कामदा एकादशी का महत्व
जयति भट्टाचार्य।
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को कामदा एकादशी कहते हैं। माना जाता है कि कामदा एकादशी का पालन करने से दुखों से मुक्ति मिलती है। इस दिन व्रत रखने पर सारे दुख दूर हो जाते हैं। कामदा एकादशी मानने वाले की जो मनोकामना भगवान विष्णु ने पूरी न की हो उसे भी वह पूरा कर देते हैं इसलिए इसे फलदा एकादशी या कामदा एकादशी कहा जाता है। यदि पति या संतान को बुरी आदत की लत पड़ गई हो तो कामदा एकादशी का व्रत रख सकती हैं। आज 12 अप्रैल 2022 को कामदा एकादशी है।
कामदा एकादशी के दिन प्रातः स्नान करने के पश्चात व्रत का संकल्प लें और भगवान की पूजा प्रारंभ करें। पूरे दिन समय समय पर भगवान विष्णु का जप करें। रात्रि को पूजा के स्थान के निकट ही जागरण करें। अगले दिन अर्थात द्वादशी के दिन पारण होता है। उस दिन ब्राहमण को भोजन कराने के बाद दक्षिणा देने के पश्चात ही आप व्रत तोड़ सकती हैं।
कामदा एकादशी की व्रत कथा – सांपों का एक राज्य था जिसका नाम पुंडरिक था। यह राज्य बहुत समृद्धशाली था। अप्सरा, गंधर्व और किन्नर इस राज्य में रहते थे। वहां ललिता नाम की एक खूबसूरत अप्सरा भी रहती थी। उसके पति ललित भी वहां रहते थे। ललित नाग राजदरबार में गाना गाता था और अपने नृत्य से सभी का मनोरंजन करता था। दोनों में अपार प्रेम था। दोनों एक दूसरे की आंखों में रहना चाहते थे। एक बार राजा पुंडरिक ने ललित को गाने और नृत्य करने का आदेश दिया। ललित अपनी अप्सरा पत्नी ललिता को याद करके नाचने और गाने लगा, इसी दौरान उससे नाचने – गाने में कोई भूल हो गई। सभा में एक सर्प देवता कारकोटक उपस्थित थे। उन्होंने राजा पुंडरिक को ललित की भूल के बारे में बता दिया। क्रोध में आकर राजा ने ललित को राक्षस बनने का शाप दिया। इसके बाद ललित शैतान जैसा दिखने वाला राक्षस बन गया। उसकी पत्नी ललिता बहुत उदास रहने लगी। उसे एक ऋषि ने कामदा एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। ऋषि के आश्रम में ही ललिता ने व्रत रखा और उसके बाद ललित शापमुक्त होकर फिर से एक सुंदर गधर्व बन गया।