“कृष्ण गूढ़ नहीं सहज है”

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भावना ठाकर, बेंगुलूरु।

कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम। नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम॥ सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि। गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी”।।

श्री कृष्ण की स्तुति जीव को सांत्वना के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देती है।
कृष्ण को हिंदू धर्म में पूर्णावतार माना गया है। इस धरती पर कृष्ण से बड़ा ईश्वरतुल्य कोई नहीं, इसीलिए उन्हें पूर्ण अवतार कहा गया है। कृष्ण ही गुरु और सखा हैं। कृष्ण ही भगवान हैं। कृष्ण हैं राजनीति, धर्म, दर्शन और योग का पूर्ण वक्तव्य।

श्रीकृष्ण, हिन्दू धर्म में भगवान हैं। वे विष्णु के 8वें अवतार माने गए हैं।
अनादि काल से ही भगवान श्री कृष्ण को सबसे बड़ा प्रेरक माना जाता है, जिसकी झलक महाभारत में भी देखने को मिलती है। अगर जीवन सफ़ल बनाना है और ज़िंदगी को एक नया आयाम देना है, तो भगवान कृष्ण की कही कुछ बातों को अपने जीवन में अपनाकर जीवन के उद्देश्य को पा सकते हैं।
कृष्ण कहते है, अच्छे कर्म करो, व्यर्थ की बातों में अपना समय नष्ट मत करो और न ही किसी से बेवजह डरो। दोस्त वही अच्छे होते हैं, जो कठिन परिस्थितियों भी में आपका साथ दें, दोस्ती में शर्तों की कोई जगह नहीं होती। गुरु से ज़्यादा सीख अपने अनुभवों से मिलती है, गलतियां और असफ़लताएं आपको बहुत कुछ सिखा सकती हैं। किसी के विचार के बंधन में मत बंधो. तुम खुद के विचार विकसित करो।

इंसान को दूरदर्शी होने के साथ-साथ हर परिस्थिति का आंकलन करना आना चाहिये।
मुसीबत में या सफ़लता न मिलने पर हिम्मत मत हारो, समस्याओं का डट कर सामना करो। अनुशासन में जीना, व्यर्थ चिंता न करना और भविष्य के बजाय वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करना सीखो।

दोस्ती में कभी अमीरी-गरीबी मत देखो, सच्चाई और ईमानदारी से दोस्ती निभाओ। जब विरोधियों का पलड़ा भारी हो, तो विजय पाने के लिए कूटनीति का रास्ता अपनाओ।
विषम परिस्थितियों में कायरता प्राप्त करना श्रेष्ठ मनुष्यों के आचरण के विपरीत है। न तो स्वर्ग की प्राप्ति है और न ही इससे कीर्ति प्राप्त होगी।

जुआ, मदिरापान, परस्त्रीगमन, हिंसा, असत्य, मद, आसक्ति और निर्दयता इन सब में कलियुग का वास है।

आनंद मनुष्य के भीतर ही निवास करता है। परंतु मनुष्य उसे स्त्री में, घर में और बाहरी सुखों में खोज रहा है। संयम यानि धैर्य, सदाचार, स्नेह और सेवा जैसे गुण सत्संग के बिना नहीं आते हैं।

श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को वस्त्र बदलने की आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता हृदय परिवर्तन की है।
यही थी भगवत गीता की कुछ अनकही बातें जो सामान्य इंसान को सफलता की राह पर पहुंचाने में मदद करती है।
जन्माष्टमी की आधी रात में संसार के सारे जीवों की बेकल ढूँढती आँखों से फिर कृष्ण ने कहा,
मेरे जन्म लेने का इंतज़ार मत कर
आ जा मेरी शरण में
बाँहें पसारे खड़ा हूँ इधर-उधर मत ढूँढ
मैं कायनात की हर शै में हूँ
थोड़ा महसूस तो कर…
मैं मिलूँगा प्रताड़ित हर जीव की आँखों में
बेटीयों की हंसी में
फूलों के रंगों में और सूरज की किरणों में “चमत्कारों में मत ढूँढ”
मेरे निष्ठ रुप में प्रीति जगा, पालक हूँ तेरा
हृदय से निकलती खून की धारा में ढूंढों मुझे..
जो नखशिख अविरत बहती है इंसानी जिह्वा में…
संभवामि युगे-युगे तुम्हारे लिए नहीं
आदिकाल से भ्रमण में हूँ
हर उर्जा का प्रमाण मेरा ही प्रतिबिम्ब है,
अंतर्मन की आँखें खोल करुणा भाव से मुझे पुकार
तुम्हारे भीतर ही तो हूँ रममाण
मैं गूढ़ नहीं पाने की चाह रख
सरल हूँ।
“राधा सी चाहत और मीरा सा मोह जगा”
मैं दिखाई भी देता हूँ, मैं सुनाई भी देता हूँ तू अपनी आस्था का प्रमाण तो दे…
धर्म के नाश पर, संतो के अपमान पर, दरिंदगी की आहट पर अवतरण होगा मेरा
तब दिखाई नहीं दूँगा, सुनाई नहीं दूँगा सृष्टि के विनाश की तस्वीरों में एक हल्का मयूर पंखी रंग झिलमिला रहा होगा, सतयुग की रश्मियों को आगाज़ देता समझ लेना वो कृष्ण है।


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