हाईवे पर जगह-जगह हृदय विदारक दृश्य

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वैसे तो हाईवे पर जहां भी जाओ मजदूरों की दर्द भरी दास्तां देखने को मिलेगी। लंबे लॉक डाउन के कारण घर लौटने के लिए बेसब्र हो चुके मजदूर अलग-अलग मार्गों से अलग अलग साधनों से घर को लौट रहे। भूखे प्यासे पैर में छाले छोटे छोटे वाहनों में खचाखच भरे मजदूरों की मदद के लिए पूरे प्रदेश में समाजसेवी सड़कों पर आ गए लेकिन कहीं-कहीं दृश्य इतने हृदय विदारक है कि जिन्हें कमजोर ह्रदय वाले देख नहीं सकते । शनिवार को बक्सवाहा थाने के पास सेक नाला पुलिया के पास मजदूरों से भरा ट्रक पलट गया जिसमें 5 मजदूर मौके पर ही मर गए उसमें कुछ दृश्य ऐसे थे जिसने देखा उसका दिल दिल गया मां मृत पड़ी है और छोटा बच्चा लाश के पास बैठा है।

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दरअसल पूरे देश में मजदूर महानगरों से अपने घरों की ओर लौट रहे हैं योजना और व्यवस्था के अभाव में मजदूर असहनीय कष्टों को सहते हुए पैदल, साइकिल, मोटरसाइकिल, ऑटो, मेटाडोर, ट्रक, बस और जो भी साधन मिल रहा है उससे निकल पड़ा है। लेकिन उस मजदूरों को घर पहुंचने से मौत मिल रही है वह जो घर पहुंचेंगे वह टूटे-फूटे घायल अवस्था में पहुंच पाएंगे ऐसे ही मजदूरों पर शनिवार का दिन भारी पड़ गया जब एक ट्रक महाराष्ट्र से सिद्धार्थ नगर मजदूरों को लेकर जा रहा था तब वह छतरपुर के पास बक्सवाहा थाना अंतर्गत सेक पुलिया के पास पलट गया जिसमें लगभग 16 श्रमिक घायल हो गए और 5 मजदूरों की मौत हो गई जिन मजदूरों की मौके पर ही मौत हो गई उनके साथी वही बिलक कर रो रहे थे । इसमें 2 महिलाएं मृत पड़ी थी और उनके बच्चे लाश के पास बैठे थे उन्हें नहीं मालूम था जिस मां के सहारे बैठे है वह मां अब इस दुनिया में नहीं है। जिसने भी इस दृश्य को देखा वह रो पड़ा ऐसे ही दृश्य सोशल मीडिया पर उत्तर प्रदेश के औरैया जिले के प्रवासी मजदूरों के दिखाई दे रहे थे जहां लगभग 24 मजदूरों की मौत सड़क दुर्घटना में हो गई और मृत शरीर सड़कों पर पड़े थे।

जब से महानगरों से मजदूरों का घर वापसी का दौर शुरू हुआ है, तब से लगातार घटनाएं हो रही है जगह-जगह दुर्घटनाओं में जान गवाते मजदूरों की खबरें सुनकर भी स्थितियां नहीं बदल पाई ना ही कोई समुचित व्यवस्था अब तक हो पाई है। औरंगाबाद के रेल पटरी पर सो रहे सोलह मजदूरों की मौत के बाद लग रहा था ऐसी घटनाएं नहीं होगी लेकिन मजदूरों को घर से पहले मौत का मिलना निरंतर जारी है केंद्र और राज्य सरकारों की निर्देश यदि धरातल पर क्रियान्वित हो जाते हैं तो शायद मजदूरों की ऐसी दुर्दशा नहीं होती अभी भी सरकारें चेत जाएं और मजदूरों को व्यवस्थित तरीके से घर पहुंचाने की इंतजाम करें भला हो उन संवेदनशील लोगों का समाजसेवियों का और जनप्रतिनिधियों का जिन्होंने पूरे प्रदेश में सड़क पर टेंट लगाकर मजदूरों की जरूरतों को पूरा किया है। उन्हें भोजन पानी जूते चप्पल कपड़े और दवाइयां तक उपलब्ध कराई है। अन्यथा स्थिति और भी भयावह होती।

कुल मिलाकर कोरोना महामारी के चलते जो कष्ट गरीबों और मजदूरों  को मिले हैं वे मरते दम तक नहीं भूल सकते आज लॉक डाउन का तीसरा चरण समाप्त होगा और चौथा चरण के स्वरूप का पता चलेगा जिसमें पता चल पाएगा की गरीबों और मजदूरों के कष्ट निवारण के क्या उपाय किए जा रहे हैं और उन लोगों के लिए क्या व्यवस्था की जा रही है। जो महानगरों में छोटे-छोटे कमरों में परिवार के साथ पिछले 50 दिनों से घर वापसी का इंतजार कर रहे हैं क्योंकि वे मजदूरों जैसे निकलने का दुस्साहस नहीं दिखा पाए वे अभी भी बस ट्रेन या हवाई यात्रा शुरू होने का इंतजार कर रह है।

अब सबसे बड़ी आवश्यकता यही है की कोरोना कहर से प्रभावित लोगों को जल्द से जल्द राहत मिल सके गरीबों और मजदूरों को उनके घर पहुंचाने की समुचित व्यवस्था हो । अब सड़कों पर मजदूरों के कष्ट लोगों से देखे नहीं जा रहे भोजन, पानी, चप्पल, जूते, कपड़े, दूध, दवाई तो समाजसेवी मजदूरों को उपलब्ध करा रहे हैं लेकिन बड़वानी, सतना और ब्यावरा में जिस तरह से मजदूर महिलाओं को बच्चों को जन्म देना पड़ा है उस कष्ट को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता सतना में ट्रेन में ब्यावरा में ट्रक में और बड़वानी में एसडीएम के वाहन में महिला ने बच्चों को जन्म दिया है । जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है वैसे वैसे मजदूरों की समस्याएं बढ़ रही हैं मजदूर बीमार पड़ने लगे इटारसी में ट्रेन में बीमार मजदूर ने दम तोड़ दिया । मजदूर डायरिया के शिकार भी हो रहे हैं ऐसे में उन्हें समुचित व्यवस्थाओं की जरूरत है और जब तक मजदूर अपने घरों को नहीं लौट जाते जनप्रतिनिधि और अधिकारी बाकी कामों को छोड़कर इसी काम में लगे तो शायद हृदय विदारक घटनाओं को होने से रोका जा सकता है । ऐसे में राजनेता अपने पीट थपथपाते जनता को असहनीय लग रहे ह। अब यह ओछी राजनीति बर्दाश्त के बाहर होती जा रही है ।

ब्यूरो प्रमुख : देवदत्त दुबे


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