉकडाउन 3.0 का दसवां दिन, सांप निकल जाने के बाद लकीर पीटती व्यवस्था के नाम

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समय के साथ सच होते हमारे कथनों और सांप निकल जाने के बाद लकीर पीटती बाबूशाही व्यवस्था ने, यह तो स्थापित कर ही दिया है कि योजनाएँ सिर्फ कागजों पर ही बनेंगीं और कैसा भी वक्त हो, कोई भी आपदा हो, जनता की मदद अगर कोई कर सकता है तो, वो खुद जनता ही है।

बेपनाह आपदा फंड पर, कुंडली मारे बैठा, उसे गुटकता तंत्र और उसकी चरणवंदना करती व्यवस्था, इस दौरान सिर्फ इतना जतन करती दिख रही है कि यह मुसीबत, बस मेरे यहाँ से टल जाए, भले ही फिर आगे उसका कुछ भी हो, और यही सब तरफ दिख रहा है।

भूखे प्यासे, बीमार, बेकसूर बच्चे, बड़े, बूढ़े, अनजान जगहों में, फटे छिले तलुओं, सूखी जीभ और कुलबुलाती अंतड़ियों के साथ, योजन पर योजन तय करते चले जा रहे हैं, उस भीड़ का हिस्सा बने, जो खुद का ही नहीं सोच पा रही, तो किसी और का क्या सोचेगी? और अब जब, बार बार यह स्थापित हो रहा है कि इस बीमारी में, मरीजों की जांच, उनके आइसोलेशन, उपचार और रोकथाम में ढेरों गलतियां, लापरवाहियां हुईं और अभी भी हो रही हैं, तब यह कितना बड़ा सवाल 134 करोड़ों के भाग्यविधाताओं के सामने खड़ा हो जाता है कि वो अभी भी क्यों नहीं चेत रही है और राग दरबारियों से छुट्टी पाकर, धरातल पर क्यों नहीं उतर रही है?और इसीलिए आज एक बार फिर, हम उन्ही सवालों को उठा रहे हैं, जिसके जवाब लिए हम हर दरवाजे पिछले तीन महीनों से भटक रहे हैं । लेकिन सोने का ढोंग करती व्यवस्था के कानों पर अभी तक जूँ भी नहीं रेंगी, इसलिए आज हमारे साथ साथ अब पूछता है देश भी कि, “बीमारी के आगमन की आशंका होते हुए भी हमारे देश की सीमायें, एयरपोर्ट्स, समुद्र तट समय रहते सील नहीं किये गए, क्यों ?” बाहर से बीमारी लाने वाले इन मरीजों को, वहीँ, उसी समय चार हफ़्तों के लिए क्वारंटाइन नहीं किया गया, क्यों ?  “बीमारी का भयावह स्वरुप देखने के बाद भी, दिल्ली मुंबई की वोटबेंक तुष्टिकारी सरकारों ने, षड्यंत्रपूर्वक अपनी सीमाओं को तहसनहस कर दिया और लाखों करोड़ों लोगों को बेघर, भूखा और भविष्य के अन्धकार में ला पटका, सड़कों पर रेवड़ों की तरह भटकने, और बहुमत वाली केंद्र सरकार भी असहाय सी तमाम तमाशे देखती रही, क्यों ?”

लॉकडाउन की धज्जियाँ उड़ाते, जमातियों, शराबियों पर कोई सख्ती नहीं हुई, उलटे सब उनकी सेवा शुश्रुषा में जुट गए, पर गरीब, रोजनदारी वाले मजदूर, कामगारों, भूख से मरते लोगों को बिना काम, बिना रोजगार, बिना रोटी, उनके दड़बों में सिमेटने के, सारे धत्कर्म किए गए, क्यों ?  “जब भीड़ सड़कों पर निकल ही आई, तब उन्हें उनके गंतव्य तक पहुँचाने के लिए उपलब्ध करोड़ों बसों, टैक्सियों, अन्य संसाधनों का उपयोग नहीं किया गया, अरबों, खरबों का पेट्रोल टेक्स वसूलती सरकारों ने थोड़ा सा भी मुफ्त ईंधन इन्हे उपलब्ध नहीं करवाया, क्यों?”  “संभावित मरीजों को किसी उपचार की जरुरत नहीं पड़ेगी, यह फ्लू, सार्स, मार्स में और इस बीमारी को सबसे पहले वूहान के मरीजों में देखा जा चुका था, और यह भी कि इसका कोई उपचार भी नहीं है और बुजुर्गों, बीमार, डायबिटिक्स, कैंसर, सांस फेफड़ों की बीमारी वाले, इम्यून कम्प्रोमाइज़्ड मरीजों के लिए, यह काल, मौत का काल बन सकता है, यह जानते हुए भी, उन्हें अपने घर, परिजनों से अलग करके, उनके नियमित उपचार से वंचित करके, उन्हें उन कोविड केंद्रों पर ले जाकर जमा कर दिया गया, जहाँ इनकी किसी ने भी सुध नहीं ली और जहाँ इनमे से अधिकाँश की मौत हुई, जिन्हे शायद नियमित उपचार से बचाया जा सकता था, फिर भी अड़ियल रुख अपनाया गया, क्यों?” सभी को क्वारंटाइन करने के लिए नर्सिंग, आयुर्वेदिक और अन्य कालेजों, बड़े बड़े खेलमैदान, स्कूल, कालेज, ऑडिटोरियम जैसी ढेरों जगह इस देश खाली पड़ी हैं, और इस बीमारी के संभावित मरीजों को यहाँ बिस्तर, मच्छरदानी, पानी भोजन के साथ साथ, धूप और भरोसे की रौशनी इनके अंतर्मन को उपलब्ध करवाई सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया और अपने अपने चहेतों को इलाज के नाम पर करोड़ों रुपये बाँट दिए गए, क्यों ?” अतिगंभीर मरीजों को कोविड़ उच्च चिकित्सा केंद्र में शिफ्ट किया जाता, ताकि सभी बड़े अस्पताल, नर्सिंग होम, मेडिकल कॉलेज, निजी अस्पताल और क्लिनिक्स गंभीर बीमारियों के लिए बचे रह सकते थे, लेकिन सब जगहों पर नॉन कोविड उपचार बंद करवाके, उन्हें तडपने, मरने छोड़ दिया गया, क्यों ? “बाहर से आ रहे मजदूर, श्रमिक और ऐसे सभी लोगों को, जो विस्थापन की मार झेलते, तपती धूप और जलती धरती पर मौत का सामना करते चले जा रहे हैं, उन्हें प्रदेश की सीमाओं पर, कुम्भ के पैटर्न पर केम्पिंग कराकर, भोजन पानी, आराम और चिकित्सा सहायता, जांच आदि देकर उचित साधन से उनके घर, आगे रवाना करवाया जा सकता था, और इन सभी के गृह जिलों में इनकी आगे की देखभाल, रोजगार और जीवन यापन की व्यवस्थाएं एडवांस में ही तय की जा सकती थीं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, क्यों?यह सब और, और भी कई सवाल, कल पूछेंगे सरकार के नुमाइंदों से, मिलते हैं कल, तब तक जय श्रीराम ।

डॉ भुवनेश्वर गर्ग   डॉक्टर सर्जन, स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, हेल्थ एडिटर, इन्नोवेटर, पर्यावरणविद, समाजसेवक मंगलम हैल्थ फाउण्डेशन भारत संपर्क: 9425009303 ईमेल:drbgarg@gmail.com

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