हिंदी विभाग के शताब्दी वर्ष का उद्घाटन समारोह का आयोजित किया गया
प्रसिद्ध कवि एवं आलोचक अशोक वाजपेयी ने कहा कि, “साहित्य और कलाएँ मनुष्य के स्थायी लोकतन्त्र हैं। साहित्य का काम याद करना, याद रखना और याद दिलाना है। इस समय में ये तीनों ही साहित्य में प्रतिरोध के स्वर हैं। साहित्य संवाद भी करता है और प्रश्नांकित भी करता है। बड़ा साहित्यकार वो है जो समयविद तो हो पर समयबद्ध न हो। अगर आपको अपनी विद्वता सिद्ध करनी है तो आप बनारस में करिए जबकि सर्जनात्मकता सिद्ध करने के लिए इलाहाबाद आना ही होगा।”उन्होंने कहा कि साहित्य में आलोचनात्मक वृति का क्षरण हुआ है।कविता अब संसार की अधिक और पृथ्वी की कम रह गयी है।कविता में धीरे-धीरे मनुष्येतर प्राणियों के लिए जगह कम हो गयी है। उन्होंने कहा कि इधर विचारधाराओं में धारा अधिक और विचार कम हुए हैं।साहित्य को साहित्य की तरह पढ़ने-पढ़ाने का रिवाज भी परिवर्तित हो रहा है। वह शुक्रवार को इलाहाबाद विश्वविद्यालय के तिलक भवन में हिन्दी विभाग के शताब्दी वर्ष के उद्घाटन समारोह के उपलक्ष्य में आयोजित ‘समय और साहित्य’ विषयक व्याख्यान दे रहे थे।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के तिलक भवन में हिन्दी विभाग के शताब्दी वर्ष का उद्घाटन समारोह ‘समय और साहित्य’ विषयक व्याख्यान और विभाग की शोध पत्रिका ‘अनुसंधान’ के लोकार्पण के साथ किया गया। विभाग में हिन्दी के साथ ही अन्य आधुनिक भारतीय भाषाओं का अध्यापन कर रहे डॉ. लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता (उर्दू), डॉ. राजू गाजूला (तेलुगु), डॉ. जनार्दन (मराठी) और डॉ. विजय रविदास (बांग्ला) ने पुष्पगुच्छ भेंट करके मंचस्थ अतिथियों का स्वागत एवं सम्मान किया।

हिन्दी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. राजेंद्र कुमार ने अपना अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए कहा कि, “हमारा हिन्दी विभाग हमेशा से बुद्धि और हृदय दोनों को साथ लेकर चला है। मैं अभिभूत हूँ कि इस विभाग के उत्तरार्द्ध के 50 सालों का साक्षी मैं भी रहा हूँ। भाषा अपने सृजनात्मक संरक्षण के लिए साहित्य की तरफ़ जाती है। साहित्य और सभी कलाएँ प्रेम की गंगोत्री से ही निकली हैं। साहित्य झूठ के प्रति एक सविनय अवज्ञा है।”

प्रो. प्रणय कृष्ण ने इस कार्यक्रम के स्वागत वक्तव्य में अपने विभाग के गौरवशाली इतिहास को याद करते हुए विभाग के सभी 36 प्राध्यापकों, 5 कर्मचारियों और 4500विद्यार्थियों की ओर से सम्मानित अतिथियों और सभागार में उपस्थित श्रोताओं का स्वागत किया। उन्होंने बताया कि, “इलाहाबाद विश्वविद्यालय का हिन्दी विभाग पहला ऐसा विभाग रहा है, जिसने प्रो. सत्यप्रकाश मिश्र के अध्यक्षीय कार्यकाल में समकालीन विमर्शों पर पढ़ाई शुरू की।”
‘ अनुसंधान ‘ पत्रिका के संपादक गाँधी विचार एवं अध्ययन संस्थान के निदेशक और हिन्दी विभाग के प्रो. संतोष भदौरिया ने सभागार में उपस्थित सभी व्यक्ति विशेष का आभार ज्ञापित करते हुए इस पूरे शताब्दी वर्ष में होने वाले कार्यक्रमों की ओर संकेत किया। कार्यक्रम का संचालन हिन्दी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. कुमार वीरेंद्र ने किया।
इस पूरे कार्यक्रम में प्रो पी के साहू, प्रो. शैल पांडेय, प्रो. कृपाशंकर पांडेय, प्रो. चंदा देवी, प्रो. लालसा यादव, प्रो. हर्ष कुमार, प्रो. शिवप्रसाद शुक्ला, प्रो. सूर्यनारायण, प्रो. भूरे लाल, प्रो. सरोज सिंह, डॉ. बसंत त्रिपाठी, डॉ. सुनील विक्रम सिंह, डॉ. राजेश गर्ग, डॉ. आशुतोष पार्थेश्वर, डॉ. चितरंजन कुमार, डॉ. अमृता, डॉ. संतोष कुमार सिंह, डॉ.अंशुमन कुशवाहा, डॉ. शिव कुमार यादव, डॉ. अमितेश कुमार, डॉ. अमरजीत, प्रवीण शेखर, डॉ. मुदिता तिवारी, डॉ. सुधा त्रिपाठी, सुधांशु मालवीय, अनीता गोपेश, हितेश कुमार सिंह, डॉ. मार्तण्ड सिंह, डॉ. आशा उपाध्याय, मनोज कुमार पांडेय, डॉ. अनिल कुमार यादव, डॉ. मोती लाल आदि के साथ शहर के कई गणमान्य उपस्थित रहें।