मानसून की दगाबाजी से मगध का केन्द्रीय क्षेत्र भंयकर सुखाड़ की चपेट में : के एन त्रिपाठी

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मगध फाउण्डेशन ने केंद्र सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग से की राहत कार्य चलाने की मांग।

मगध के लगभग सौ जिलों में बारिश नहीं होने से किसान मजदूर हलकान।

मेदिनीनगर, 22 जुलाई । मगध क्षेत्र में कम वर्षा होने की वजह से उत्पन्न सुखाड़ की स्थिति के मद्देनजर मगध फाउंडेशन की कार्यकारिणी समिति की आपात बैठक हुई। बैठक को सम्बोधित करते हुए झारखंड सरकार के पूर्व मंत्री एवं इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह मगध फाउण्डेशन के संस्थापक अध्यक्ष के एन त्रिपाठी ने कहा कि मगध क्षेत्र के लगभग सौ जिले मानसून की दगाबाजी के कारण भयंकर सुखाड़ की चपेट में आ गया है। अकाल की विभिषिका से किसानों एवं मजदूरों की नींद उड़ गई है। धान का बिचड़ा खेतों में ही सूख रहा है और रोपनी कार्य ठप्प हो गया है जिससे करोड़ों किसानों – मजदूरों के सामने आजिविका का संकट खड़ा हो गया है।

श्री त्रिपाठी ने कहा कि मगध भारत का हृदय क्षेत्र है। भारत के खाद्यान्न का लगभग पचास प्रतिशत अनाज इसी क्षेत्र में पैदा होता है। इस क्षेत्र के अकालग्रस्त होने से भारत में खाद्यान्न संकट उपस्थित हो सकता है। उन्होंने केन्द्र सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग से एक सर्वे टीम भेजकर इस स्थिति का भौतिक सत्यापन करने का आग्रह करते हुए कहा कि अतिशीघ्र मगध फाउण्डेशन का एक प्रतिनिधिमंडल आपदा प्रबंधन विभाग के केन्द्रीय मंत्री से मुलाकात कर इस स्थिति से निपटने के लिए आवश्यक कदम उठाने की मांग करेगा।

श्री त्रिपाठी ने कहा कि वैसे तो समस्त झारखंड में सूखे की स्थिति है लेकिन पलामू प्रमंडल की हालत सबसे खराब है। यहांतक कि धान का कटोरा कहे जाने वाले रोहतास जिला में भी अभी तक रोपनी कार्य में गति नहीं आ पाई है। लोग पंपिंग सेट से किसी तरह थोड़ा बहुत रोपनी किये हैं, लेकिन अगर अगस्त में भी वर्षा नहीं हुई तो किसानों का लागत खर्च भी बरबाद हो जायेगा। श्री त्रिपाठी ने उद्घोष करते हुए कहा कि मगध के केन्द्रीय क्षेत्र में उत्पन्न इस भयावह स्थिति से निपटने के लिए जो बन पड़ेगा, किया जायेगा।

कार्यकारिणी बैठक में उपस्थित सभी सदस्यों ने सर्वसम्मति से उनकी इस घोषणा का समर्थन एवं स्वागत किया। बैठक में मुख्य रूप से सी एस दुबे, के डी सिंह, राजेश रंजन, रिफातुल्लाह खान, डॉ अजय ओझा, डॉ साकेत शुक्ला, पाण्डेय प्रदीप शर्मा, बबन पासवान, सुशील चौबे आदि उपस्थित थे।


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