करोना कालखंड के पांचवे अध्याय का आठवां दिन, “सेनेटाइज़र्स, साबुन और आपकी नाजुक त्वचा के नाम” क्या करें, क्या ना करें।
कल स्थानाभाव की वजह से हमें बात रोकनी पड़ी थी साबुन पर, और साबुन की बात, आज इस करोना संक्रमण काल में इसलिये भी ज्यादा जरुरी हो जाती है, क्योंकि आपको बार बार अति नुकसानदायक अल्कोहल युक्त सेनेटाइज़र्स से या फिर साबुन से बीस सेकंड तक हाथ और मुंह धोने की सलाह दी जा रही है और यह वक्ती तौर पर बेहद जरुरी भी है, लेकिन अल्कोहल युक्त सेनेटाइज़र्स या हाइपोक्लोराइट सोलूशन्स के मुकाबले, साबुन भले ही कम नुकसानदायक हो, पर नुकसान तो पहुंचाता ही है।
हमारी लाइफस्टाइल में सदियों से जुड़ा साबुन, भले ही त्वचा के लिये ठीक नहीं माना जाता रहा हो, लेकिन यह विभिन्न रूपों में घर घर में, बाथरूम में, बहुतायत से भरा हुआ देखा जा सकता है। जानवरों की चर्बी, “फैट” और कास्टिक यानि क्षार से बन रहे साबुन व्यापार को संचार तंत्र, मीडिया, टीवी ने आसमान पर बिठा रखा है, और बिना इनके इन्ग्रेडियेन्ट्स को जाने, जांचे परखे बिना, सिर्फ सूंघ कर नकली खुशबु और सबसे ज्यादा प्रॉफिट वाले बाजार की ललचाने वाली स्कीमों में उलझ कर, निम्न और घटिया क्वालिटी के इन प्रोडक्टों को खरीद लाता है। माना कि वक्ती और सतही तौर पर यह कॉस्मेटिक्स और सोपिय पदार्थ शरीर से दुर्गंध मिटा देते हैं, लेकिन यह कई सारी स्वास्थ्य समस्याएं भी पैदा कर सकते हैं। जब हम अपने शरीर पर साबुन को रगड़ते हैं, तो इसकी महीन लेयर हमारे रोमछिद्रों में और स्किन क्रीज में पैठ कर जाती है, यह बहुधा, पानी से धोने के बाद भी नहीं निकलती और हमारी स्किन को ढेरों, गंभीर स्थायी नुकसान पहुंचाती है। इसके साथ ही, हमारी स्किन पर मौजूद अच्छे मददगार जीवाणुओं का भी नाश हो जाता है, जो बुरे कीटाणुओं से लड़कर हमारी स्किन को युवा और स्वस्थ रखने में लगातार मदद करते रहते हैं। यह क्षारीय साबुन, स्किन के जरुरी वाइटल ऑइल्स को भी ख़तम करके स्किन की सुरक्षा परत, जो कि ऑइल्स, फैटी एसिड्स और एमिनो एसिड्स की देन हैं, को नष्ट कर, स्किन की प्राकृतिक नमी को भी छीन लेते हैं और इसीलिए साबुन से नहाने के बाद, बहुतों की स्किन रूखी सूखी सी हो जाती है और कई अति समझदार लोग, विज्ञापन में स्किन पर लकीरें खींच कर भी दिखा देते हैं और अपने प्रोडक्ट के लिए आपको आकर्षित कर लेते हैं।
इसके अतिरिक्त सभी प्राणियों के शरीर में, उनकी स्किन के रोम रोम में एक हॉर्मोन लगातार बनता और स्वस्फुटित होता रहता है, यह फेरोमोन्स नाम का एक कैमिकल होता है जो अपनी “प्राणी विशिष्ट गंध” के जरिये आपकी पहचान भी बनता है और अनंत काल से नैसर्गिक तरीके से प्रजनन और सम्भोग के लिए अपोजिट सेक्स का ध्यान खींचने में मदद करता है। साथ ही इसके स्वाभाव से माँसाहारी और शाकाहारी प्राणियों का अंतर भी बखूबी स्थापित होता है और इसलिए अगर आपके घर में गाय या कुत्ता है, तो आप इस अंतर को समझ सकते हैं और जानवर भी आपस में एक दूसरे को इन्ही फेरोमोन्स के जरिये जानते पहचानते हैं और अपने मालिक के अलावा, अच्छे बुरे इंसान में भी फर्क करके, उनके प्रति वैसा ही व्यवहार करते हैं। यह कैमिकल, जो हमारे पसीने में मौजूद होते हैं, साबुन की वजह से धुल जाते हैं और अच्छे बैक्टीरिया के नष्ट हो जाने और बुरे बैक्टीरिया की भरमार हो जाने से आपके शरीर की, पसीने की आपकी पहचान, आपकी गंध, “दुर्गन्ध” में बदल जाती है, जिसकी वजह से आपको बहुधा अपने परिचितों के बीच शर्मिंदगी भी उठानी पड़ती होगी और इसे ढकने, ख़तम करने के लिए आप विभिन्न प्रकार के सुगन्धित पदार्थों, स्प्रे, पाउडर आदि का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
एक इंसान की स्वस्थ स्किन का ph ५.५ होता है, जबकि कन्वेंशनल साबुन का ph ११, अब आप इसी से अंदाजा लगा लीजिये कि इतने गंभीर क्षारीय साबुन के इस्तेमाल से आपकी स्किन को कितने नुक्सान हो सकते हैं? आँखों में, नाक कान, मुंह और प्राइवेट पार्ट्स की नाजुक स्किन में तो और भी ज्यादा नुकसान हो सकता है। साबुन के हार्श “क्षारीय तत्व” से नाजुक जगहों की स्किन छिल सकती है, वहां उचित रूप से सफाई और पानी से क्लीनिंग ना हो पाने की वजह से साबुन की परत वहां बनी रह सकती है, जो लगातार खुजली, इंफेक्शन और जख्मों का कारण बनती है, (इसके साथ ही, जब आप अपने अंडर गारमेंट्स को और भी अधिक क्षारीय, कपडे धोने वाले साबुन से धोते हैं, तो इनकी सिलाई वाली जगह पर यह साबुन बचा रह जाता है और बार बार रगड़ लगते रहने से यहाँ की स्किन को ढेर नुकसान पहुंचता है ) इसीलिए इन नमी वाली जगहों पर इन कारणों से, बहुतायत में फंगस इंफेक्शन हो जाता है और बुनियादी कारण का निदान ना होने की वजह से यह बीमारी, ढेरों दवाइयाँ खाने या विभिन्न मलहम लगाने के बाद भी ठीक नहीं होती!
जब इन उच्च क्षारीय साबुनों के इस्तेमाल से आपकी स्किन का ph बहुत हाई हो जाता है, तब आपके शरीर के डिफेन्स सिस्टम और स्किन के रोमछिद्रों तथा चिकनाहट बनाने वाली सिबेसियस म्यूकस ग्लेंड्स को बहुत ताकत लगानी पड़ती है, इस ph को नीचे लाने में, और इस तरह साबुन और एक्सेस म्यूकस की वजह से स्किन की सतह ख़राब होने लगती है। इसे परमानेंट रूप से ख़राब होने में कितना वक्त लगेगा, यह आपके हाइजीन, पौष्टिक भोजन और पर्याप्त मात्रा में तरल पेय पदार्थों के अलावा एक से डेढ़ घंटे धूप में व्यायाम पर निर्भर करता है, इन सबके अभाव या कमी से ड्राइनेस, खुजली, डर्मेटाइटिस, लाल चकत्ते पड़ना और उम्रदराज दिखने के साथ साथ स्किन का स्थायी तौर पर ख़राब होना तय है।
फिर क्या करें, क्या ना करें और किस तरह अपनी स्किन की सुरक्षा करें, बतायेंगे कल, तब तक जयश्रीराम ।
डॉ भुवनेश्वर गर्ग:email: drbgarg@gmail.com
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डॉक्टर सर्जन, स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, हेल्थ एडिटर, इन्नोवेटर, पर्यावरणविद, समाजसेवक
मंगलम हैल्थ फाउण्डेशन भारत
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