महाशिवरात्रि की कथाएं

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जयति भटाचार्य ।

शिव और शक्ति का मिलन – भगवान शिव की पहली पत्नी सती की मृत्यु के बाद वह गहरे ध्यान में चले गए। सती का पुनर्जन्म शक्ति के रूप में हुआ। शक्ति ने अत्यंत भक्ति के साथ भगवान शिव की पूजा की और उन्हें पाने के लिए कठोर तप किया। उसके बाद शिव और शक्ति का पुनर्मिलन हुआ। अर्धनारीश्वर के रूप में शिव और शक्ति के मिलन को महाशिवरात्रि के तौर पर मनाया जाता है।

समुद्र मंथन – समुद्र मंथन के दौरान कई वस्तुएं निकली थीं जिसमें हलाहल विष से भरा एक घड़ा भी था। यह इतना जहरीला था कि इसमें सम्पूर्ण विश्व का विनाश करने की शक्ति थी। विश्व को बचाने के लिए भगवान शिव ने हलाहल विष पी लिया लेकिन निगला नहीं जिससे उनका गला नीला हो गया, इसीलिए उन्हें नीलकंठ भी कहते हैं। अपने को विष के प्रभाव से बचाने के लिए भगवान शिव को पूरी रात जागना पड़़ा। उनको रात भर जगाये रखने के लिए देवताओं ने नृत्य किया एवं गीत गाया। तभी से इस पवित्र रात्रि को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। वह रात जब भगवान शिव ने विश्व को बचाया था।

लुभधाका की कहानी – लुभधाका एक आदिवासी होने के साथ ही शिव भक्त था। एक दिन वह जंगल में जलाने के लिए लकड़ी चुनने गया। वह गहरे जंगल में चला गया और रास्ता खो बैठा। रात हो रही थी, उसने जंगल में ही रात गुजारने की सोची और एक पेड़ पर चढ़ गया। जागते रहने के लिए वह रात भर भगवान शिव का नाम लेते हुए पेड़ की पत्तियां तोड़कर नीचे गिराता रहा। सुबह होने पर उसने देखा कि वह एक बेल के पेड़ पर चढ़़ा है और रात को उसने हजारों बेल की पत्तियां पेड़ के नीचे स्थित एक शिवलिंग पर गिराई है अर्थात रात को उसने जो पत्तियां नीचे फेंकी थीं वह बेल की पत्तियां थीं और अनजाने में एक शिवलिंग पर गिरी। भगवान शिव उसकी भक्ति से प्रसन्न हुए और उसको आशीर्वाद दिया। इस रात को महाशिवरात्रि मनाई जाती है।


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